दस्तक-विशेष

सिर्फ शिगूफा है शराबबंदी!

jitendra shuklaदेवव्रत
भाारतीय राजनीति में अब् एक नया मुद्दा उभरकर सामने आया है और वह है शराब बंदी यानि शराब पीने पर पूर्ण प्रतिबंध। विभिन्न राज्य सरकारों के इस फैसले का देश की आधी आबादी यानि महिलाओं ने खुलकर समर्थन किया। बिहार में भी विधानसभा चुनाव के दौरान हालांकि महागठबंधन की ओर से शराब बंदी लागू करने का कोई लिखित वादा नहीं किया गया था लेकिन जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार चुनाव प्रचार के दौरान लगातार शराब बंदी की वकालत करते दिख रहे थे। हालात यह बने कि यह बात अन्दर ही अन्दर एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गयी और नीतीश कुमार को इसका लाभ भी मिला। सरकार बनते ही नीतीश कुमार ने ऐलान कर दिया कि पहली अप्रैल से बिहार में शराब पर पूर्ण पाबंदी होगी। बिहार के नतीजों को ध्यान में रखते हुए तमिलनाडु में जयललिता ने भी विधानसभा चुनाव में पूर्ण शराब बंदी का वादा किया और नतीजा यह हुआ कि उन्होंने सत्ता में वापसी की, जबकि ऐसा कभी भी तमिलनाडु की राजनीति में नहीं हुआ है। अब नीतीश कुमार उप्र में इसी मुद्दे को लेकर निकल पड़े हैं। हालांकि उप्र विधानसभा चुनाव के लिए अब ज्यादा समय नहीं बचा है लेकिन फिर भी नीतीश का यह दांव कई दलों के लिए नयी मुसीबत सरीखा हो सकता है।
यह सही है कि शराब एक अरसे से हमारे समाज को नासूर की तरह साल रही है। इसके कारण कितने ही परिवार उजड़ गए और कई लोगों को लाचारी का मुंह देखना पड़ा। महात्मा गांधी शराब के सेवन को एक प्रमुख सामाजिक बुराई मानते थे। उन्होंने भारत में इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की वकालत की थी। इसीलिए भारत के संविधान निर्माताओं ने देश को चलाने के निर्देशक नियमों में धारा 47 को शामिल किया, जिसमें कहा गया है कि चिकित्सा उद्देश्य के अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेयों तथा ड्रग्ज पर सरकार प्रतिबंध लगा सकती है। गांधी जी की इच्छा को देखते हुए विभिन्न राज्यों, जिनमें तत्कालीन मद्रास प्रोविंस तथा बॉम्बे स्टेट व कई अन्य राज्य शामिल थे, ने शराब के खिलाफ बकायदा कानून पारित कर दिया। 1954 में भारत की एक चौथाई आबादी इस नीति के अंतर्गत आ गई। गांधी जी के अलावा मोरारजी देसाई बिल्कुल शराब नहीं पीते थे जिन्होंने इस नीति को और बढ़ावा दिया।
sharabbandiपूर्व में भी आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मिजोरम और हरियाणा में शराबबंदी की गयी लेकिन यह प्रयोग नाकाम रहा। आंध्र में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने यह कह कर शराबबंदी हटा दी थी कि इसे पूरी तरह लागू कर पाना संभव नहीं। वहीं हरियाणा में जब बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, तब उन्हें दो साल के भीतर शराबबंदी के अपने फैसले को पलटना पड़ा था। उस समय उनकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मझधार में छोड़ कर 1999 में पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का हाथ थाम लिया था। भाजपा और चौटाला के मौके के गठजोड़ ने बंसीलाल सरकार गिरा दी और अगले चुनाव में बंसीलाल को मैदान में कहीं का नहीं छोड़ा। वहीं महात्मा गांधी की जन्मभूमि यानि गुजरात में 1960 से शराबबंदी लागू है। लेकिन वहां भी दूसरे प्रांत के लोगों के लिए शराब सुलभ है। इसके अलावा गुजरात में लगभग 60 हजार से ज्यादा ऐसे लोग हैं जिनके पास शराब खरीदने और पीने का परमिट है। राज्य में प्रोहेविशन विभाग से परमिट लेकर सिविल अस्पताल के डॉक्टर से वैसी बीमारी का सर्टिफिकेट लेना पड़ता है जो सिर्फ शराब पीने से ही ठीक हो सकती है।
