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मधुमय शब्द प्रयोग के जादूगर थे ‘अटल’

भारत के अवनि-अम्बर शोक ग्रस्त हैं। भारत रत्न और तमाम असम्भवों का संभवन अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। वे एक अटल थे और बिहारी भी। ईशावास्योपनिषद् के एक मंत्र में परमतत्व को अति गतिशील और अस्थिर दृढ़ बताया गया है। यहां स्थिरता और गतिशीलता एक साथ हैं। आगे बताते हैं कि वह बहुत दूर है, अति दूर लेकिन हमारे भीतर भी। उपनिषद् के इसी भाव का संगमन हैं – अटल बिहारी वाजपेयी। भाव प्रवण कवि, सरल तरल भावुक हृदय और राजनीति के भावहीन क्षेत्र में गति।

वे मधुमय शब्द प्रयोग के जादूगर थे। आचार व्यवहार में सबके प्रति सहज आत्मीय थे। अकेले में भी किसी की निन्दा नहीं। एक समय वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह ने अटल जी पर टिप्पणी की थी। इसी समय अटल जी लखनऊ आए। विधायक और वरिष्ठ कार्यकर्ता उनसे मिले। लखनऊ के कार्यकर्ताओं ने उनसे पूछा कि क्या हम लोग भी मुलायम सिंह की निन्दा का उत्तर दें। अटल जी ने हंसते हुए कहा कि “उनकी महफिल में हमारे चर्चे हें तो आप लोगों को ईष्र्या क्यों हो रही है?” सब लोग हंसते रहे। अटल जी विरोधी के प्रति सम्मान भाव से भरपूर थे।
यूपी की राजधानी लखनऊ उनका कर्मक्षेत्र और बाद में संसदीय क्षेत्र भी रहा। वे राजधानी लखनऊ के पत्रकारों से भी खुलकर मजाक करते थे। बात तबकी है जब केशरी नाथ त्रिपाठी जी प्रदेश अध्यक्ष थे। यूपी में मुलायम सिंह की सरकार थी। हम लोग मुलायम सरकार के समय ध्वस्त कानून व्यवस्था को लेकर हमलावर थे। इसी समय अटल जी लखनऊ आए। प्रदेश मुख्यालय पर प्रेस काफ्रेंस थी। केशरी नाथ जी दौरे पर थे। मैं मुख्य प्रवक्ता था। प्रेस वार्ता का आयोजन मेरे जिम्मे था। प्रेस शुरू हुई। पत्रकारेां ने पूछा “अटल जी! क्या यूपी में कानून व्यवस्था ध्वस्त है?” अटल जी ने उत्तर दिया कि इस पर आपको ज्यादा जानकारी है। आप ही बताओ कि कानून व्यवस्था कैसी है? सब हंसे। एक वरिष्ठ पत्रकार ने पूछा कि “केशरी जी तो रोज बयान देते हैं कि कानून व्यवस्था ध्वस्त है।”

अटल जी ने उत्तर दिया कि कौन केशरी जी? क्या आप कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केशरी जी की बात पूछ रहे हैं? फिर ठहाका लगा। मैंने समझा कि अटल जी प्रदेश अध्यक्ष केशरी जी के बारे में पूछे गए सवाल को संभवतः प्रेस के मित्रों की भारी भीड़ के कारण नहीं समझ पाए हैं। मैं बगल में था। मैंने कान में बताया कि ये लोग केशरी नाथ त्रिपाठी के बयान के बार में सवाल पूछ रहे हैं। अटल जी मुस्कराए लेकिन चुप रहे। किसी भी अवसर पर मस्ती का सृजन उनका स्वभाव था। लेकिन यह एक डेढ़ मिनट की ‘मौन मस्ती’ थी। पत्रकार मित्रों ने अगला सवाल पूछा कि आपके बगल बैठे हृदयनारायण दीक्षित भी कानून व्यवस्था को ध्वस्त बताते हैं। अटल जी ने इसका उत्तर भी मस्ती में ही दिया “दीक्षित जी तो आप लोगों के बीच ही रहते हैं। मैं आप लोगों व दीक्षित जी के बीच नहीं पड़ना चाहता।” इस पर फिर ठहाके लगे। पत्रकार मित्रों ने यह विषय छोड़ दिया और दूसरे सवाल होने लगे।

