संपादकीय

सम्पादकीय : मार्च 2016

raqmहमारे देश के राजनैतिक इतिहास की विवेचना करें तो प्रमुखता से यह चीज सामने आयेगी कि यहां की राजनैतिक पार्टियां अपने लोकप्रिय चुनावी मुद्दों के साथ सत्ता पर काबिज तो हो जाती हैं लेकिन उन्हीं चुनावी वादों को पूरा करना जब उनके लिए गले की फांस बन जाता है, तब सुनियोजित षड्यंत्र के द्वारा धर्म, जाति, सम्प्रदाय के आधार पर समाज में पहले से व्याप्त कुरीतियों और जख्मों को बड़े ही चालाकी से उभारकर जनता को असल मुद्दों से भटकाने की चाल चली जाती है। और देश का आम जनमानस अपनी बौद्धिकता को किनारे रख इन सुनियोजित षड्यंत्रों का शिकार होकर असल मुद्दों को खुद ही पीछे छोड़ देता है। राजनीति के माहिर खिलाड़ी सत्ता और विपक्ष में अपनी भूमिका के अनुसार इसका अपने पक्ष में बेहतर तरीके से इस्तेमाल करते हैं। सच क्या है, झूठ क्या है, इससे किसी को कोई लेना-देना नहीं होता। वर्तमान समय में देशप्रेम और देशद्रोह एवं लोकतंत्र में विचारों की स्वतंत्रता पर गरमागरम बहस जारी है। इसकी शुरुआत तब हुई जब जेएनयू के वामपंथी गुट के एक आयोजन में कुछ छात्रों द्वारा देशविरोधी नारे लगाये गये। इसके बाद दो सशक्त विचारधाराएं वामपंथ और दक्षिण पंथ आमने-सामने हैं और अपने को देशभक्त और दूसरे को देशद्रोही साबित करने पर उतारू हैं। दूसरी घटना हरियाणा में जाट आंदोलन की है। आरक्षण की मांग करते जाट समुदाय ने आगजनी और लूटपाट का नया इतिहास लिख दिया। मांग जाट आरक्षण की है पर उसमें छिपे निहितार्थ जाट बाहुल्य हरियाणा में पंजाबी मुख्यमंत्री को बेदखल करने की साजिश मात्र ही प्रतीत होती है। यह कैसा आंदोलन है जिसमें लूटपाट, आगजनी के साथ-साथ महिलाओं के साथ रेप तक की खबरें आ रही हैं।
देश के बंटवारे के समय से आज तक समय-समय पर कोई न कोई मुद्दा सत्ता के खेल को बनाये रखने के लिए हर बार नयी कहानी और नये रूप-रंग के साथ देश और समाज को बांटने का काम करता रहा है। जो जन भावनाओं को इस कदर प्रेरित कर उन्माद की ओर ले जाता है जिसकी वजह से वे पक्ष और विपक्ष की भूमिका के अलावा संतुलित और निष्पक्षता के साथ उस मुद्दे या विषय का सही आकलन कर ही नहीं पाते। धर्म, जाति, पंथ इतना हावी हो जाता है कि इससे इतर सोचने की गुंजाइश ही नहीं रहती। राजनैतिक षड्यंत्रों में फंसकर अपने को दूसरे से अलग मानकर उसकी आलोचना और उसके बहिष्कार तक तो ठीक किन्तु तिरस्कार के स्तर तक पहुंच जाते हैं और समाज में प्रेम और सद्भाव की जगह वैमनस्यता भर देते हैं जो देश की अखण्डता के लिए घातक है। देश की आजादी के साथ ही धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हुआ और हिन्दुस्तान-पाकिस्तान दो राष्ट्र बन गये और भारत-पाकिस्तान का युद्ध और उसके बाद भारत-चीन के साथ युद्ध से घायल देश कुछ सशक्त होने की तरफ बढ़ा ही था कि देश के दो प्रधानमंत्रियों की बारी-बारी से हत्या हो गयी जिसका मूल कारण एक विशेष वर्ग की विचारधारा का विभत्स हो जाना ही था। इसी घटना के बाद देश की राजनीति में राष्ट्रीय पार्टियों की भूमिका के बाद क्षेत्रीय दलों का उदय होना शुरू हो गया और धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल जातियों की जनसंख्या के आधार पर जाति की विचारधारा को उभार कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंककर सत्ता पाने में सफल हुए और लम्बे अंतराल तक राज्यों की सत्ता में काबिज रहने के बाद अब कमजोर पड़ते क्षेत्रीय दलों पर फिर से एक विशेष विचारधारा की राष्ट्रीय पार्टी हावी हो रही है जो अपने विस्तार के रूप में देश में फैले असंतुलन को साधने के बजाय अपने हित के लिए एक विशेष विचारधारा को अपने अनुरूप गढ़कर देश की सत्ता को लम्बे समय तक बनाये रखना चाहती है और असल मुद्दों- महंगाई, विकास, भ्रष्टाचार जैसे अपने वादों और असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटका कर देश के अंदर ही दो विचारधाराओं को देशप्रेम और देशद्रोह का रूप देकर जनभावनाओं को गलत दिशा में बढ़ने दे रही है जिससे जनता का ध्यान असल मुद्दों से हटकर सुनियोजित तरीके से उठाये गये इन वैचारिक मुद्दों में ही फंसकर रह जाये और वे अपनी राजनीतिक चालों में कामयाब हो सकें। जिसमें वे काफी हद तक कामयाब भी होते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन इसकी परिणति कितनी भयावह होगी, इसका शायद किसी को अंदाजा नहीं है। अंग्रेजों के सिद्धांत- फूट डालों राज करो का सिद्धांत आज भी बदस्तूर जारी है, उससे भी देश के टुकड़े हुए थे और आज के परिवेश में भी इस सिद्धांत पर चलकर समाज के टुकड़े किये जा रहे हैं। तो क्या हम इन राजनेताओं की सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी दांव पर लगा देने की चालों को समझेंगे या यूं ही उनके द्वारा भड़काई गयी भावनाओं में सम्मिलित होकर क्षणिक लाभ के लिए अपने देश को बर्बाद होने देंगे। हम लोगों को जाति-धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रहित और समाजहित में हर गलत बात के विरोध के साथ सही बात के समर्थन में मजबूती से खड़े रहना होगा। जाति-धर्म से ऊपर उठकर मानवता धर्म के साथ राष्ट्रहित को ही सर्वोपरि रखकर अपना समर्थन और विरोध दर्ज कराते रहना यही एक सच्चे राष्ट्रभक्त का कर्तव्य है।

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