शराबबंदी की कड़ी में शामिल होने वाला एक और राज्य केरल भी है। केरल ने शराब पर सर्वाधिक कर (लगभग 120 फीसद) लगाया है। इससे इसे उच्च राजस्व की प्राप्ति होती है। 2009-10 में शराब पर लगाए करों से इसे कुल 5500.39 करोड़ रुपए का राजस्व मिला था। देश में केरल शराब का प्रति व्यक्ति सर्वाधिक सेवन करने वाला राज्य है। प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 8 लीटर से अधिक है, जो पंजाब और हरियाणा जैसे पारंपरिक रूप से अधिक शराब पीने वाले राज्यों से आगे है। इसके वार्षिक बजट के लिए राजस्व का 40 फीसद से अधिक शराब बिक्री से आता है। 2014 में केरल की सरकार ने 10 साल की शराबबंदी की घोषणा की थी। इसके बाद बार और होटल के मालिकों ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी। इसके बाद पाबंदी में ढील दी गई और बार को बियर और शराब बेचने की इजाजत मिली। इसके बाद 29 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार के शराबबंदी कानून को जायज ठहराते हुए राज्य को 10 साल के भीतर शराब-मुक्त करने की नीति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने राज्य सरकार की शराबबंदी नीति के खिलाफ कई होटलों और उनके संगठनों की ओर से दायर अपील खारिज कर दी। राज्य में दस सालों के भीतर शराब पर पूरी तरह रोक लगाने के तहत बनाई नीति के अनुसार सिर्फ पांच सितारा होटलों को शराब परोसने की इजाजत दी गई है। यहां सबसे ज्यादा 14.9 फीसद शराब की खपत है।
उधर, महाराष्ट्र सरकार भी पूरी तरह से शराबबंदी की तैयारी कर रही है। अभी सूबे के तीन जिलों वर्धा, गढ़चिरौली और चंद्रपुर में पूरी तरह शराब बेचना, पीना और पिलाना गैरकानूनी है। लेकिन फडणवीस सरकार महाराष्ट्र में शराबबंदी लागू करने का फार्मूला गंभीरता से तलाश रही है। लेकिन यह सूबे की तिजोरी पर काफी भारी पड़ेगा। अभी शराब से महाराष्ट्र सरकार को सालाना 12-13 हजार करोड़ की कमाई होती है। इसके ठीक उलट उड़ीसा सरकार शराब बंदी के पक्ष में नहीं है। सरकार का मत है कि यदि राज्य में पूर्ण प्रतिबंध लगा भी दिया जाता है तो शराब पीने वालों का उससे लगाव खत्म करना असंभव है और शराब पर प्रतिबंध से शराब का अवैध व्यापार बढ़ेगा। अवैध शराब पीने से लोगों के मरने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। उड़ीसा सरकार को लगभग 1100 करोड़ रुपए प्रति वर्ष आबकारी राजस्व के रूप में हासिल होते हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व दिल्ली प्रदेश की सरकार भी शराबबंदी को अव्यवहारिक मानती हैं और साफ कहतीं है कि उनका ऐसा कोई विचार नहीं है।
