दस्तक-विशेष

मोदी सरकार के दो साल

आये नहीं अच्छे दिन
modi sarkarकेन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार जश्न में डूबी हुई है। खुद सरकार के मुखिया अपना 56 इंच का सीना ठोंककर उपलब्धियां गिना रहे हैं। मंत्रियों की फौज उप्र सहित देश के सरकार के कामों को गिना रहे हैं। पर सवाल यह है कि क्या वास्तव में पिछले दो साल में मोदी सरकार ने वह सब कर दिखाया है जो उसने चुनाव के दौरान वायदे किए थे। दस साल तक केन्द्र की यूपीए सरकार का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस ने दावा किया है कि मोदी सरकार ने अपने दो साल के कार्यकाल में कुछ भी नहीं किया। जो योजनाएं यूपीए सरकार में शुरू की गयी थीं, उन्हीं ही नाम बदल कर आगे बढ़ाया जा रहा है। विपक्ष मोदी सरकार से यह भी सवाल कर रहा है कि ‘अच्छे दिन’ का वायदा किया था लेकिन अभी तो ऐसा कुछ हुआ नहीं।
जब मई, 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार चुनी गई थी तब केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में एक उम्मीद जगी थी। उनसे ये भी उम्मीद थी कि वे न्यूनतम सरकार के साथ अधिकतम प्रशासन उपलब्ध करा सकते हैं। लेकिन बीते दो साल में इस सरकार ने ऐसे कदम नहीं उठाए जिससे ये लगे सरकार अपने वादों पर खरी उतरी है। हां, यह जरूर है कि मीडिया में मोदी छाये रहे। उनकी विदेश यात्राओं ने भी खूब सुर्खिंयां बटोरीं। नई सरकार बनने के बाद घर वापसी, गोवध पर पाबंदी और गोमांस खाने पर पाबंदी की मांग उठी। इसका नतीजा यह भी हुआ कि सभी दल एकजुट हो करके इस सरकार की ससंद में एक नहीं चलने दी और महत्वपूर्ण कानून पारित नहीं हुए।
लोकसभा के आंकड़ों के मुताबिक दो तिहाई केंद्रीय मंत्रालयों ने संसद में दिए 50 फीसदी से अधिक आश्वासनों को पूरा नहीं किया। संसद में सरकार के दिए आश्वासन और वादे की समय सीमा की समाप्ति नहीं होती है। संसद में सवालों का जवाब देते समय या बिल, प्रस्तावों पर चर्चा के दौरान मंत्रालय कुछ आश्वासन देते हैं, किसी मुद्दे पर विचार करने, कार्रवाई करने या बाद में जानकारी प्रदान करने का वादा करते हैं। यही आश्वासन संसदीय कार्य मंत्रालय और लोकसभा सचिवालय द्वारा संकलित कर सरकारी आश्वासनों के तौर पर संसदीय समिति के पास भेजा जाता है। समिति को ये सुनिश्चित करना होता है कि इन आश्वासनों को तीन महीनों के अंदर लागू किया जाए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
बीते दो सालों में भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 में संशोधन के मुद्दे पर विपक्षी दल कांग्रेस के साथ सरकार का टकराव हुआ। इसके अलावा कई अध्यादेशों के बाद भी संशोधन विधेयक लंबित हैं। जजों की नियुक्ति वाले कॉलेजियम सिस्टम को खत्म कर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने की कोशिश में सरकार का न्यायपालिका से टकराव हुआ। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को अमान्य करार दिया। कथित बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में कई प्रतिष्ठित कलाकारों व लेखकों द्वारा अपने सम्मान की वापसी कर सरकार के लिए नयी मुसीबत खड़ी की और यह मुद्दा लम्बे समय तक चर्चा में रहा। हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या पर चौतरफा आक्रोश उपजा। जिससे सरकार की किरकिरी हुई। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जब देशद्रोही गतिविधियों की बात सामने आयी और सरकार ने छात्रों पर एफआईआर दर्ज करायी तब भी मोदी सरकार की आलोचना हुई। भाजपा सदस्य व कलाकार गजेंद्र चौहान को भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान की कमान सौंपने को लेकर भी विवाद हुआ और छात्रों का आंदोलन किया लेकिन सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला। ललित मोदी और विजय माल्या के देश से फरार हो जाने पर भी मोदी सरकार की खासी किरकिरी हुई। इन्हीं दो वर्षों में ही खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री पर सवाल उठे। बजट पेश करते समय