दस्तक-विशेषस्तम्भ

मधुर, सरल व्यक्तित्व के धनी कुप. सी. सुदर्शन

बृजनन्दन राजू : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैया सुदर्शन मधुर, सरल व्यक्तित्व के धनी थे। उनका जैसा विराट व्यक्तित्व था उसी तरह उनका बौद्धिक इतना प्रभावी होता था कि जो एक बार सुन ले बार—बार उन्हें सुनने की इच्छा होती थी। तमिल, मराठी, कन्नड़, उड़िया और हिन्दी के साथ ही वह कई भाषाओं के जानकार भी थे। रामायण के प्रसंगों का उदाहरण व अपने बौद्धिक में अलग—अलग रामायण के हिसाब से वह देते थेे। लखनऊ में रहने और संघ कार्यकर्ता होने के कारण कई बार उनसे मिलने और उनका बौद्धिक सुनने का अवसर मिला। लेकिन सबसे ज्यादा उनका सानिध्य 2010 में नागपुर में मिला जब मैं तृतीय वर्ष का संघ का प्रशिक्षण लेने गया था। वर्ग में वह पूरे समय रहे। प्रात:काल संघस्थान से पहले बाहर के मैदान में सामूहिक रूप से एकात्मतास्त्रोत होता था। एक दिन जब एकात्मतास्त्रोत शुरू ही होने वाला था कि सुदर्शन जी मैदान में पहुंच गये। मंच पर दो कुर्सी रखी थी। व्यवस्था में लगे कार्यकर्ता ने उनको देखते ही उनके लिए एक कुर्सी मंच पर लगाकर उनसे बैठने का आग्रह किया। उन्होंने कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया और सबसे पीछे जाकर जमीन पर बैठ गये। यह क्रम उनका चलता रहा आते और पीछे जाकर बैठ जाते। कभी—कभी वह संघ स्थान के समय मैदान में निकल लेते थे। इसके अलावा रात्रि भोजन और रात्रि कार्यक्रम के बाद मैदान में 100—50 कार्यकर्ता उनको मंडल में घेरकर बैठ जाते थे। अनौपचारिक चर्चा वह करते थे। शिक्षार्थी उनके तरह —तरह के प्रश्नोन्नतर करते थे सभी प्रश्नों का उत्तर वह बड़े ही खुले मन से देते थे। साथ ही अनुशासन प्रिय और समय पालन के प्रति भी वह प्रतिबद्ध थे। रात्रि कार्यक्रम के बाद बिगुल बजने के बाद वह कार्यकर्ताओं से कहते अच्छा जाओ अब बिगुल बज चुका है भागय्या जी आने वाले हैं। वी.भागय्या जी जो वर्तमान में सह सरकार्यवाह हैं वह उस समय अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख थे और वर्ग के पालक थे। वह भी जीवट प्रवृत्ति के हैंं। बहुत ही मृदु स्वभाव उनका। पता नहीं कब वह सोते थे। दिन में भी वह चलते ही रहते थे। नागपुर में वैसे भी अधिक गर्मी होती है। दोपहर भोजन के बाद दो घण्टे विश्राम के लिए समय मिलता था। अधिक अवस्था होने के बावजूद भागय्या जी नहीं सोते थे। लू से बचने के लिए सामूहिक सूचना होती थी कमरे से बाहर पानी पीकर और सिर ढककर निकलें और नेकर की जेब में प्याज डालकर रखें। हम लोग नेकर की जेब में एक—एक प्याज डाल कर रखते थे। इसके बाद सरसंघचालक का पद डा. मोहन राव भागवत को सौंपने के बाद उनका देशव्यापी प्रवास बंद नहीं हुआ। लखनऊ तो वह अक्सर ही आते रहते थे। लखनऊ में मुस्लिम राष्टीय मंच द्वारा आयोजित कई जलसे को उन्होंने संबोधित किया। मुस्लिम बहनों द्वारा आयोजित रक्षाबंधन कार्यक्रम में भी वह पहुंचे थे।

अक्सर देखा जाता है जिस व्यक्ति का शारीरिक अच्छा होता है बौद्धिक क्षमता उतनी प्रबल नहीं होती है लेकिन सुदर्शन जी इसके अपवाद दे। शारीरिक और बौद्धिक दोनों विषयों में वह पारंगत थे। यही कारण रहा कि वह क्षेत्र प्रचारक के साथ अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख भी रहे। उन्होंने शारीरिक में कई नये आयाम जोड़े वह कुछ विषयों को उन्होंने शारीरिक पाठ्यक्रम से बाहर भी किया। वहीं बाद में वह संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख भी बने। प्रज्ञा प्रवाह जैसे संगठन का आविर्भाव उन्होंने ही बौद्धिक प्रमुख रहते हुए