आपातकाल जनता को कुचलने का दौर था। भारतीय जनसंघ अटल जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय बना था। राष्ट्रीय दल होने के बावजूद अटल जी ने तमाम गैरकांग्रेसी दलों को एक मंच पर लाने का काम किया। तमाम दलों को एक ही चुनाव चिन्ह पर लड़ने चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया। 1977 के चुनाव में केन्द्र में सरकार बनी। अटल जी विदेश मंत्री बने। 1977 में नई दिल्ली के प्रगति मैदान में भारतीय जनसंघ का अधिवेशन हुआ। अटल जी ने जनसंघ के विसर्जन का प्रस्ताव रखा। यह कठिन घड़ी थी। अग्रजों व स्वयं अपने बनाए जनसंघ को समाप्त करने का प्रस्ताव था। वे दीनदयाल जी नाम लेकर कई बार रोये। उन्होंने रोते हुए कहा “आज जनसंघ का विसर्जन प्रस्ताव रखते समय दीनदयाल जी याद आ रहे हैं। उन्होंने जनसंघ बनाया। कार्यकर्ता गढ़े, जनसंघ को खून पसीने से सींचा। आज राष्ट्रीय आवश्यकता है। इसलिए हम जनसंघ को विसर्जित करने और जनता पार्टी में विलय का प्रस्ताव रख रहे हैं। पं. दीनदयाल उपाध्याय और ऐसे तमाम नेता व संगठक जो आज नहीं हैं, हमारे लिए सदा सर्वदा पाथेय रहेंगे।” उस समय अटल जी लगातार रो रहे थे। सभी उपस्थित कार्यकर्ता भी रो रहे थे। इन पंक्तियों का लेखक भी। इस अवसर पर भावुक था।

मैं तमाम समाचार पत्रों में लिखता हूं। 1970 के आसपास अपने जिले से प्रकाशित समाचार पत्रों में हमारे स्तम्भ थे। मैं जिला जनसंघ का प्रमुख संगठक था। मैंने अटल जी का कार्यक्रम बनाया। सभा हुई। मैंने उनके प्रति स्वागत भाषण शुरू किया। अटल जी ने बैठे ही बैठे टोका “आप साहित्य सम्मेलन में नहीं बोल रहे हैं। आपकी भाषा साहित्य है। यहां सरल बोलिए। मैं सहम गया। बाद में चाय हुई। एक स्थानीय समाचार पत्र के सम्पादक ने अटल जी को अखबार भेंट किया। अखबार में मेरा लेख था। अटल जी ने फिर चुटकी ली। आपका लेख अच्छा है पर भाषा सरल नहीं है। मैं संकोच में था। उनकी टिप्पणी से मेरा मार्गदर्शन हुआ। मैं बोलचाल वाली सरल भाषा में लिखने का प्रयास करने लगा। अपने कार्यकर्ता को प्रेरणा देना उनका स्वभाव था।

अथर्ववेद में दृढ़ निश्चयी कार्यकर्ता की गति बताई गई है, “पहले वह सभी दिशाओं की ओर चला। दिशाएं उसका अभिनंदन करते हुए साथ-साथ चलीं। फिर वह कालगति के अतिक्रमण में चला। काल ने उसका अनुसरण किया। वह दृढ़निश्चयी चलता रहा। इतिहास और पुराण उसके साथ हो गए।” अटल जी भी इतिहास पुरूष पुराण पुरूष हैं। इतिहास ने उन्हें अपने हृदय में स्थान दिया। शरीर का क्या? यह क्षण भंगुर है। अटल सत्य है – जो आता हे, सो जाता है लेकिन अटल जी का जीवन सतत् प्रवाही है। राष्ट्र के लिए ही जन्म और जीवन की संपूर्ण गति असंभव है। अटल जी का जीवन असंभव का संभव है – संभवामि युगे युगे। वे प्रतिपल हमारे साथ है, भारत की धरती और आकाश में प्रतिपल स्पंदित हैं। भारत के अणु परमाणु में उनका कृतित्व और विचार रस बस गया है। उन्हें अतीत में सोचना व्यर्थ है। वे नित्य वर्तमान। अटल वर्तमान और गतिशील वर्तमान भी। हम भारत के लोगों के मध्य सतत् उपस्थित हैं। राष्ट्रजीवन का काव्य और गीत गाते हुए हमारे साथ हर क्षण। प्रतिपल। पल पल।

 

 

 

 

 

हृदयनारायण दीक्षित
(रविवार पर विशेष)

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