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भारत-जापान: ये हैं इस दोस्ती के मायने

पहले खास मेहमान के साथ आठ किलोमीटर का अभूतपूर्व शानदार रोड शो और फिर उनके दिलखुश स्वागत में सजाये गए सिलसिलेवार घटनाक्रम के बीच देश-दुनिया ने पाया कि वैयक्तिक-स्पर्शित राजनय ने द्विपक्षीय संबंधों में एक विशिष्ट गत्यात्मक आयाम दे दिया है.

भारत-जापान: ये हैं इस दोस्ती के मायने

इससे गहराई और ऊंचाई के साथ विस्तार मिल गया है. अब भारत-जापान संबंध इकहरे नहीं रहे बल्कि वह वर्तमान और भविष्य के वास्तविक तकाजों को देखते बहुउद्देशीय और बहुदेशीय हो गए हैं. प्रशांत क्षेत्र के साथ अफ्रीका तक में सहभागिता की भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक महत्त्वाकांक्षी भूमिका को ठोस तरीके से परिभाषित करती है. इसने कइयों को चिढ़ा दिया है-चीन को भी. यह अहम सिरा है, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की दो दिवसीय भारत यात्रा के निहितार्थ के समझने का. हालांकि यह संदेश बुलेट ट्रेन के सपने को साकार होते देखने में कहीं दब गया है.

इसमें संदेह नहीं कि चहुंमुखी तरक्की को एक नियमित और व्यवस्थित रफ्तार देने के लिए भारत को बुलेट ट्रेन की जरूरत है. आखिर, अंतरिक्ष कार्यक्रमों के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करने वाले भारत को केवल इसी आधार पर कैसे रोका जा सकता है कि वह अभी इसकी पात्रता नहीं रखता है! आजादी के बाद जब परमाणु या अंतरिक्ष कार्यक्रमों की नींव रखी गई तो भी यही तर्क दिया गया था कि भारत को पहले अपनी मूलभूत समस्याओं से निजात पा लेनी चाहिए. निश्चित रूप से आत्मनिर्भरता किसी भी देश की प्राथमिकता होती है. लेकिन एक काम को रोक कर दूसरा नहीं किया जा सकता. आज देश की वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और उस पर मिल रही वाहवाही ने तत्कालीन नेतृत्व के उस फैसले को सही ठहराया कि भारत को अलभ्य लगने वाली दिशा में भी पांव बढ़ाना चाहिए. मंगल पर पहुंचना इसका बड़ा प्रमाण है.

अलबत्ता, बुलेट ट्रेन के मार्ग के चयन को लेकर असहमति हो सकती है. यह अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलाई जाने वाली है, जिनके बीच पहले से ही यातायात के भरपूर संसाधन हैं. यह जायज आलोचना हो सकती है. यह भी कि जब बिना नागा किये ट्रेनें रोज पटरी से उतरने के रिकार्ड बना रही हों, पहले उनको संभालना  जान-माल की सुरक्षा के लिहाज से ज्यादा सही होता. इसके बजाय आगामी गुजरात विधान सभा चुनाव जीतने के लिए एक लाख 10 हजार करोड़ रुपये की महंगी परियोजना लाई जा रही है.

इतनी राशि स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च की जाती तो लोग नहीं मरते. बुलेट के ट्रैक और टाइम को लेकर आलोचनाएं हो रही हैं. सरकार को चाहिए कि वह इन चिंताओं को अपनी सक्रियता से दूर करे. दरअसल, बुलेट ट्रेन के बहाने जो संबंध विकसित हो रहे हैं, वे अहम हैं. जापानी प्रधानमंत्री आबे ने इसे ‘भारत के लिए एशिया का कारखाना बनने का अवसर’ माना है. उनका मंतव्य भारत के सस्ते श्रम और जापानी  तकनीक का कमाल दिखा कर अवसरों को एक साथ झटकना है. उनका साफ इशारा चीन से यह जगह छीनने का है. इसलिए ही बीजिंग ने आबे के आगमन से लेकर उनके भारत रहते जारी द्विपक्षीय संयुक्त घोषणा पत्र का हर्फ-हर्फ  पढ़ा है, जिसमें देशीय रिश्ते को वैश्विक बनाने का मंसूबा जताया गया है.

