दस्तक-विशेष

ये है अखिलेश की सपा

ज्ञानेन्द्र शर्मा
akhileshहली बार सत्तारूढ़ समाजवादी खेमे में आपसी मनमुटाव खुलकर सामने आया है। अंदर-अंदर बहुत दिनों से उठापटक चलती रही है लेकिन पहली बार यह अब खुलकर सामने आने लगी है। यह अन्दरूनी सत्ता संघर्ष मुलायम सिंह यादव की बरगदी छाया के तले पल नहीं पाता था। फिर भी नेताजी ने शिवपाल यादव को शांत रखने के लिए पार्टी का प्रदेश प्रभारी मनोनीत कर दिया था। इस पद का क्या महत्व है, किसी के समझ में आया क्योंकि अखिलेश यादव पहले से प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सुशोभित हैं। शिवपाल यादव पहले से पार्टी के अंदर अच्छा खासा दबदबा रखते हैं लेकिन उन्हें प्रभारी बना देने से उनके समर्थकों को बल मिला था और कुछ महत्वपूर्ण फैसले लेने के मामले में उनकी भूमिका बढ़ गई थी।
लेकिन यह मनमुटाव उस समय खुलकर सामने आ गया जब शिवपाल यादव ने पार्टी कार्यालय में एक समारोह में कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय करा दिया और इसका अखिलेश यादव ने खुलकर विरोध कर दिया और एक मंत्री बलराम यादव को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। मुख्यमंत्री के विरोध के चलते पार्टी के संसदीय बोर्ड ने विलय का फैसला रद कर दिया और बलराम यादव के मंत्रिमण्डल में वापसी का रास्ता साफ कर दिया। नतीजा यह हुआ जब बलराम वापस आए तो शिवपाल सिंह यादव मंत्रिमण्डल विस्तार कार्यक्रम में नहीं गए। पार्टी के अंदर जो समीकरण हैं, उनके तहत रामगोपाल यादव अखिलेश के साथ नजर आते हैं लेकिन यह कहा जाता है कि यह मनमुटाव चुनाव तक शांत कर लिया जाएगा- नेताजी तब तक सब कुछ शांत करा देंगे। इसीलिए फिलहाल यह नहीं माना जाना चाहिए कि इससे सपा की चुनावी संभावनाओं पर कोई असर पड़ेगा।

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