दस्तक-विशेष

रावत एक और परीक्षा में अव्वल नंबरों से पास

गोपाल सिंह, देहरादून
ravatकरीब दो माह का राजनीतिक बनवास झेलकर सत्ता में लौटने वाले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक और परीक्षा अव्वल नंबरों से पास कर ली। इस बार न केवल परीक्षा पास की बल्कि मुख्य विरोधी पार्टी भाजपा को गहरा जख्म भी दे गए। राज्य विधानसभा में सबसे बड़े दल का तमगा भी उससे छिन गया। वजह राज्यसभा चुनाव के ठीक एक दिन पहले उसके एक और विधायक ने इस्तीफा दे दिया। इसके लिए भाजपा की एक महिला नेता ने भी दल को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गईं। इससे भाजपा को दोहरा जख्म लगा। इससे भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों पर भी सवाल उठ गए हैं। अब उनको एक बार फिर सोचना होगा कि उनकी ओर से कहां पर रणनीतिक चूक हुई। हालांकि हरीश रावत का संकट अभी भी कम नहीं हुआ, बल्कि यूं कहें कि बढ़ गया है। जहां एक ओर उनको रिक्त दो मंत्रिमंडल के पदों को भरना चुनौती है, वहीं दूसरी ओर पार्टी के भीतर की गुटबाजी के साथ ही केंद्र सरकार की ओर से बजट पास न होने के चलते उनके हाथ बंध गए हैं। अब वे विशेष सत्र बुलाकर बजट व लेखानुदान सदन में लाते हैं तो एक बार फिर सदन में मत विभाजन की नौबत आएगी, जो किसी बड़े संकट से कम नहीं है।
बताते चलें कि उत्तराखंड में भी अन्य राज्यों के साथ पिछले दिनों राज्यसभा की एक सीट के लिए चुनाव हुआ था। राज्य सरकार खासकर मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए सदन के भीतर बहुमत सिद्ध करने के बाद यह दूसरा मौका था जब उनके रणनीतिक कौशल की परीक्षा होनी थी। इस परीक्षा का महत्व इसलिए भी बढ़ गया था कि उनके अपनों ने ही परेशानी खड़ी कर दी। सबसे पहले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने ही इस पर परेशानी खड़ी कर दी। इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेस के अंदर अभी भी सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। यहां पर बताते चलें कि मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी बेहद करीबी माने जाने वाले प्रदीप टम्टा को पार्टी हाईकमान से राज्यसभा उम्मीदवार घोषित कराया। इसके साथ ही पीडीएफ की ओर से भी उम्मीदवारी के दावे को मान मनौव्वल करके अपने पक्ष में कर लिया। पीडीएफ के दिनेश धनै को किसी प्रकार से मना लिया, लेकिन हरीश रावत की चुनौतियां यहीं पर समाप्त नहीं हुईं। अब उनके सामने मंत्रिमंडल में रिक्त पदों को भरने की चुनौती भी है। लगातार पार्टी के भीतर से ही इन दोनों पदों को भरने की मांग उठ रही है।
यहां तक कि प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने तो हरीश रावत पर कुमाऊं को अधिक तवज्जो देने की बात भी कह दी। हालांकि अब यह तो आने वाले वक्त में पता चलेगा कि उत्तराखंड की राजनीति किस करवट बदलेगी। अब किशोर उपाध्याय लगातार सरकार पर हमलावर हैं।
उनकी नाराजगी का कारण राज्यसभा न भेजे जाने को लेकर भी है। यहां पर बताते चलें कि किशोर उपाध्याय व दिनेश धनै एक ही विधानसभा क्षेत्र से आते हैं। ऐसे में दिनेश धनै को तवज्जो देने का सीधा सा अर्थ है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में किशोर को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहीं और ठिकाना ढूंढना पड़ेगा या फिर चुनाव ही नहीं लड़ेंगे। जाहिर है कि वे इस कारण राज्यसभा जाना चाहते थे, लेकिन दिनेश धनै की दावेदारी के चलते सीएम हरीश रावत को भी मौका मिल गया। उन्होंने झट से प्रदीप टम्टा को उम्मीदवार ही नहीं बनाया, बल्कि राज्य सभा भेजने में सफल रहे। खैर मुख्यमंत्री का आसन्न संकट है चुनावी नैया पार लगाने को बनाए गए बजट के अधर में लटकने से। 18 मार्च को सदन में नौ विधायकों के बागी होने के बाद सरकार का विनियोग बिल पास नहीं हुआ। राष्ट्रपति शासन के दौरान इस बिल को केंद्र सरकार के पास भेजा गया। केंद्र सरकार ने बजट पास करने के बजाय केवल चार माह के लिए लेखानुदान पास किया। केंद्र सरकार की इसके पीछे जो भी रणनीति हो, लेकिन मुख्यमंत्री के विकास के हाथ बंध गए हैं। वे न तो नई घोषणाएं कर पा रहे हैं और न ही पुरानी योजनाओं की गति बढ़ पा रही है। इससे वे काफी चिंितत हैं। इसके चलते सीएम लगातार प्रधानमंत्री से गुजारिश कर रहे हैं कि उत्तराखंड की वित्तीय स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री तत्काल बजट जारी कर दें। हरीश रावत को लग रहा है कि गुलाबी घोषणाओं पर केंद्र सरकार के लेखानुदान से पानी फिर गया है। उन्होंने अपने बजट में गांवों के विकास के लिए जो भी योजनाएं बनाई थीं, उन पर इसके बलबूते काम हो पाना संभव नहीं है। हालांकि भाजपा बार-बार यही बोल रही है कि सरकार अपना सत्र बुलाकर दोबारा बजट लाए। सरकार ने चार व पांच जुलाई को सत्र भी बुलाया है, लेकिन अभी तक यह नहीं कहा जा रहा है कि इस सत्र में बजट प्रस्ताव लाया जाएगा। इसकी वजह सरकार फिलहाल पीडीएफ व निर्दलीयों की बैसाखियों के सहारे चल रही है। अब वह नहीं चाहती है कि एक बार फिर बजट सदन में लाकर मत विभाजन की नौबत लाये। इसकी वजह कांग्रेस के भीतर की अंतर्कलह भी है। ऐसे में मुख्यमंत्री लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। वे प्रधानमंत्री को बजट पारित करने के लिए पत्र भी लिख चुके हैं।
बताते चलें कि मार्च में बजट सत्र के दौरान ही अचानक नौ विधायकों के बागी हो जाने से प्रदेश में 55 दिन तक राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। मुख्यमंत्री फिर से ऐसी नौबत नहीं आने देना चाहते हैं। ऐसे में उनका प्रयास यही है कि किसी भी प्रकार से केंद्र को भेजा गया बजट पारित हो जाये तो उनको सदन में मत विभाजन का सामना ही नहीं करना पड़ेगा। खैर हरीश रावत के लिए फिलहाल कई सारी मुश्किलें उनके सामने खड़ी हैं। अब देखना यह होगा कि राजनीति के चतुर खिलाड़ी माने जाने वाले रावत इन मुश्किलों पर कैसे काबू पायेंगे। ल्ल

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