किया। आज एक देशव्यापी संगठन का रूप धारण कर चुका है। उनका मानना था कि संवाद से बहुत ही कठिन विषयों का समाधान हो सकता है। इसलिए जब इन्द्रेश कुमार ने कश्मीर में कार्य करते हुए मुस्लिम मंच का गठन किया तो उनका सरसंघचालक के नाते पूरा समर्थन मिला। वह मुस्लिम मंच के कार्यक्रम में जरूर जाते थे। सुदर्शन जी मुसलमानों से कहते, ‘तुम बाहर से हिंदुस्थान में नहीं आये हो, यहीं के हो, केवल तुम्हारी उपासना पद्धति अलग है, तुम्हारे पूर्वज हिंदू ही हैं, उनका अभिमान करें, इस देश को मातृभूमि मानें, फिर हिंदुओं के समान आप भी यहां के राष्ट्रीय जीवन के अभिन्न घटक हो, ऐसा आपको लगने लगेगा।
किसी भी राजनीतिक दल के नेता कार्यकर्ता,पत्रकार या अन्य किसी संगठन के व्यक्ति अथवा प्रमुख से मिलने वह संकोच नहीं करते थे और अपनी बात बड़ी बेबाकी के साथ रखते थे। एक बार सरसंघचालक रहते लखनऊ दौरे के समय मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी से मिलने नदवा पहुंच गये। नदवी ने उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछा दिया। उस समय यह विस्मयकारी मुलाकात थी। ऐसे ही एक बार उन्होंने उत्तर प्रदेश के बड़े राजनीतिक नेता से मिलने के बाद राजनीतिक हलचल तेज कर दी थी। सुदर्शन जी सरसंघचालक थे और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। सुदर्शन जी उनसे मिलने पहुंच गये। मुलायम सिंह ने उनकी खूब आवभगत की। सुदर्शन जी ने मुलायम सिंह से आग्रह किया कि आप हिन्दी प्रेमी हैं और हिन्दी की खूब वकालत करते हैं इसलिए आप उत्तर प्रदेश में एक हिन्दी विश्वविद्यालय बनवाइये जहां सारे विषयों की पढ़ाई हिन्दी में हो। करीब तीन घंटे तक विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। मुलायम सिंह ने संघ कार्य की सराहना भी की और कहा कि संघ का काम तो ठीक है लेकिन आप लोगों की गति कम है इसको और बढ़ाने की जरूरत है। तुष्टीकरण के मुद्दे पर मुलायम का कहना था कि हम तो नेता हैं हम तो फायदे के लिए काम करते हैं हम देखते हैं कि कोई वर्ग हमसे नाराज न हो जाये।
कोई बात कहने में वह संकोच भी नहीं करते थे। सरसंघचालक पद पर रहते हुए चाहे पाकिस्तान को चेतावनी देना हो या केन्द्र सरकार को आगाह करना हो वह सचेत जरूर करते थे। अटल बिहारी बाजपेई जब प्रधानमंत्री बने उस समय सुदर्शन जी सरसंघचालक थे।
बाल्यकाल से ही अद्भुत प्रतिभा संपन्न तथा कई पुस्तकों के लेखक सुदर्शन जी का जन्म छत्तीसगढ़ प्रान्त के रायपुर नगर में 19 जून 1931 को हुआ था। उनका परिवार कर्नाटक तमिलनाडु की सीमा पर बसे कुपहल्ली गांव का रहने था। सुदर्शन जी के पिताजी सीतारामय्या मध्य प्रदेश शासन के वन विभाग में सेवारत होने के कारण मध्य प्रदेश रहते थे। यहीं पर सुदर्शन जी का जन्म हुआ। दमोह, मंडला, रायपुर आदि स्थानों पर सुदर्शन जी की प्राथमिक शिक्षा पूरी हुई। हाईस्कूल की परीक्षा चंद्रपुर से उत्तीर्ण की। उसके पश्चात सन 1954 में जबलपुर से दूरसंचार विषय में अभियांत्रिकी स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तीन भाई व एक बहन में सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। बचपन से ही उनका सम्बन्ध संघ से हो गया था। परिणाम यह हुआ की अभियांत्रिकी उपाधि प्राप्त करते ही उन्होंने प्रचारक जीवन स्वीकार कर लिया और उनकी पहली नियुक्ति छत्तीसगढ़ प्रान्त के रायगढ़ जिला प्रचारक के रूप में हुई। वे रीवा विभाग प्रचारक भी रहे। 