भारत-जापान ने पाकिस्तान को आतंकवाद समर्थक देश माना है और उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के उन्माद के पीछे पाकिस्तान और चीन की तकनीकी शह को जिम्मेदार माना है. हालांकि इसके पहले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान में पल रहे आतंकी संगठनों की बात की गई थी, चीन के न चाहने के बावजूद इसमें भारत को रूस का भी समर्थन मिला था. अब जापान-भारत ने भी पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी संगठनों के उल्लेख के साथ उनसे मिल रही चुनौतियों से निबटने की बात कही है, जिसे विदेश सचिव जयशंकर ‘मूल्यवान’ मानते हुए उसे ‘क्रियान्वयन लायक विचार’ मानते हैं.

यहां तक चीन को भारत-जापान से ज्यादा आपत्ति नहीं है. दरअसल, उसकी आपत्ति के मूल में एशिया में भारत के रूप में एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी खड़ा करने की जापान और अमेरिका की साझा रणनीति से है. दक्षिण चीन सागर में भारत के आवागमन पर तटीय देशों का समर्थन जुटाने, मालाबार में भारत-अमेरिका और जापान के संयुक्त सैन्याभ्यास से लेकर  डोकलाम में चीन से बने ताजा गतिरोध में भारत का साथ देने के ऐलान के बाद बीजिंग कोई मुगालता नहीं रखना चाहता. यह सही है कि अमेरिका की एशिया के प्रति अस्थिर नीति और चीन के लगातार मजबूत होते जाने के बीच एशिया का शक्ति संतुलन डगमगाया है.

ऐसे में जापान, जो अमेरिका का विस्त देश है, संतुलन कायम करने के लिए भारत के साथ रहना चाहता है. दक्षिण चीन सागर का नाम लिये बिना ही वहां संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक अबाध आवागमन का हवाला दिया गया है. फिर यह भी कि चीन की वैश्विक महत्त्वाकांक्षा वाली ‘ओबोर’ परियोजना में शामिल होने वाले देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के मुताबिक वित्तीय लेन-देन की बात की गई है. पाकिस्तान और श्रीलंका के संभावित हश्र के मद्देनजर यह उल्लेखनीय तथ्य है. घोषणा पत्र में ओबोर के विरु द्ध भारतीय नजरिये का समर्थन करते हुए एशिया-अफ्रीका के देशों को सड़क मार्ग से जोड़ने के समानांतर कार्यक्रमों को जारी रखने तथा भारत-प्रशांत क्षेत्रों तक सहभागिता निभाने के मुकम्मल इरादों ने भी चीन को चटका दिया है.

जापान का उभय-उपयोगी यूएस2 विमान देने पर सहमति जताना बड़ी बात है. इससे भारत की नौसैनिक क्षमता में इजाफा होगा. भले ही चीन इसे दक्षिण चीन सागर से जोड़कर देखता हो. इसी तरह, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में परिवहन के साधन विकसित करने में निवेश की जापानी इच्छा ने चीन को संशकित कर दिया है. यह उसके विरोध करने से जाहिर होता है. पूर्वोत्तर पर चीन की कड़ी नजर रहती है. इन क्षेत्रों में बेहतर कनेक्टिविटी बनाने की बात चीन को हजम नहीं होगी. वह भी ऐसे समय में जब भारत की सेना के प्रमुख डोकलाम के दोहराये जाने के खतरे को देखते हुए चौतरफा तैयारी पर जोर दे रहे हैं. तो कहने का आशय कि भारत-जापान की अंतरंगता के अनेक स्तरीय आयाम हैं, जिनमें अपनी जगह सुरक्षित करने से लेकर शक्ति को संतुलित रखने का जतन है.

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