दस्तक-विशेषस्तम्भ

विहिप की गौरवशाली ध्येय यात्रा के 55 वर्ष

  • हिन्दुओं में स्वाभिमान व सांस्कृतिक जागरण में सक्रिय विहिप


बृजनन्दन राजू : हिन्दू जीवनमूल्य,परम्परा, संस्कृति और मानबिन्दुओं के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करने के महान उद्देश्य को लेकर 1964 को “श्रीकृष्ण जन्माष्टमी” के शुभ अवसर पर मुम्बई में स्वामी चिन्मयानंद के आश्रम में पूज्य संतों की उपस्थिति में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना की गयी। आज विश्व हिन्दू परिषद अपनी ध्येययात्रा के पचपनवें पड़ाव पर पहुंच गयी है। इन 55 वर्षों में विहिप के इतिहास पर नजर डालेंगे तो विश्व के हिन्दुओं में स्वाभिमान जागरण और मानबिन्दुओं के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करने में विहिप सफल रही है। स्वतंत्रता के बाद देश की किसी भी समस्या के मूल में जायेंगे तो आपको कांग्रेस ही मिलेगी। देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि आजादी मिलने के बाद नेहरू कांग्रेस के हाथ में देश की सत्ता आयी। जिसका संस्कृति संस्कार से कोई नाता नहीं रहा। कई वर्षों की गुलामी के कारण हिन्दू स्वाभिमान शून्य हो गया था उनके मानबिन्दुओं को तोड़ दिया गया। लोग अपने को हिन्दू कहने में संकोच करते थे। लेकिन सरकार ने इसका परिमार्जन करने के लिए कुछ नहीं किया। केवल एक कार्य वह भी सरदार पटेल के कारण सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्वार हो सका। अयोध्या,मथुरा और काशी की मुक्ति के लिए सैकड़ों सालों से हिन्दू समाज संघर्ष कर रहा था। आजादी मिलने के तुरन्त बाद सरकार को पहल कर यह धर्मस्थल हिन्दू समाज को सौंप देना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ।
वनों गिरि कंदराओं तथा पहाड़ों पर रहने वाले अपने बंधुओं के पास हम शताब्दियों से नहीं गये। ईसाई पादरियों ने इसका लाभ उठाया। उन्हें आदिवासी नाम देकर हमसे विभक्त करने का प्रयास किया। विहिप ने इन बंधुओं को अपने केन्द्र में रखकर काम शुरू किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य श्रीगुरुजी की प्रेरणा से विहिप की स्थापना के बाद तय किया गया कि विहिप का कार्यक्षेत्र पूरा विश्व होगा। इसके बाद सम्पूर्ण जगत के हिन्दुओं का एक सम्मेलन बुलाने की योजना बनी। गुरू जी के निर्देश पर विहिप महामंत्री बाबा साहब आपटे ने इसके लिए देशव्यापी प्रवास शुरू किया। जनवरी 1966 को प्रयाग में कुंभ के अवसर पर प्रथम विश्व हिन्दू सम्मेलन आयोजित किया गया। यह भारत के भाग्योदय का क्षण था। सभी मठों के शंकराचार्य एक साथ मंच पर आये। इससे पहले शंकराचार्य कभी एक साथ आये ही नहीं थे। यह अपने आप में बहुत ही ऐतिहासिक घटना थी। प्रयागराज महाकुम्भ में परिषद द्वारा आयोजित प्रथम विश्व हिन्दू सम्मेलन संभवतः महाराजा हर्ष के बाद प्रयाग महाकुम्भ में सबसे विराट एकत्रीकरण था। मंच का नयनाभिराम दृश्य,हिन्दू समाज ने वर्षों बाद देखा था। सभी मत ,पंथ ,आध्यात्मिक परम्पराओं के पूज्य सन्त एक साथ मंच पर विराजमान थे। यह सम्मेलन परिषद की ध्येययात्रा का गौरवशाली क्षण था। इसके बाद परिषद ने देशभर में संगठन खड़ा करना शुरू किया।
फिर 1969 में कर्नाटक के उडूपी में संपन्न हिन्दू सम्मेलन में संघ के द्वितीय सरसंघचालककी उपस्थिति में पूज्य संतों ने अश्पृश्यता के विरुद्ध प्रस्ताव पास किया। संतों ने मंच से घोषणा कि — हिंदवः सोदराः सर्वे, न हिन्दू पतितो भवेत। मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मन्त्र समानता।।
हिन्दू समाज के लिये यह ऐतिहासिक क्षण था। जिसमें पूज्य संतो ने घोषणा की कि छुआछूत शास्त्रसम्मत नहीं है। इसी मंत्र को लेकर विहिप निरन्तर गतिशील है। 1981 तमिलनाडु में मीनाक्षीपुरम गांव में 1345 अपने वंचित समाज के हिन्दू बन्धुओं ने सामूहिक रूप से इस्लाम मत को अपना लिया, स्वाधीन भारत में यह अपने तरह की पहली दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। इस घटना से पूरा देश सकते में आ गया था।