नशाबंदी की मांग को लेकर लगभग हर राज्य में महिलाओं ने संगठित होकर समय-समय पर आन्दोलन किए हैं। लेकिन एक कटु सत्य यह भी है कि भारत में विदेशी शराब की खपत बढ़ती जा रही है। विश्व में तो शराब की खपत लगभग स्थिर है लेकिन वहीं भारत में इसमें 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि हो रही है। जाहिर है कि भारत में शराब की खपत बढ़ी है तो इसके आदी लोगों की संख्या भी बढ़ी होगी। 1960 के बाद के वर्षों में शराब के आदी लोगों की संख्या काफी कम थी। एक अनुमान के अनुसार शराब पीने वाले 300 लोगों के बीच मुश्किल से एक व्यक्ति शराब का आदी था। यह संख्या 1980 में बढ़ गयी और आठ करोड़ लोगों के बीच 30 लाख लोग ऐसे मिले जो शराब के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे। एक समय था जब मदिरापान सामंत वर्ग तक सीमित था। बडे़ उद्योगपति, बड़े अफसर और सामथ्र्यवान व्यक्ति ही शराब का सेवन करते थे, मगर आज यही शराब उस छोटे दायरे से निकलकर बहुत बडे़ दायरे में फैल चुकी है। शराब पीना-पिलाना आज आधुनिकता का पर्याय बनता रह है। अभिजात्य वर्ग जो शराब पीता भी है और जीता भी, लेकिन निचला तबका जो शराब पीने में समर्थ तो नहीं है मगर पी रहा है और अपना सबकुछ बर्बाद कर रहा है।
उधर, सरकारों के सामने जब राजस्व का संकट आ जाता है तो उन्हें अपने कदम वापस खींचने पड़ते हैं। राज्य आर्थिक हितों के कारण शराबबंदी जैसे अति महत्वपूर्ण बिन्दु पर विचार करने की नहीं उन्हें सदैव डर बना रहता है कि यदि राज्य में शराबबंदी की जाए तो उनका राजकोष कम जाएगा और उसकी भरपाई के लिए अनाप-शनाप कर लगाने होंगे, जो जनता को उनसे दूर करें, यही कारण है कि राज्य इस विषय पर नहीं सोचते। बिहार में ही आबकारी राजस्व के रूप में सरकारी खजाने में प्रति वर्ष करीब 3200 करोड़ रुपए आते हैं। अब देखना यह होगा कि नीतीश सरकार अपने विकास कार्यों को मूर्तरूप देने के लिए धन किस मद से जुटाती है।
शराबबंदी का परोक्ष असर किसी राज्य की पर्यटन व्यवस्था पर भी नकारात्मक पड़ता है। हालांकि, शराबबंदी के दौर में भी आम तौर पर फाइव स्टार होटलों को शराब बेचने के मामले में छूट रहती है, लेकिन हर पर्यटक की पहुंच वहां तक नहीं होती है। यह देखा गया है कि शराबबंदी के कारण पर्यटन उद्योग को तो मार झेलनी ही पड़ती है, किसी भी राज्य में फैली भयंकर बेरोजगारी में और इजाफा होता है। दरअसल, शराबबंदी का पहला असर डिस्टिलरीज के बंद होने के तौर पर सामने आता है। बिहार में भी एक बड़ा तबका इन डिस्टिलरीज के अलावा ठेकों, अहातों, होटलों, रेस्तराओं और परिवहन से भी जुड़ा है। शराबबंदी के बाद ऐसे लोग अक्सर बेरोजगारी का शिकार हो जाते हैं और कई बार अपने हालात से तंग आकर गलत कदम उठा लेते हैं। इसके अलावा शराबबंदी कानून का मतलब यह नहीं कि लोग पीना छोड़ देंगे। वे ऐसा करने के लिए अन्य रास्ते ढूंढ लेंगे जैसे कि पीने के लिए पड़ोसी राज्यों में जाना अथवा एल्कोहल संग्रह करने के लिए अन्य विकल्पों का इस्तेमाल करना। फिर तो तस्करी और भ्रष्टाचार की एक नई दुकान खुल जाती है। शराबबंदी वाले राज्य में सबसे बड़ा संकट इसकी तस्करी से ही होता है जिसे रोकना कोई आसान काम नहीं। इसी तरह शराबबंदी के दौर में गांव के घर-घर में शराब निकालने का सिलसिला शुरू हो जाता है। ऐसे में जहरीली शराब कहां से बन कर लोगों के हलक में पहुंच जाती है, यह पता लगाना तक प्रशासन के लिए चुनौती बन जाता है।
