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राफेल पर पहली भारतीय एयरफोर्स ने भरी उड़ान, अगले साल मिलेगी पहली खेप

राफेल डील पर देश में मचे सियासी घमासान के बीच वायुसेना के डिप्टी चीफ एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार ने फ्रांस में पहली भारतीय राफेल काम्बैट एयरक्रॉफ्ट पर उड़ान भरी. अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस लड़ाकू विमान की पहली खेप अगले साल सितंबर में भारत आ सकती है.

राफेल पर पहली भारतीय एयरफोर्स ने भरी उड़ान, अगले साल मिलेगी पहली खेप

नांबियार ने फ्रांस के इसट्रेस एयर बेस से विमान के कॉकपिट में बैठकर इसका जायजा लिया. विमान ने करीब एक घंटे तक उड़ान भरी. भारतीय वायुसेना की 6 सदस्यीय टीम फ्रांस पहुंची हुई है और डासॉल्ट मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट का दौरा कर रही है.

इस जेट की खासियत ये है कि यह कई तरह के रोल निभा सकता है. हवा से हवा में मार कर सकता, हवा से जमीन पर भी आक्रमण करने में सक्षम है. इसमें परमाणु बम गिराने की भी ताकत है. साथ ही खास इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम भी लगा है जिसके जरिए दुश्मनों को लोकेट किया जा सकता है, उनके रडार को जाम भी कर सकते हैं.

इसी यूनिट में भारत के लिए राफेल विमान तैयार किया जा रहा है. अगले 67 महीनों में फ्रांस 36 राफेल विमान भारत को देगा जिसकी शुरुआत अगले साल सितंबर से होगी. बाकी विमान पहली डिलीवरी के अगले 30 महीनों के भीतर हिन्दुस्तान को मिलेंगे.

राफेल में खास सिस्टम है जो दुश्मनों के क्षेत्र में लड़ाई कर वापस आने में भी मदद कर सकता है. यानी यह काफी मजबूत और तकनीकी रूप से अपग्रेडेड जेट है. यह जेट इतना फ्लेक्सिबल है कि कम से कम ऊंचाई से लेकर अधिक से अधिक ऊंचाई तक, दोनों ही स्थितियों में बेहतर एक्शन ले सकता है.

राफेल जेट के अंदर METEOR और SCALP जैसी मिसाइलें भी तैनात की जा सकती हैं. इन विमानों के भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद देश की रक्षा ताकत मजबूद होगी.

खासकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस मामले पर लगातार केंद्र सरकार को घेर रहे हैं. पार्टी का आरोप हैं कि सरकार ने इस डील में बड़ा घोटाला किया है और यूपीए सरकार से महंगी डील कर निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाया है.

हालांकि इन दिनों देश में राफेल डील को लेकर राजनीति अपने चरम पर है. कांग्रेस रोज इस मुद्दे पर सड़कों पर उतरी हुई है और मोदी सरकार पर इस डील में घोटाले के आरोप लगा रही है.

मोदी सरकार भी कांग्रेस के हर आरोप का खुलकर जवाब देती रही है. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कोई भी प्रधानमंत्री ने अपने आप डील नहीं करते और न ही पीएम या राष्ट्रपति कभी डील की बारीकियों की चर्चा करते हैं, यह काम दोनों पक्षों के विशेषज्ञ करते हैं.

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