दस्तक-विशेषराष्ट्रीय

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम…!

कांग्रेस नीत तत्कालीन यूपीए सरकार को हिला देने वाले 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सभी आरोपी निर्दोष साबित हुए हैं। दिल्ली की विशेष अदालत ने कथित 2 जी घोटाले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए.राजा व डीएमके सांसद कनिमोझी सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया। राजा व कनिमोझी को 2008 में दूरसंचार स्पेक्ट्रम व लाइसेंस जारी करने के लिए रिश्वत लेने के आरोपों में जेल जाना पड़ा था। सीबीआई आरोपियों के खिलाफ किसी तरह के साक्ष्य पेश करने में असफल रहे। इस घोटाले की वजह से कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। चर्चित टाइम मैगजीन ने इसे अमेरिका के ‘वाटरगेट’ घोटाले के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा घोटाला बताया था। जबकि अदालत की माने तो इस मामले में कुछ हुआ ही नहीं। क्योंकि 2 जी के किसी भी आरोपी के खिलाफ को प्रमाण नहीं मिला। यूं कहें कि पूरे के पूरे इस फर्जी मामले ने तत्कालीन यूपीए सरकार को इस कदर बदनाम किया कि उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा। तत्कालीन कैग विनोद राय ने फर्जी आरोप लगाकर यूपीए सरकार को बदनाम किया। मौजूदा मोदी सरकार के चहेते विनोद राय कई मलाईदार कुर्सियों पर बैठे हुए हैं। खैर, मामले में सभी आरोपियों के बरी होने के बाद जश्न में डूबी यूपीए (कांग्रेस व उसके सहयोगी) पर निशाना साधते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने टिप्पणी की कि इस फैसले को कांग्रेस इमानदारी का प्रमाण-पत्र न माने। इस स्थिति में जेटली जी सवाल है कि आखिर कोर्ट के फैसले को इमानदारी का प्रमाण-पत्र न माना जाए तो कौन सी संस्था इमानदारी को प्रमाणित करेगी।

राजीव रंजन तिवारी

बहुचर्चित 2-जी मामले में आए सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले ने जहां कांग्रेस को राहत दी है, वहीं भाजपा को खामोश कर दिया है। दो हजार पेज के फैसले में अदालत ने मामले के हरेक पहलू की विस्तार से विवेचना की है। सीबीआइ ने कहा है कि वह इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर करेगी। पर सवाल है कि सीबीआइ अपने आरोप-पत्र की पुष्टि में विश्वसनीय साक्ष्य क्यों नहीं जुटा सकी? नहीं जुटा सकी, या साक्ष्य नहीं थे? अदालत ने आरोपपत्र की त्रुटियों से लेकर दस्तावेजों की मनमानी व्याख्या तक अभियोजन पक्ष की नाकामी बताने वाली कई बातें कही हैं। इस तरह, यह मामला चाहे जितनी सियासी सरगर्मी का सबब बना हो, टांय-टांय फिस्स साबित हुआ। कांग्रेस के लिए राहत और नाराजगी का कारण यह है कि कैग की रिपोर्ट के हवाले से उसके राजनीतिक विरोधियों ने 2-जी स्पेक्ट्रम आबंटन को घोटाला करार दिया था। तत्कालीन कैग विनोद राय ने अपनी रिपोर्ट में आबंटन में मनमानी का उल्लेख करते कहते हुए 1.76 लाख करोड़ रु. का नुकसान होने की बात कही थी। इससे यूपीए सरकार की छवि खराब हुई, और माना जाता है कि इसके फलस्वरूप 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ा। क्योंकि भाजपा ने 2-जी मामले के जरिए कांग्रेस को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। खुद मोदी लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी रैलियों में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाते रहे।