विश्व हिन्दू परिषद ने पूज्य संतों के आदेश से,देश में “संस्कृति रक्षा निधि अभियान” से एक व्यापक जागरण का अभियान लिया। इस घटना के बाद विहिप ने सेवाकार्य और परावर्तन के क्षेत्र में कार्य करने का निर्णय लिया। देश भर से सेवा निधि एकत्रित की गयी जिसके माध्यम से देश के गिरिवासी और वनवासी क्षेत्र में सेवाकार्यों की शुरूआत की गयी। जिसका परिणाम आज देशभर में फैले सेवाकार्यों के रूप में देखने को को मिल रहा है। आज काश्मीर घाटी में भी विहिप के हजारों सेवाकार्य चल रहे हैं। 1983 में भाषा और प्रान्त के नाम पर जब पूरे देश में संघर्ष खड़ा करने और हिन्दू समाज की एकता को तार-तार करने का प्रयत्न किया जा रहा था ऐसे चुनौती भरे काल में परिषद ने “एकात्मता यात्रा “के नाम से पूरे देश को उत्रर से दक्षिण और पूर्व को पश्चिम से जोड़ने का काम किया। इस यात्रा के माध्यम से जहां पूरे देश में जन जागरण हुआ वहीं समाज में समरसता का भाव भी पैदा हुआ। इसके बाद वह गौरवशाली क्षण आता है जब विहिप के नेतृत्व में पूरा हिन्दू समाज एक साथ खड़ा हो जाता है।
7 अक्टूबर 1984 को बच्चा बच्चा राम का,जन्मभूमि के काम का। जिस हिन्दू का खून न खौला,खून नहीं वह पानी है।जन्मभूमि के काम ना आवे,वह बेकार जवानी है जैसे गगनभेदी नारों से अयोध्या गुंजाएमान हो रही थी। अयोध्या में लक्षाधिक रामभक्तों का जनज्वार, पूज्य महन्थ अवैद्यनाथ महाराज,महन्थ रामचन्द्र दास, नृत्यगोपाल दास , अशोक सिंघल,दाऊ दयाल खन्ना,ज्योतिष्पीठाधीश्वर पूज्य विष्णुदेवानंद महाराज और पूज्य रामानन्दाचार्य शिवरामाचार्य मंचासीन थे। जय श्रीराम के नारे दिग-दिगन्त में गूँज रहे थे। पूज्य सन्तों की उपस्थित में लाखों रामभक्तो ने संकल्प लिया कि हम रामजन्मभूमि का ताला खोलेंगे भव्य राम मंदिर बनायेंगे। संतों ने कहा कि रामजी का विग्रह 1949 से ताले में बन्द है उसको हम मुक्त करेंगे। इसके बाद विहिप ने एक के बाद एक जनजागरण और रामजन्मभूमि मुक्ति के आन्दोलन शुरू किये। विश्व हिन्दू परिषद ने देश के साढ़े तीन लाख गांवों में श्रीरामशिला का पूजन कराया। देश से ही नहीं बल्कि विश्वभर से पूजित शिलाएं अयोध्या पहुंचने लगीं। वह सभी पूजित शिलाएं आज भी अयोध्या की कार्यशाला में सुरक्षित रखी हैं। इसके बाद विहिप ने शिलान्यास की घोषणा कर दी। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। सरकार ने मना किया। 09 नवम्बर 1989 को लाखों कारसेवक अयोध्या में जुटे थे। प्रशासन के हाथ पांव फूल गये। महंत अवैद्यनाथ को मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने गोरखपुर राजकीय विमान भेजकर लखनऊ वार्ता के बुलाया। मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और बूटा सिंह ने कहा कि महाराज जी जिस स्थान पर आप शिलान्यास करना चाहते हैं न्यायालय ने उसे विवादित घोषित कर रखा है आप अलग हटकर शिलान्यास कर लें। महंत जी ने कहा कि हमें यह निर्णय स्वीकार नहीं है। हमने 02 नवम्बर को जहां पर सोच विचार कर झंडा गाड़ा है वहीं शिलान्यास होगा। महंत जी ने कहा कि यदि आप शिलान्यास में बाधा डालेंगे तो हम सत्याग्रह करेंगे। सत्याग्रह करने की तैयारी के साथ रामभक्त अयोध्या पहुंचे हैं। महाराज जी के दृढ़ संकल्प और रामभक्तों की संकल्पशक्ति के सामने कांग्रेस सरकार झुकी ओर जिस स्थान पर संतों ने तय किया था वहां पर 10 नवम्बर 1989 को साधु संतों के नेतृत्व में हरिजन बंधु कामेश्वर चौपाल के हाथों मंदिर के शिलान्यास की पहली ईंट रखवाई गई। संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह हो.वे.