यह भी सही है कि महिलाओं के प्रति हुए अपराधों और अत्याचारों का कारण अधिकांशत: शराब ही है। महिलाओं के अपहरण और बलात्कार की घटनाएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। आत्महत्याएं भी उसी तेजी से बढ़ती जा रही हैं। शराबखोरी की लत के चलते जहां छोटे किसान अपनी भूमि से बेदखल हो रहे हैं वहीं चोरी, छीना झपटी, लूटमार और राहजनी की घटनाएं लगातर बढ़ रही हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद राज्य में अपराध की घटनाओं तथा सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई है। राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि पटना प्रमंडल के छह जिले पटना, नालंदा, भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर में शराबबंदी के बाद अपराध की घटनाओं में 27 फीसदी से अधिक की कमी आई है। आंकड़ों के मुताबिक, इस साल एक अप्रैल से 23 अप्रैल के बीच इन जिलों के विभिन्न थानों में अपराध के कुल 2,328 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि पिछले साल इतने ही दिनों में 3,178 अपराध के मामले दर्ज हुए थे। पिछले साल की तुलना में 850 कम आपराधिक मामले सामने आए हैं, जो पहले से 27 फीसदी कम हैं।
अधिकारी का दावा है कि राज्य में सार्वजनिक और धार्मिक जुलूसों में तनाव और झगड़े कम हुए हैं तथा सड़क दुर्घटनाओं और इसमें मरने वालों की संख्या में भी कमी आयी है। दरअसल पूरे देश में शराबबंदी लागू करने का प्रश्न जितना विकट और दुष्कर है, उतना ही मुश्किल भी। राजनीतिक दलों में इस विषय पर एक राय बनानी होगी। राजनीतिक इच्छा के बिना इस विषय पर सोचा जाना संभव नहीं है। जब तक शराबबंदी के नारे को वोट में बदलने के प्रयास चलते रहेंगे तब तक शराबबंदी कहीं भी कभी भी असरकारक नहीं हो सकती। आज भी अधिकांश राजनीतिक दल महज इसलिए शराबबंदी के मुद्दे पर मुंह नहीं खोलते क्योंकि उन्हें भय रहता है कि उनके दलों का पोषक ऐसा वर्ग है जो धनाढ्य है और शराबबंदी का निर्णय इस धनाढ्य वर्ग को कभी भी नहीं पच सकता।
अब नीतीश कुमार ने बिहार के बाद उप्र में अपनी शराबबंदी की मुहिम को आगे बढ़ाने को औपचारिक ऐलान कर दिया है। वे जल्द ही उप्र में यात्रा निकालकर लोगों को जागरूक करने निकलने वाले हैं। नीतीश कुमार राजस्थान में भी इसी मुद्दे को लेकर जा रहे हैं। उनके इस कदम को विपक्षी राजनैतिक दल वोटों से जोड़कर देख रहे हैं।
नीतीश कुमार से नाइत्तेफाकी रखने वाले राजनेताओं का कहना है कि सिर्फ और सिर्फ उप्र विधानसभा चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए नीतीश कुमार ने यह शिगूफा छेड़ा है। अव्वल तो उन्हें चाहिए कि पहले वे अपने राज्य यानि बिहार में दो साल तक सफलतापूर्वक शराबबंदी लागू करके दिखायें फिर इस मुहिम को आगे बढ़ायें। उधर, नीतीश कुमार ने लखनऊ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक से यह अनुरोध किया वे गुजरात की तर्ज पर पूरे देश में शराबबंदी लागू करें। पहले वे इसकी शुरुआत भाजपा शासित राज्यों से करें।

  • लोहिया का नाम लेने वाले काम भी करें और शराब की बिक्री बंद करवाके दिखाएं। अरे, घबराइए नहीं अखिलेश जी, आगे बढ़िए और आप भी यूपी में शराबबंदी लागू कीजिए। कम-से-कम इससे आने वाली पीढ़ियों को हम बचा सकेंगे।
    नीतिश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
    बिहार में हालात बेकाबू हो रहे हैं और नीतिश की सूई शराब पर आकर अटक की गई है। हम इसका स्वागत करते हैं, लेकिन बिहारी अपराधबंदी कब लागू करेंगे नीतिश कुमार।
    शाहनवाज हुसैन,
    राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा

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