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सेवासदन के 100 वर्ष पूर्ण होने पर संगोष्ठी का आयोजन

वाराणसी, 06 सितम्बर। डी.ए.वी. पीजी काॅलेज के हिन्दी विभाग के तत्वावधान में गुरूवार को मुंशी प्रेमचन्द्र के उपन्यास ‘सेवासदन’ के सौ वर्ष पूर्ण होने पर भारतीय समाज में स्त्री के सवाल विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्यवक्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर सदानन्द शाही ने अपने उद्गार में कहा कि हिन्दी साहित्य ने सदैव स्त्रियों को बराबरी का अधिकार देने के लिए अथक प्रयास किया है। स्त्री एवं पुरूष समाज के दो पहिये है जिसमें स्त्री पक्ष पिछले ढाई हजार वर्षों से समान अधिकार के लिए संघर्षरत है।

मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा रचित उपन्यास सेवासदन का भी उद्देश्य स्त्री चरित्र को तथ्यों के साथ समाज के सामने रखना है। उन्होनें इस उपन्यास के जरिये समाज के उस भ्रम को दूर करने का प्रयास किया कि महिलायें ऐश्वर्य और शारीरिक सुख के लिए वैश्यावृत्ति जैसे साधन को रोजगार का जरिया बनाती है जबकि यह सत्य नही है। सामाजिक विद्धेष भी कही न कही इसके लिए जिम्मेदार है। सेवासदन समाज में वैश्यावृत्ति के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े करती है। उन्होने कहा कि भारतीय धर्मग्रंथों एवं पुस्तकों में जो सम्मान महिलाओं को दिया गया है वर्तमान समय में उसका सौवा हिस्सा भी उन्हें सम्मान स्वरूप मिल जाये तो स्त्रियों को बराबरी का अधिकार स्वतः ही मिल जायेगा।

इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्र्यापण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। मुख्यवक्ता का स्वागत हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. राकेश कुमार द्विवेदी ने अंगवस्त्र, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिन्ह् प्रदान कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ. शिवबहादुर सिंह एवं संचालन डाॅ. समीर कुमार पाठक ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डाॅ. लल्लन जायसवाल, डाॅ. मिश्री लाल, डाॅ. अरूण कुमार श्रीवास्तव, डाॅ. राकेश कुमार राम, डाॅ. पूनम सिंह, डाॅ. सुमन सिंह, डाॅ. अस्मिता तिवारी, डाॅ. स्वाति सुचरिता नंदा, डाॅ. नेहा चैधरी, डाॅ. सतीश सिंह आदि अध्यापक एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्रायें उपस्थित रहे।

(सौजन्य से—प्रताप बहादुर सिंह,मीडिया प्रभारी)

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वाराणसी, 06 सितम्बर। डी.ए.वी. पीजी काॅलेज के हिन्दी विभाग के तत्वावधान में गुरूवार को मुंशी प्रेमचन्द्र के उपन्यास ‘सेवासदन’ के सौ वर्ष पूर्ण होने पर भारतीय समाज में स्त्री के सवाल विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्यवक्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर सदानन्द शाही ने अपने उद्गार में कहा कि हिन्दी साहित्य ने सदैव स्त्रियों को बराबरी का अधिकार देने के लिए अथक प्रयास किया है। स्त्री एवं पुरूष समाज के दो पहिये है जिसमें स्त्री पक्ष पिछले ढाई हजार वर्षों से समान अधिकार के लिए संघर्षरत है।

मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा रचित उपन्यास सेवासदन का भी उद्देश्य स्त्री चरित्र को तथ्यों के साथ समाज के सामने रखना है। उन्होनें इस उपन्यास के जरिये समाज के उस भ्रम को दूर करने का प्रयास किया कि महिलायें ऐश्वर्य और शारीरिक सुख के लिए वैश्यावृत्ति जैसे साधन को रोजगार का जरिया बनाती है जबकि यह सत्य नही है। सामाजिक विद्धेष भी कही न कही इसके लिए जिम्मेदार है। सेवासदन समाज में वैश्यावृत्ति के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े करती है। उन्होने कहा कि भारतीय धर्मग्रंथों एवं पुस्तकों में जो सम्मान महिलाओं को दिया गया है वर्तमान समय में उसका सौवा हिस्सा भी उन्हें सम्मान स्वरूप मिल जाये तो स्त्रियों को बराबरी का अधिकार स्वतः ही मिल जायेगा।

इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्र्यापण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। मुख्यवक्ता का स्वागत हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. राकेश कुमार द्विवेदी ने अंगवस्त्र, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिन्ह् प्रदान कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ. शिवबहादुर सिंह एवं संचालन डाॅ. समीर कुमार पाठक ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डाॅ. लल्लन जायसवाल, डाॅ. मिश्री लाल, डाॅ. अरूण कुमार श्रीवास्तव, डाॅ. राकेश कुमार राम, डाॅ. पूनम सिंह, डाॅ. सुमन सिंह, डाॅ. अस्मिता तिवारी, डाॅ. स्वाति सुचरिता नंदा, डाॅ. नेहा चैधरी, डाॅ. सतीश सिंह आदि अध्यापक एवं मीडिया प्रभारी प्रताप बहादुर सिंह व बड़ी संख्या में छात्र-छात्रायें उपस्थित रहे।

 

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