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रामराज्य : रामकथा आशुतोष राणा की कलम से (भाग-1)

स्तम्भ: भरत नंदीग्राम में ही रुक गए, उन्होंने निर्णय सुना दिया था कि प्रभु श्रीराम के अयोध्या वापस लौटने तक उनकी चरण पादुकाएँ की रघुवंश के सिंहासन पर रखी जाएँगी और स्वयं राजकुमार भरत, नगर में रहते हुए भी निर्वासित जीवन जीएगा। सम्पूर्ण प्रजा और राजपरिवार को शत्रुघन के साथ अयोध्या लौटा दिया गया था। अयोध्या के इतिहास में यह पहला अवसर था जब उसके गौरवशाली सिंहासन पर कोई पुरुष नहीं किसी प्रतीक को प्रतिष्ठित किया गया था। अनाथ हुई अयोध्या अपने इस दुर्भाग्य के लिए महारानी कैकेयी को दोष दे रही थी, जिसने अपनी कुत्सित इच्छा की पूर्ति के लिए अयोध्या को कुंठित करके छोड़ दिया था। सात भाइयों की इकलौती लाडली बहन कैकेयी, पिता अश्वपति जो पक्षियों की भाषा भी समझ लेते थे उनकी प्राणप्रिय बेटी कैकेयी आज अपमानित प्रवंचित सी अयोध्या के अपने महल में एकाकी खड़ी थिर नेत्रों से शिवालय में जलने वाले ज्योतिकलश की ज्योति को अपलक देख रही थी, कि तभी उनके कानों में अपनी प्रिय दासी दीपशिखा का स्वर सुनाई दिया- महारानी, …महारानी सुमित्रा और राजरानी श्रुतकीर्ति आपके दर्शन करना चाहती हैं।

रात्रि के तीसरे प्रहर सुमित्रा और शत्रुघन की पत्नी श्रुतकीर्ति का अपने महल में आना सुनकर कैकेयी का चित्त पल भर को किसी अनहोनी की आशंका से भर गया, किंतु अगले की क्षण उसने स्वयं को संयत किया और बिना कुछ कहे अपने महल के स्वागत कक्ष की ओर बढ़ गयी। कक्ष में पहुँचकर उसने देखा कि प्रत्येक परिस्थिति में सहज रहने वाली सुमित्रा आज थोड़ी असहज और आशंकित सी है, सुमित्रा ने कैकेयी के झुककर चरणस्पर्श किए, राम वनवास के बाद यह पहला अवसर था जब कैकेयी को किसी ने सम्मान दिया था, अन्यथा परिवार हो या प्रजा चारों ओर से कैकेयी के लिए मात्र धिक्कार के स्वर ही उठ रहे थे, और क्यों ना उठें ? कैकेयी इस बात को बहुत अच्छे से जानती थी कि कैकेयी का मान उसका सम्मान उसका प्राणप्रिय पुत्र राम ही है, इसलिए जब तक राम था तब तक मान था अब जब राम ही अयोध्या में नहीं है तो मान कहाँ से होगा ? कैकेयी ने सुमित्रा के दोनों कंधों को स्नेह से पकड़ लिया उसके स्पर्श में एक आश्वस्ति थी। यूँ तो इन दोनों की वय में कुछ ख़ास अंतर नहीं था किंतु जब से सुमित्रा इस घर में आयी है कैकेयी में उसे अपनी माता को छवि ही दिखाई दी है और कैकेयी ने भी अपने भाव भाषा व्यवहार से सुमित्रा के लिए सदैव माता के दायित्व का ही निर्वाह किया, पल भर के लिए भी उसके मन में सुमित्रा के लिए सहपत्नी का भाव नहीं आया। कैकेयी की उपस्थिति सुमित्रा में सुरक्षा का भाव उत्पन्न करती थी।

सुमित्रा अक्सर उससे कहा करती थी जीजी तुम इतनी सुंदर हो कि तुम्हें देखकर गूँगा व्यक्ति भी बोलने लगेगा। कैकेयी का क़द सामान्यतः महिलाओं के क़द की अपेक्षा बड़ा था, गुलाबी वर्ण, नीलकमल के जैसी आँखें, आँखों का रंग ऐसा जैसे एकदम ताज़ी शहद हो उसके नेत्रों में एक अजीब सी मोहिनी थी, थोड़ी सी स्वर्णिम आभा लिए हुए लम्बे लहराते केश, सीधी उठी हुई नासिका, और होंठ ऐसे, जैसे कामदेव ने अपने दोनों धनुषों को आपस में जोड़ दिया हो, लम्बी पतली ग्रीवा, देह के प्रत्येक अंग की बनावट ऐसी जैसे किसी योद्धा और नर्तक का सिद्ध शरीर होता है, वय का तो जैसे कोई प्रभाव ही नहीं था कैकेयी पर, उसको देखकर कोई भी उसे नवयौवना ही मानने पर विवश होता। क्षत्रित्व और स्त्रित्व का एक अनुपम उदाहरण था कैकेयी का व्यक्तित्व, कैकेयी को देखकर लगता की जैसे रण और रंग को जीतने वाला कोई महान साधक साकार हो गया हो, ऐसी कैकेयी के आत्मीय स्पर्श से सुमित्रा के आश्रुओं का बाँध जैसे फूट ही पड़ा और वह कैकेयी के कंठ से लगकर बोली- जीजी आज चार दिन हुए पुत्र शत्रुघन का कहीं पता ही नहीं है…
– आशुतोष राणा
क्रमशः …

रामराज्य : रामकथा आशुतोष राणा की कलम से…( भाग-2)

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