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यूपी उपचुनाव नतीजे: फूलपुर में समाजवादी पार्टी की बढ़त बरकरार, गोरखपुर में बीजेपी आगे

उत्तर प्रदेश की दो सबसे वीआईपी लोकसभा सीटों फूलपुर और गोरखपुर में हुए उपचुनाव के बाद मतगणना जारी है। यूपी के डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद खाली हुई फूलपुर सीट पर कांटे की लड़ाई देखने को मिल रही है जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट पर बीजेपी उम्मीदवार ने बढ़त बनाई हुई है। उधर, गोरखपुर में मतगणना के दौरान ईवीएम पर विवाद हो गया है। समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं ने मशीन में गड़बड़ी को लेकर सवाल उठाया जिसे जिला प्रशासन ने नकार दिया। आइए आपको ले चलते हैं सीधे फूलपुर और गोरखपुर और जानते हैं कहां कौन आगे और पीछे चल रहा है।यूपी उपचुनाव नतीजे: फूलपुर में समाजवादी पार्टी की बढ़त बरकरार, गोरखपुर में बीजेपी आगे

फूलपुर 
एपी प्रत्याशी नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल बीजेपी प्रत्याशी कौशलेंद्र पटेल से 2441 मतों से आगे चल रहे हैं। फूलपुर में तीसरे चक्र की गणना के बाद समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नागेंद्र पटेल को अब तक 33,227 BJP के कौशलेंद्र सिंह पटेल को 30786 और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे बाहुबली अतीक अहमद को 7550 मत मिले हैं। कांग्रेस प्रत्याशी मनीष मिश्रा को सिर्फ 1398 मत मिले। फूलपुर में बीजेपी ने शुरुआत में बढ़त बनाई थी लेकिन बाद में एसपी उम्मीदवार नागेंद्र पटेल ने उन्हें पीछे छोड़ दिया। एसपी उम्मीदवार को बीएसपी के साथ गठजोड़ का फायदा होता दिख रहा है। 

गोरखपुर 
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट पर पहले राउंड में बीजेपी के प्रत्याशी उपेद्र शुक्ला करीब दो हजार वोटों से आगे चल रहे हैं। पहले राउंड की गिनती के बाद उन्हें 15771 और एसपी उम्मीदवार प्रवीण कुमार निषाद को 13911 वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को मात्र 547 वोट मिले हैं। 

फूलपुर में इतनी फंसी हुई क्यों ही बीजेपी? 
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ यह उपचुनाव सभी राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। सबसे ज्यादा लोकसभा सांसद देने वाले इस राज्य में फूलपुर और गोरखपुर के चुनाव नतीजे भविष्य की राजनीति की दशा और दिशा तय करेंगे। हालांकि बेहद कम वोटिंग के कारण राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं। फूलपुर और गोरखपुर की सीटों पर इस बार पिछले चुनावों के मुकाबले कम मतदान हुआ है। 

सीएम योगी आदित्यनाथ के गृहक्षेत्र गोरखपुर में 47.45 फीसदी वोटिंग हुई, वहीं फूलपुर में 37.39 फीसदी मतदान हुआ है। इसलिए जीत किसे मिलेगी इसे लेकर अभी भी स्थिति कुछ भी स्पष्ट नहीं है। 2014 में इन दोनों सीटों पर बीजेपी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। यहां तक कि एसपी, बीएसपी और कांग्रेस को मिले सम्मिलित वोट भी बीजेपी के विजयी उम्मीदवार से कम थे। 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान फूलपुर में 50.20 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि गोरखपुर में 54.64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। यानी मतदान में पिछले चुनाव के मुकाबले 12 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है। 

फूलपुर सीट पर अब बीजेपी के लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति फूलपुर सीट पर अब बीजेपी के लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति हो गई है। डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से खाली इस सीट पर बीजेपी हर हाल में बड़ी जीत दर्ज करना चाहती है जिससे 2019 के लिए एक बड़ा संदेश दिया जा सके। इसकी दो खास वजहें हैं। कांग्रेस ने वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को इलाहाबाद को केन्द्र में रखकर लड़ने का ऐलान किया है और एसपी-बीएसपी ने तालमेल कर भविष्य के लिए एक बड़ा संदेश दे दिया है।

