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राठौड़ का बड़ा दावा: मुद्रा योजना के 55% लाभार्थी आरक्षित वर्ग से लेकिन 63% पैसा सामान्य श्रेणी को!

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को लेकर केंद्रीय खेल एवं युवा मामलों के मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने एक ट्वीट किया था जिसमें दावा किया जा रहा है कि इस योजना के 55 फीसदी लाभार्थी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के हैं. हालांकि मुद्रा योजना के आंकड़ों पर विस्तार से नजर डालें तो तस्वीर दावे के बिल्कुल उलट दिखती है.

रिपोर्ट के मुताबिक ये सच है कि मुद्रा योजना में 55 फीसदी लाभार्थी एससी, एसटी, ओबीसी के हैं. एक अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2018 तक के मुद्रा योजना के लाभार्थियों में ओबीसी 32 फीसदी, एससी 18 फीसदी, एसटी पांच फीसदी और सामान्य श्रेणी 45 फीसदी हैं. इस हिसाब से मोदी सरकार का दावा शत-प्रतिशत सही साबित होता है लेकिन ये आंकड़े पूरी सच्चाई नहीं दिखाते.

सबका साथ सबका विकास!
वैसे भी भारत में तीनों पिछड़ी जातियों को मिलाकर देखें, तो इनकी कुल संख्या में भागीदारी 78.4 फीसदी तक बनती है. ऐसे में अगर 55 फीसदी लाभार्थी इस वर्ग से हैं भी, तो ये मुद्रा योजना में उनके कम प्रतिनिधित्व का ही सबूत हैं, जिनपर इठलाने का कोई कारण नहीं बनता. लेकिन अगर ये बताया जाए कि मुद्रा योजना में लोन के तहत बांटी गई रकम में से इन 55 फीसदी लाभार्थियों के हिस्से महज 37 फीसदी राशि आती है तो तस्वीर और भयावह हो जाती है.
मुद्रा योजना के पूरे आंकड़े देखें तो पता चलता है कि लाभार्थियों में भले ही एससी, एसटी और ओबीसी की संख्या ज्यादा हो, लेकिन इस योजना के तहत बांटे गए लोन का बड़ा हिस्सा सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों को ही मिलता है. 55 फीसदी आबादी के हिस्से में मुद्रा योजना का महज 37 फीसदी पैसा आता है जबकि 45 फीसदी सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों को इस योजना का 63 फीसदी पैसा बांटा गया है.

क्या है प्रधानमंत्री मुद्रा योजना?

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत देश के युवाओं को अपना खुद का कारोबार शुरू करने के लिए बिना गारंटी के बैंकों से लोन उपलब्ध कराया जाता है. अप्रैल 2015 में लांच हुई मुद्रा योजना में तीन तरह के लोन दिए जाते हैं.

50 हजार तक के लोन शिशु योजना के तहत, 50 हजार से 5 लाख तक के लोन किशोर योजना के तहत, 5 लाख से 10 लाख तक के लोन तरुण योजना के तहत दिए जाते हैं. वैसे मुद्रा योजना के तहत दिया गया औसत लोन 45,203 रुपये का है. आंकड़े बताते हैं कि असली भेदभाव यहीं होता है.

मुद्रा योजना में किस वर्ग के कितने लाभार्थी

कहने का अर्थ है कि 50 हजार तक के लोन लेने वालों में एससी, एसटी और ओबीसी के लाभार्थी ज्यादा हैं, लेकिन जैसे-जैसे लोन की राशि बढ़ती जाती है, इस श्रेणी के लाभार्थियों की संख्या घटती जाती है. 5 से 10 लाख तक का लोन तो तकरीबन 88 फीसदी तक सामान्य श्रेणी के हिस्से ही आया है.

10 लाख तक के लोन की बात करें तो 2015-26 में इसके 83.6 फीसदी, 2016-17 में 87.4 फीसदी और 2017-18 में 88.7 फीसदी लाभार्थी सामान्य श्रेणी के थे. वहीं 50 हजार से 5 लाख तक के लोन की बात करें तो इसके 2015-26 में 73.7 फीसदी, 2016-17 में 76.6 फीसदी और 2017-18 में 76.8 फीसदी लाभार्थी सामान्य श्रेणी के रहे, यानी एससी, एसटी और ओबीसी के हिस्से में सिर्फ 50 हजार तक के लोन ही ज्यादा आए.

किस वर्ग को लोन में मिली कितनी रकम?

2017-18 के दौरान जनरल कैटेगरी के लोगों को मुद्रा योजना के लोन की 63 फीसदी रकम मिली. दूसरे नंबर पर 22 फीसदी के साथ ओबीसी रहे. एससी को 11% और एसटी को 4% ही रकम मिली. कमोबेश यही हाल 2015-16 में रहा. इस दौरान भी सामान्य श्रेणी (63%), ओबीसी (22.4%), एससी (11.1%), एसटी (3.6%) पर भारी पड़ी.

2016-17 की बात करें, तो इस दौरान भी सामान्य श्रेणी (62.2%) का दबदबा ओबीसी (24.3%), एससी (10.6%) और एसटी (2.9%) पर रहा. यानी मुद्रा योजना का ज्यादातर पैसा सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों को ही मिला.

क्या रोजगार पैदा कर पाई स्कीम?

रिपोर्ट के मुताबिक इस योजना के तहत पिछले तीन साल के दौरान औसत लोन 45,203 रुपये का दिया गया. 5 लाख रुपये से ज्यादा के जितने लोन दिए गए, उनकी कुल लोन में 1.4 फीसदी की भागीदारी रही. आखिर कैसे इतनी छोटी रकम से कोई कारोबार फल-फूल सकता है और देश में नए रोजगार पैदा कर सकता है.

इसके अलावा मुद्रा योजना के मुख्य कार्यालय के पास इस योजना की बदौलत पैदा हुए नए रोजगार का कोई डाटा भी नहीं है. कुल मिलाकर मोदी सरकार भले ही मुद्रा योजना को लेकर सामाजिक और आर्थिक बदलाव का दावा करते हुए अपनी पीठ ठोंक रही हो लेकिन आंकड़े उसके दावों की तस्दीक उनती मजबूती से नहीं करते.

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