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शिक्षक दिवस 2018: ये हैं 10 पौराणिक गुरु और उनके महान शिष्य, जिन्होंने रची कई महान गाथाएं

प्रत्येक साल सितंबर महीने की 5 तारीख को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिन भारत के उप-राष्टपति और महान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन जन्म हुआ था। उनके जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

शिक्षक दिवस 2018: ये हैं 10 पौराणिक गुरु और उनके महान शिष्य, जिन्होंने रची कई महान गाथाएं

पुरातन काल से ही भारत में गुरु और शिष्य की परंपरा चली आ रही है। प्राचीन काल से ही भारत में गुरुओं को सबसे ऊंचा स्थान मिला हुआ है यहां तक गुरु का दर्जा भगवान से ऊपर माना गया है। इस शिक्षक दिवस के मौके पर आइए जानते हैं 10 पौराणिक गुरु और उनके शिष्यो के बारे में।

महर्षि वेदव्यास
प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के अनुसार महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा प्राप्त है। तभी तो गुरु पूर्णिमा वेदव्यास को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार माने जाते थे। इनका पूरा नाम कृष्णदै्पायन व्यास था। महर्षि वेदव्यास ने ही वेदों, 18 पुराणों और महाकाव्य महाभारत की रचना की थी। महर्षि के शिष्यों में ऋषि जैमिन, वैशम्पायन, मुनि सुमन्तु, रोमहर्षण आदि शामिल थे।

महर्षि वाल्मीकि
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। महर्षि वाल्मीकि कई तरह के अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कारक माने जाते  हैं। भगवान राम और उनके दोनो पुत्र लव-कुश महर्षि वाल्मीकि के शिष्य थे। लव-कुश को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा महर्षि वाल्मीकि ने ही दी थी जिससे महाबलि हनुमान को बंधक बना लिया था।

गुरु द्रोणाचार्य
महाभारत में धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्रों और राजा पांडु के 5 पुत्र इनके शिष्य थे। द्रोणाचार्य एक महान धनुर्धर गुरु थे गुरु द्रोण का जन्म एक द्रोणी यानि एक पात्र में हुआ था और इनके पिता का नाम महर्षि भारद्वाज था और ये देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। अर्जुन और एकलव्य ये दोनो श्रेष्ठ शिष्य थे। अपने वरदान की रक्षा करने के लिए इन्होनें एकलव्य से उसका अंगूठा गुरु दक्षिणा के रुप में मांग लिया था। गुरु द्रोण देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। दुर्योधन, दु:शासन, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर आदि इनके प्रमुख शिष्यों में शामिल थे।

गुरु विश्वामित्र
विश्वामित्र महान भृगु ऋषि के वंशज थे। विश्वामित्र के शिष्यों में भगवान राम और लक्ष्मण थे। विश्वामित्र ने भगवान राम और लक्ष्मण को कई अस्त्र-शस्त्रों का पाठ पढ़ाया। एक बार देवताओं से नाराज होकर उन्होंने अपनी एक अलग सृष्टि की रचना कर डाली थी।

परशुराम
परशुराम जन्म से ब्राह्रमण लेकिन स्वभाव से क्षत्रिय थे उन्होंने अपने माता-पिता के अपमान का बदल लेने के लिए पृथ्वी पर मौजूद समस्त क्षत्रिय राजाओं का सर्वनाश कर डाला था। परशुराम के शिष्यों में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धा का नाम शामिल है।

दैत्यगुरु शुक्राचार्य
गुरु शुक्राचार्य राक्षसो के देवता माने जाते है उनका असली नाम शुक्र उशनस है। गुरु शुक्राचार्य को भगवान शिव ने मृत संजीवनी दिया था जिससे कि मरने वाले दानव फिर से जीवित हो जाते थे। गुरु शुक्राचार्य ने दानवों के साथ देव पुत्रों को भी शिक्षा दी। देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच इनके शिष्य थे।

गुरु वशिष्ठ
गुरु वशिष्ठ की गिनती सप्तऋषियों में भी होती है। सूर्यवंश के कुलगुरु वशिष्ठ थे जिन्होंने राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए कहा था जिसके कारण भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शुत्रुघ्न का जन्म हुआ था। इन चारों भाईयों ने इन्हीं से शिक्षा- दीक्षा ली थी।

देवगुरु बृहस्पति
बृहस्पति को देवताओं के गुरु की पदवी प्रदान की गई है। देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण एवं रक्षा करते हैं तथा दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं। युद्ध में जीत के लिए योद्धा लोग इनकी प्रार्थना करते हैं।

गुरु कृपाचार्य
गुरु कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे। भीष्म ने इन्हें पाण्डवों और कौरवों को शिक्षा-दिक्षा देने के लिए नियुक्ति किया था। कृपाचार्य अपने पिता की तरह धनुर्विद्या में निपुण थे। कृपाचार्य को चिरंजीवी होने का वरदान भी प्राप्त था। राजा परीक्षित को भी इन्होंने अस्त्र विद्या का पाठ पढ़ाया था।

आदिगुरु शंकराचार्य
जगदगुरु आदि शंकराचार्य हिन्दुओं के धर्म गुरु माने जाते हैं। इनका जन्म केरल राज्य के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 7 साल की उम्र में इन्होंने वेदों में महारत हासिल कर लिया था। शंकराचार्य ने भारत में कई मठ और  4 पवित्र धामों की स्थापना की थी। सनातन धर्म में मान्यता है कि आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के ही अवतार थे।

 

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