अब इस मुद्दे पर अदालत के फैसले ने भाजपा को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया है और कांग्रेस को यह कहने का मौका दिया है कि उसे दुष्प्रचार का शिकार बनाया गया। करुणानिधि की पुत्री कनिमोझी और द्रमुक का दलित चेहरा कहे जाने वाले ए राजा के निर्दोष साबित होने से कांग्रेस के साथ ही द्रमुक ने भी राहत की सांस ली है। 2-जी मामले का हवाला देकर द्रमुक के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप अन्नाद्रमुक लगाती रही है। पर अदालत के फैसले ने अन्नाद्रमुक से 2-जी का हथियार छीन लिया है। इससे तमिलनाडु की राजनीति में द्रमुक को लाभ हो सकता है। सियासी नफा-नुकसान की बात छोड़ दें, तो एक अहम सवाल यह है कि क्या 2-जी मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत के फैसले का कोई सबक भी है? जाहिर है एक तरफ सबक कैग के लिए है तो दूसरी तरफ सीबीआइ के लिए। पर एक सबक सरकारी कामकाज की भाषा और तौर-तरीके को लेकर भी है। अदालत ने अपने फैसले में यह रेखांकित किया है कि नीतियों में रही अस्पष्टता और दिशा-निर्देश में रही खामियों की वजह से भी बहुत-सी भ्रांतियां पैदा हुर्इं। दिशा-निर्देश ऐसी तकनीकी भाषा में लिखा हुआ था कि कई शब्द दूरसंचार विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए भी अबूझ थे। अदालत ने सवाल उठाया है कि अगर वरिष्ठ अधिकारी ही विभागीय दिशा-निर्देश और शब्दावली न समझ पाएं, तो कंपनियों के नुमाइंदों या अन्य लोगों को कैसे दोष दिया जा सकता है! पर विभाग की तकनीकी शब्दावली से ज्यादा सवाल कैग की रिपोर्ट पर उठते हैं।

2जी मामले में डीएमके नेताओं के बरी होने वाले फैसले से CBI ही नहीं बल्कि बीजेपी को भी जोरदार झटका लगा है। इसके बावजूद पार्टी का कहना है कि इस फैसले से यह साबित नहीं होता कि 2जी का घोटाला नहीं हुआ। पार्टी का मानना है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने लाइसेंस रद्द किए थे, तभी यह साफ हो गया था कि इस मामले में गड़बड़ी हुई है। अब सिर्फ इतना भर हुआ है कि जिन नेताओं पर आरोप थे, वे सिद्ब नहीं हो सके, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि घोटाला नहीं हुआ था। इस बीच फैसले के बाद राजनीतिक समीकरणों को लेकर कयासबाजी भी शुरू हो गई है। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि यह सही है कि इस फैसले से पार्टी को उम्मीद थी कि उसे एक बार फिर कांग्रेस को घेरने का मौका मिलेगा। पार्टी के कई सांसद तो इसी तैयारी में थे कि यह फैसला आते ही उन्हें दोनों सदनों में कांग्रेस पर हमला किया जा सकेगा, लेकिन फैसला आते ही बीजेपी को झटका लगा। इसकी वजह यह है कि पार्टी ने पिछला लोकसभा चुनाव भ्रष्टाचार को आधार बनाकर ही लड़ा था। यूपीए सरकार में बीेजेपी ने सबसे पहले 2जी घोटाले का मामला ही उठाया था, जो बाद में इतना तूल पकड़ गया कि सरकार के मंत्री तक को जेल जाना पड़ा था। लेकिन अदालत के फैसले से कांग्रेस के हौंसले बुलंद हुए हैं। उधर, बीजेपी नेताओं का कहना है कि इस फैसले का अर्थ यह नहीं है कि 2जी घोटाला नहीं हुआ। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और बीजेपी के मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी का कहना है कि अदालत ने अपने फैसले में यह कहीं नहीं कहा कि घोटाला नहीं हुआ। यह जरूर है कि आरोपियों पर आरोप सिद्ध नहीं हुए।

फैसले के बाद अब कयासबाजी के केंद्र में डीएमके आ गई है। डीएमके फिलहाल कांग्रेस के नजदीक मानी जाती है। लेकिन पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीएमके प्रमुख करुणानिधि से मुलाकात की थी। ऐसे में अब यह अटकलें चल रही हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव के समय तमिलनाडु में राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। 2 जी मामले के सभी आरोपी बरी हो गए। लेकिन, इस फैसले ने देश के सामने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए हैं। वह सवाल है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था ने देश की संस्थाओं को किस तरह बेबस और बेकार बना दिया है। बहरहाल, इस पूरे प्रकरण पर अकबर इलाहाबादी का एक शेर याद आ रहा है-

‘हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा तक नहीं होता।’

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)

Related Articles

Back to top button