1964 में उन्हें मध्य भारत के प्रान्त प्रचारक की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान उन्होंने प्रान्त प्रचारक रहते स्वदेश अखबार का पुन: प्रकाशन शुरू कराया। मध्य भारत के प्रान्त प्रचारक रहते हुए ही सन 1969 में उन्हें अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का दायित्व भी दिया गया। सन 1975 में आपातकाल की घोषणा हुई और पहले ही दिन इंदौर में उन को गिरफ्तार कर लिया गया। पूरे उन्नीस माह उन्होंने कारावास में बिताये। आपातकाल समाप्ति के पश्चात सन 1977 में उन्हें पूर्वांचल असम, बंगाल और पूर्वोत्तर राज्य] का क्षेत्र प्रचारक बनाया गया। क्षेत्र प्रचारक के रूप में उन्होंने वहाँ के समाज में सहज रूप से संवाद करने के लिए असमिया, बंगला भाषाओँ पर प्रभुत्व प्राप्त किया तथा पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातियों की अलग—अलग भाषाओँ का भी पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। कन्नड़, बंगला, असमिया, हिंदी, इंग्लिश, मराठी, इत्यादि कई भाषाओँ में उन्हें धारा प्रवाह बोलते हुए देखना यह कई लोगों के लिए एक आश्चर्य तथा सुखद अनुभूति का विषय होता था। सुदर्शन जी अच्छे वक्ता के साथ ही अच्छे लेखक भी थे। यद्यपि प्रवास के कारण उन्हें लिखने का समय कम ही मिल पाता था, फिर भी उनके कई लेख विभिन्न पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किये।
आज देश में विषमुक्त खेती की चर्चा हो रही है। सुदर्शन ही अपने हर बौद्धिक में आयुर्वेद अपनाने और रयायन मुक्त खेती को बढ़ावा देने का आग्रह करते थे। वह कहते थे घर के सामने वाटिका लगाओ वहीं शहर वासियों से कहते कि छत पर गमलों में वाटिका तैयार करो इससे आपको ताजी व स्वच्छ सब्जी मिल सकेगी।
श्री सुदर्शन जी को संघ-क्षेत्र में जो भी दायित्व दिया गया, उसमें अपनी नव-नवीन सोच के आधार पर उन्होंने नये-नये प्रयोग किये। 1969 से 1971 तक उन पर अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का दायित्व था। इस दौरान ही खड्ग, शूल, छुरिका आदि प्राचीन शस्त्रों के स्थान पर नियुद्ध, आसन, तथा खेल को संघ शिक्षा वर्गों के शारीरिक पाठ्यक्रम में स्थान मिला। 1977 में उनका केन्द्र कोलकाता बनाया गया तथा शारीरिक प्रमुख के साथ वे पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्र प्रचारक भी रहे। इस दौरान उन्होंने वहाँ की समस्याओं का गहन अध्ययन करने के साथ बांग्ला और असमिया भाषा पर भी अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया।
शाखा पर होने वाले ‘प्रातःस्मरण’ के स्थान पर नये ‘एकात्मता स्तोत्र’ एवं ‘एकात्मता मन्त्र’ को भी उन्होंने प्रचलित कराया। 1990 में उन्हें सह सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी गयी। संघ-कार्य विश्वव्यापी हो इस दृष्टि से उन्होंने ब्रिटेन, हालैंड, केन्या, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, हांगकांग, अमेरिका, कनाडा, त्रिनिडाड, टुबैगो, गुयाना आदि देशों का प्रवास भी किया।
दायित्व मुक्ति तक वे काफी स्वस्थ थे। उन्होंने 21 मार्च 2009 को मोहन भागवत को सरसंघचालक नियुक्त किया। दायित्व मुक्ति के बाद वह स्वस्थ ही इसलिए उनका अहर्निश प्रवास देशभर में जारी रहा। शाखा के वह बड़े ही आग्रही थे। अंतिम समय तक उन्होंने शाखा नहीं छोड़ी। वैसे इच्छामृत्यु सिद्ध संतों और तपस्वियों को प्राप्त होती है लेकिन सुदर्शन जी 15 सितंबर 2012 को नित्य की भांति घूमने गये लौटकर 6:30 बजे उन्होंने प्राणायाम आरंभ किया और 6:40 बजे वह परधाम को चले गये। संघ कार्य विस्तार और हिन्दू राष्ट्र के प्रति योगदान के लिए युगों—युगों तक सुदर्शन जी याद किये जाएंगे।

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