दोनों ही लोकसभा सीटों पर शहरी इलाकों की कम वोटिंग बीजेपी के लिए चिंता वाली बात हो सकती है। उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट जिसका क्षेत्र इलाहाबाद के प्रमुख शहरी क्षेत्रों से लेकर यमुनापार के ग्रामीण इलाकों तक फैला हुआ है, बीजेपी की इस चिंता की सबसे प्रमुख वजह है। इलाहाबाद उत्तर विधानसभा में सबसे कम 21.65 फीसदी मतदान हुआ है। यह शहर का सबसे प्रबुद्ध इलाका माना जाता है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी भी इसी क्षेत्र में आती है। इसके अलावा मुरली मनोहर जोशी और प्रमोद तिवारी जैसे बड़े नेता भी इसी विधानसभा के निवासी हैं। कचहरी भी इसी इलाके में है।

डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से खाली हुई इस सीट पर कम मतदान से बीजेपी के अंदरूनी संगठन में हलचल मची हुई है। अगर अतीत पर गौर करें तो 5 विधानसभा सीटों वाली फूलपुर लोकसभा बीएसपी और एसपी के नेताओं के वर्चस्व वाली सीट कही जाती रही है। जानकारों का मानना है कि शहर के प्रबुद्ध इलाकों के वोटरों के क्षेत्र में मतदान का आंकड़ा गिरने का नुकसान बीजेपी को हो सकता है।

जानकारों का मानना है कि अगर इलाहाबाद के शहरी इलाकों में बीजेपी की वोटिंग कम होती है तो इसका सीधा लाभ एसपी को मिलेगा। दूसरी स्थिति यह भी है कि एसपी-बीएसपी के गठबंधन में इस सीट के पटेल, यादव, मुस्लिम और दलित वोटरों का गठजोड़ भी बीजेपी को झटका दे सकता है। वहीं दूसरी ओर पूर्व सांसद अतीक अहमद की निर्दलीय उम्मीदवारी की स्थिति में बीजेपी के स्थानीय नेता इस बात से आशान्वित हैं कि उनकी उम्मीदवारी से एसपी को होने वाला नुकसान बीजेपी के लिए संजीवनी सा हो सकेगा। 

गोरखपुर के 43 फीसदी वोट में कौन भारी? 
फूलपुर से करीब 250 किमी दूर गोरखपुर में भी 29 साल बाद संसदीय क्षेत्र की कमान गोरक्ष पीठ के बाहर होने जा रही है। सांसद का ताज किसे मिलेगा, यह तो मतगणना के बाद तय होगा लेकिन योगी आदित्यनाथ का इन चुनावों में उम्मीदवार न होना और कम वोटिंग इस बार बीजेपी के विजय रथ पर अंकुश लगा सकती है। गोरखपुर की स्थितियां इलाहाबाद से अलग तो हैं लेकिन सियासत का गणित विपक्ष के लिए भी उम्मीदें बढ़ाने वाला है। 

जिले में अंदरूनी ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई के बीच एसपी के प्रवीण निषाद अगर अपने कोर वोटर मुस्लिम, यादव और निषाद समाज के मतदाताओं को अपने पक्ष में करते हैं, तो इसका असर सीधे बीजेपी पर पड़ सकता है। वहीं इस सीट पर बीएसपी के गठबंधन का फायदा भी एसपी को मिलने की पूरी संभावना है। दूसरा पक्ष यह कि सीट पर बीजेपी ने वर्तमान अध्यक्ष उपेंद्र शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है।

शुक्ला से पूर्व योगी आदित्यनाथ इस सीट पर 5 बार सांसद रह चुके हैं। कहा जाता है कि योगी के सांसद रहते गोरखपुर की सत्ता का निर्धारण गोरक्षपीठ से ही होता था। इसके अलावा आसपास के इलाकों में भी योगी के प्रभाव का असर चुनावी विजय से मिलता था। ऐसे में चूंकि बीजेपी ने अपनी प्रत्याशिता मठ गोरक्षपीठ के बाहर के एक कार्यकर्ता को सौंपी है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि बीजेपी की यह विजय पूर्व के मुकाबले इस बार एक तरफा होती नहीं दिख रही है। 

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