सरकार ने ईपीएफ निकासी पर टैक्स लगाकर नए विवाद को जन्म दिया। सरकार के इस निर्णय से कर्मचारियों में खासी नाराजगी देखी गयी। बाद में सरकार ने प्रस्ताव वापस ले लिया। इसके अलावा आभूषणों पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने के प्रस्ताव पर सर्राफा कारोबारियों ने ऐतिहासिक बंदी की लेकिन सरकार अपने निर्णय पर अडिग रही। जब प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान की बात की तो उन्होंने खूब तालियां बटोरीं लेकिन इस दिशा में अभी कुछ होता नहीं दिख रहा। कौशल विकास पर सरकार ने जोर दिया और ‘स्टैण्ड अप’ और ‘स्टार्ट अप इण्डिया’ जैसी योजनायें शुरू कीं लेकिन अब भी करोड़ों बेरोजगार हैं। ‘मेक इन इण्डिया’ स्कीम का भी अभी तक धरातल पर कुछ नहीं दिखा है। गंगा सफाई तो बहुत दूर की कौड़ी है।
यह सही है कि मोदी सरकार के मंत्रियों पर अब तक भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप नहीं लगा है। यदि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री अपना सीना ठोंकते हैं तो बुरी बात नहीं है। लेकिन काला धन वापस लाने के मुद्दे पर मोदी सरकार को जितने कदम आगे बढ़ाने थे वह नहीं बढ़ा पायी। सरकार बनते ही सिर्फ एसआईटी का ही गठन मोदी सरकार ने किया। एसआईटी गठित करना बाध्यता भी थी क्योंकि यह आदेश पूर्ववर्ती यूपीए सरकार को सर्वोच्च न्यायालय ने दिया था। लेकिन बीच में चुनाव आ जाने के कारण यूपीए सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो न्यायालय के फैसले को अगली सरकार को लागू तो करना ही था। विदेशों में अब भी काला धन है लेकिन कुछ अन्तरराष्ट्रीय नियमों के चलते सरकार इस दिशा में कुछ भी नहीं कर पा रही है। इतना जरूर है कि जो घरेलू कालाधन था वह अब रियल इस्टेट और सोना खरीद में नहीं लग पा रहा है। यही कारण है कि रियल इस्टेट का धंधा लगभग चौपट हो गया है।
उधर, आर्थिक सुधार के लिए जीएसटी जैसे विधेयक के रास्ते में अवरोध बनकर खड़ी कांग्रेस ने केंद्र को अहम आर्थिक सुधार पर मजबूती से आगे बढ़ने का सुझाव दिया है। ‘प्रगति की थम गई चाल, दो साल देश का बुरा हाल’ नाम से बकायदा बुकलेट जारी कर कांग्रेस ने पूरे देश में सरकार के खिलाफ अभियान शुरू किया है। कांग्रेस की तरफ से राजग सरकार के दो वर्ष पूरा होने पर एक रिपोर्ट कार्ड जारी किया है। 59 पृष्ठों की इस बुकलेट में सरकार पर हर मोर्चे पर असफल होने का आरोप लगाया गया है। भाजपा पर वैमनस्यता घोलने से लेकर लोकतंत्र की हत्या करने तक के आरोप लगाया गया है। मोदी सरकार पर बराबर यह आरोप लगते रहे हैं िकवह आरएसएस का एजेंडा पूरे देश में लागू कर रही है। महंगाई पर लगाम लगाने के सरकार के दावे को भी विपक्षी खारिज कर रहे हैं। सरकार के आंकड़े ही साबित कर रहे हैं कि महंगाई कम नहीं हुई है, बल्कि फिर से बढ़ने लगी है। सरकार का दावा है कि आर्थिक विकास की दर 7.5 फीसद है, जिसे केंद्र ने नए आंकड़ों के आधार पर तैयार किया है। इसे भी विपक्ष खारिज कर रहा है।
बुनियादी ढांचे पर हुआ काफी काम मोदी सरकार ने किया है। सरकार ने रेलवे में काम करने के पुराने तरीकों को बदला है। तमाम आलोचनाओं के बावजूद रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कई नए प्रयास किए जैसे ऑनलाइन टेंडर प्रक्रिया, पावर का विकेंद्रीकरण और ट्रेनों की स्पीड में बढ़ोतरी। सबसे बड़ी घोषणा बुलेट ट्रेन (मुंबई-अहमदाबाद) की थी, जिसकी लागत 97,636 करोड़ आएगी। रेलवे ने इस दौरान 1200 किमी लंबी नई लाइनें बिछाई हैं। वहीं सड़क और हाइवे पर इस दौरान काफी काम हुआ है। 2015-16 में 6,029 किलोमीटर निर्माण कार्य हुआ। 2014-15 में यह आंकड़ा 4,340 किलोमीटर था यानी करीब 39 प्रतिशत अधिक कार्य हुआ। इसके अलावा पिछले एक साल में दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत 7,108 गांवों तक बिजली पहुंचाई गई। इसके साथ ही सरकार ने उज्जवल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय) की शुरुआत की। =

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