शेषाद्रि,महंत रामचन्द्र दास परमहंस और अशोक सिंहल इसके साक्षी बने। इसके बाद विहिप ने 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में कारसेवा की घोषणा की। तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अयोध्या में परिंदा पर भी नहीं मार सकता। अयोध्या की ओर जाने वाली रेलगाड़ियां और बस रोक दी गयी। प्रदेशभर में संघ व विहिप से जुड़े कार्यकर्ताओं की गिरफतारियां हुईं। कारसेवकों ने इसे चुनौती के रूप में लिया। पूरे देशभर से लाखों कार्यकर्ता पुलिस से बचते बचाते खेत खलिहानों से होते हुए अयोध्या में दाखिल हो गये। एक दिन पहले तक जहां अयोध्या में सन्नाटा था वहीं दूसरी ओर अयोध्या की सड़कें रामभक्तों से फुल हो चुकी थी। पुलिस ने राममंदिर के डेढ़ किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी। कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई और 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों पर चली गोलियों में पांच लोगों की मौत हुई थीं। इस घटना के बाद पूरे देश का माहौल पूरी तरह से गर्म हो गया। इस गोलीकांड के दो दिनों बाद ही 02 नवंबर को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए। कारसेवकों का जत्था करीब 5-5 हजार कारसेवकों के साथ अलग-अलग दिशाओं से हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ रहा था। प्रशासन उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब ढेड़ दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई। विहिप ने उस ह्रदय विदारक दृश्य को जनता के सामने रखा किस प्रकार मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर गोली चलवाई। भारी मन से कारसेवक वापस अपने घरों को लौटे। समय चक्र बदला और उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बन गये। 06 दिसम्बर 1992 को विहिप ने कारसेवा की घोषणा की। कल्याण सिंह ने कहा कि अयोध्या में शांति व्यवस्था कायम रखना हमारी जिम्मेदारी है। देशभर से एकत्रित कारसेवकों ने जिसकी वर्षों से प्रतीक्षा थी,1528 से हिन्दू पौरुष को चुनौती दे रहा कलंक का प्रतीक “ढांचा”कारसेवकों के कोप से ढह गया। यह हिन्दू समाज का शौर्यावतार था। कल्याण सिंह ने कुर्सी सत्ता की परवाह न करते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय भाजपा में एक मात्र कल्याण सिंह ही थे जिन्होंने बाबरी विध्वंस की जिम्मेदारी ली थी। उसी दिन से रामलला टाट के मन्दिर में विराजमान हैं, प्रस्तावित मन्दिर के 70 प्रतिशत पत्थर और गांव गांव से पूजित शिलाएं भव्य राममन्दिर निर्माण की प्रतीक्षा कर रहीं हैं। विहिप की यात्रा में अशोक सिंघल के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। उनके सदप्रयत्नों से जो साधु संत मठों से निकलते नहीं थे वह अपना —अपना मठ छोड़कर जंगल—जंगल घूमे। हिन्दू परिषद ने हिन्दू जागरण के साथ—साथ राममंदिर के उद्यार के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ी। जिसका परिणाम जल्द आने ही वाला है। अब नियमित सुनवाई हो रही है। 30 सितम्बर 2010 को न्यायालय ने भी रामलला की जन्मभूमि यही है, इसे स्वीकार किया था। आज यह विषय देश की सबसे बड़ी अदालत में है। भव्य राम मन्दिर निर्माण के घड़ी की पदचाप स्पष्ट सुनाई पड़ रही है। इसके अलावा चाहे रामसेतु की रक्षा का विषय रहा हो या अमरनाथ श्राइन बोर्ड का मामला रहा है हिन्दू मानबिन्दुओं की रक्षा का जहां विषय आया है उसको लेकर विहिप ने देशव्यापी आन्दोलन ही नहीं किया बल्कि उसकी रक्षा की है। अब विश्व भर में फैले करोड़ों रामभक्तों का स्वप्न साकार होने वाला है और भव्य राम मंदिन निर्माण की शुभघड़ी आने वाली है।
विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना दिवस पर विशेष
(लेखक प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से जुड़े हैं)

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