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श्री श्री रविशंकर ने कहा, बाबरी मस्जिद छोड़कर भरोसा जीते मुस्लिम समाज

नई दिल्ली : आध्यात्मिक गुरु और ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग फॉउंडेशन’ के स्थापक श्री श्री रवि शंकर ने ये बात बहुत ज़ोर देकर कही कि बाबरी मस्जिद/राम जन्म भूमि के विवाद का हल अदालत के बजाय इसके बाहर निकाला जाना चाहिए। इस मुद्दे पर फ़िलहाल उच्चतम न्यायालय में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के ख़िलाफ़ चार सिविल सूट में दायर 13 अपीलों की सुनवाई चल रही है। इस मामले को तीन जजों की खंडपीठ सुन रही है जिसमें चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नाज़ीर शामिल हैं। मुक़दमे की सुनवाई तेज़ी से हो रही है। समझा जाता है कि अक्टूबर में अपने रिटायरमेंट से पहले मुख्य जस्टिस दीपक मिश्रा इस पर फ़ैसला सुना सकते हैं। 62 वर्षीय योग गुरु अदालत के बाहर पक्षों के बीच समझौता कराने की कोशिश के सिलसिले में हिन्दू और मुस्लिम नेताओं से मिलते रहे । श्री श्री रविशंकर ने कहा कि उनकी कोशिश रंग ला रही हैं।
उनका दावा है कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के 500 मज़हबी नेताओं और बुद्धिजीवियों से मुलाक़ात की है जो उनके सुझाव से सहमत हैं। लेकिन मुक़दमे के एक ख़ास पक्ष सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की हमेशा से ये दलील रही है कि वो केवल अदालत के फ़ैसले को ही स्वीकार करेगा।हालांकि श्री श्री रवि शंकर का कहना है कि अदालत का फ़ैसला दिलों को नहीं जोड़ सकता। वे कहते हैं, किसी एक वर्ग को जीत मिले और दूसरा वर्ग हारा हुआ महसूस करे, ये हमारे देश के हित में नहीं है। सबसे सलाह मशवरा करने के बाद हमने ये फॉर्मूला दिया है, जिसमें सब की जीत हो। वो मंदिर भी बनाएं और वो मस्जिद भी बनाएं, दोनों उत्सव मनाएं, यही मेरा उद्देश्य था। वहीँ श्री श्री का सुझाव है कि मुस्लिम समुदाय राम मंदिर पर अपना दावा छोड़ दें और इसके एवज़ में उन्हें अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन दी जाए। उनके इस मशवरे को जहाँ कई लोगों ने सराहा है तो कई और लोगों ने इसकी आलोचना भी की है। मुसलमानों का शिया वक़्फ़ बोर्ड इस सुझाव के पक्ष में हैं। रवि शंकर खुद भी स्वीकार करते हैं कि दोनों पक्षों में उनके इस सुझाव की आलोचना भी हुई है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि विवाद के मुक़दमे की सुनवाई भूमि विवाद की तरह से की जा रही है। श्री श्री रवि शंकर के आश्रम की शाखाएं 150 से भी अधिक देशों में है जहाँ वो योग के ज़रिये शान्ति का पैग़ाम देते हैं। वो अमन का संदेश लेकर पाकिस्तान भी जा चुके हैं और इराक़ भी। उन्होंने इसराइली और फलस्तीनी सीमा पर भी शांति के शिविर लगाए हैं और दक्षिण अमरीका में भी शांति स्थापित करने में मदद की है। बेंगलुरु से दो घंटे की दूरी पर एक गाँव में स्थित उनका आश्रम काफ़ी बड़ा है जहाँ देश भर से लोग तनाव को दूर करने आते हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि वो केंद्रीय सरकार के इशारे पर ये बीच बचाव कर रहे हैं लेकिन उनके अनुसार इस कार्य में उनका सरकार से कोई लेना-देना नहीं। मुस्लिम समुदाय में एक धारणा ये भी है कि श्री श्री मुक़दमे से जुड़े हिंदू पक्ष के साथ हैं जिसे वो नकारते हैं। वो बताते हैं कि ये उनकी ग़लत फहमी है। हम तो देश के पक्ष में हैं और देश में शांति के पक्ष में हैं। आध्यात्मिक पक्ष हमेशा निष्पक्ष होता है। मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग उन्हें बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीब मानते हैं और इसी वजह से उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाया जाता है। बीजेपी के हर चुनावी घोषणापत्र में राम मंदिर के निर्माण का वादा किया जाता रहा है। दूसरी तऱफ श्री श्री की कोशिशों के इलावा मस्जिद-मंदिर विवाद को सुलझाने के कई विकल्प सामने आते रहे हैं। एक सुझाव ये भी है कि विवादित संरचना को एक संग्रहालय में बदल दिया जाए। तो क्या योग गुरु किसी ऐसे सुझाव का समर्थन करेंगे जिसमे न मंदिर हो और न मस्जिद के निर्माण की बात? श्री श्री कहते हैं कहते हैं, “देखिए हमें प्रैक्टिकल सोचना पड़ेगा, वहां अभी मंदिर है। मस्जिद कहाँ है? अभी वहां राम लला जी बैठे हैं। करोड़ों लोगों की आस्था इससे जुड़ी है, क्या इसका सम्मान नहीं करना चाहिए? मुस्लिम समुदाय में कई लोग उनके सुझाव को मानने के लिए शायद तैयार हो जाएं लेकिन इसके साथ ही उनकी कुछ आशंकाएं भी हैं। उन्हें डर इस बात का है कि बाबरी मस्जिद दे दी तो उनसे काशी विश्वनाथ और मथुरा में विवादास्पद धार्मिक स्थानों को देने की मांग भी की जा सकती है। श्री श्री कहते हैं, ये हम ने भी सुना है, भाई एक मामला तो आप ठीक करिए, इससे आप लोगों का गुडविल हासिल करोगे। वो आगे कहते हैं, इसको करने से जो लाभ है और नहीं करने से जो नुक़सान है उसको नाप-तौलकर हमें फैसला करना पड़ेगा, लेकिन क्या आध्यात्मिक गुरु इस बात की गारंटी देने को तैयार हैं कि मुस्लिम समुदाय से बाबरी मस्जिद के बाद मथुरा और काशी की मस्जिदों से दावा छोड़ने को न कहा जाए, जिसका उन्हें डर है? रविशंकर ने कहा, गारंटी देने वाले हम कौन होते हैं? कोई भी मांग कर सकता है, इस देश में किसी को भी मांग करने का अधिकार है। उनके अनुसार उनसे गारंटी माँगना भी उचित नहीं होगा, हाँ, वो ये स्वीकार करते हैं कि वो इस मांग के खिलाफ होंगे, मैं उनके समर्थन में नहीं हूँ।

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