दस्तक-विशेषसाहित्यस्तम्भ

••• लाठी गली •••

आशुतोष राणा

डॉक्टर लालचंद साठी, जिनके कर्मों के कारण क़स्बे के लोग उनको डॉक्टर लाठी कहने लगे।जिस गली में वे रहते थे उस बेनाम गली को लोगों ने उनका नाम दे लाठी गली के नाम से प्रसिद्ध कर दिया था। उस गली में घुसते ही आप घेर लिए जाते थे, और घेरे जाने वाले व्यक्ति को पता ही नहीं चलता था की वो घेर लिया गया है। मैं अपने मित्र से मिलने पहली बार गढ़दमोह पहुँचा था।
घंटाघर से दाएँ लेते ही उस गली में घुस गया, मैं थोड़ा आगे बढ़ा ही था तो देखा की वो गली अचानक तीन गलियों फिर से फूट गई। मैं चक्कर में पड़ गया की अब इधर से किस गली में घुसूँ ?? पता पूछने के लिए जेब से पर्ची निकाली और पास में खड़े एक ९,१० साल के बच्चे की तरफ़ देखा, इससे पहले मैं कुछ बोलता की वो बच्चा अचानक मुझे देख के ज़ोर से चिल्लाने लगा दादाजी मरीज़ऽऽऽ .. दादाजी मरीज़.. ये आवाज़ सुनके बालकनी में एक नवयुवती प्रकट हुई, उसने ऊपर से ही मेरा मुआयना किया, और पीछे की तरफ़ मुँह उठाके ज़ोर से चिल्लाई बाबूजी मरीज़ऽऽ ..मैं हकबका गया!! इतने में बड़ी फुर्ती से नीचे वाली खिड़की खुली जिसके सामने मैं संयोगवश खड़ा था,खिड़की में मुझे एक जवान लड़के का बेहद दुबला पतला चेहरा दिखाई दिया, उसने अपनी आँखें मुझ पे गड़ा दी जैसे कोई जादूगर सम्मोहित करने के लिए अपनी आँखों को ऑब्जेक्ट की आँखों में गड़ा देता है और मुझ पर आँखें गड़ाए हुए ही ज़ोर की हाँक लगाई बाबूजी मरीज़ऽऽऽऽ ..मैं वहाँ से भागना चाहता था कि अचानक मुझे लगा की मेरा पते की पर्ची वाला हाथ मुझसे विपरीत दिशा में खिंच रहा है, मैं कुछ समझूँ इससे पहले ही मैंने अपने आपको एक कमरे में अंदर खड़ा पाया। सफ़ेद साड़ी में लिपटी एक बेहद मोटी महिला के हाथ में मेरा हाथ था, उसने कमरे में रखी बेंच पर लगभग मुझे धकेलते हुए बैठाने की कोशिश की और मुझे पकड़े हुए ही ज़ोर से आवाज़ लगाई डॉक्टर साब मरीज़ऽऽऽ मैं बेंच पर अधबैठा ही हुआ था की अचानक हरे पर्दे के पीछे से किसी में मेरा दूसरा हाथ पकड़ के मुझे पर्दे के पीछे खींच लिया..
अब मैं जिसके सामने खड़ा था वह बेहद लम्बा क़रीब सवा ६ फ़ुट का,बेहद जर्जर शरीर था। गले में स्टेथोस्कोप लटकाए सरसों के तेल से चिपके हुए बाल, सफ़ेद रंग की फ़ुल शर्ट,काला पैंट..बेल्ट पेट से बहुत ऊपर और छाती से थोड़ा नीचे बांधा हुआ था व पैर में नीली बद्धि वाली हवाई चप्पल।
मैं सन्नाया हुआ सा खड़ा था वे भन्नाए हुए से मुझे देख रहे थे, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की मामला क्या है? ये पूरा घटनाक्रम सड़क से घसीट के कमरे में घुसेड़ने तक, क़रीब डेढ़ मिनट में घट गया था। पते की पर्ची अभी भी मेरे हाथ में थी मैंने पर्ची वाले हाथ को ऊपर उठा के बोलने के लिए मुँह खोला ही था की उन्होंने ज़ोर से डाँटते हुए कहा शटअप..चुप बिलकुल !!फिर आदेश देते हुए से मुझसे बोले ज़ोर से अपने दोनों हाथों की मुट्ठी बाँधो। मैंने कहा जी मैं कुछ समझा नहीं ? वे बोले चुप बिलकुल, मुट्ठी बाँध। मैंने घबराहट में अपनी मुट्ठियाँ बाँध ली..वे बोले अब पूरी ताक़त से दीवाल पे मारो, कुछ ना समझते हुए भी मैंने दोनों मुट्ठियाँ दीवार पर दे मारीं।
वे बोले..केलेसियम ठीक है तुम्हारा,हड्डियों में कोई समस्या नहीं है।
मैं अचम्भित सा उनको देखने लगा वे फिर बोले.. अब जितनी ज़ोर से साँस रोक सकते हो रोको। कुछ कहने के लिए मेरे होंठ खुले ही थे की उन्होंने फिर मुझे ज़ोर से फटकार दिया,चोपप्प..साँस रोक। मैंने साँस रोक ली,क़रीब ४० सेकंड में मेरा मुँह लाल पड़ गया.. वे बोले हम्म,ब्लडप्रेसर भी एकदम नार्मल है।
फिर बोले..जगह पे खड़े खड़े पचास बार कूँदो। मेरी आँखों में अपने लिए विरोध और मुझे कूदता ना देख वे और मोटी नर्स दोनो ज़ोर से चिल्लाए कूऽऽद .. मैं घबरा के कूदने लगा, पचास बार कुदवा के बोले शुगर भी ठीक है, हाँफी नई भरी..मतलब फेंफड़ा एकदम सई काम कर रहे है , हार्ट किड्नी सब चकाचक है। फिर तुम आए क्यों हमारे पास ? तुम्हारे बाप के पास बहुत पैसा है क्या? अभी ठीक से जवान भी नहीं हुए और पड़ गए दवा दारू के चक्कर में।
मैंने बहुत शांति से कहा आप ग़लत समझ रहे हैं डॉक्टर साब, मैं तो.. मेरा इतना कहना था की, डॉक्टर साब बुरी तरह बिफर गए और बोले डॉक्टर तू है की मैं ? अब तू मुझे डॉक्टरी सिखाएगा ?? जबलपुर से लेकर भोपाल तक के डॉक्टर मेरी डायग्नोस को चेलेंज नहीं कर सकते। काग़ज़ पे लिखके देता हूँ तेरे सारे पेरामीटर,किसी भी मशीन में घुस के चेक करा ले अगर डिकटो,सेम टू सेम ना निकलें तो मेरा नाम डॉक्टर लाठी नई।अभी तेरे घुसते ही तुझे पटक के तेरे पुट्ठे पे चार डिस्टिल वॉटर के इंजेक्शन ठोक देता तो पट्ट से १०० रुपये निकाल के मेरी टेबल पर रखता और थैंक यू कहता अलग से।गढ़दमोह में बैठा हूँ इसका ये मतलब नई की दिल्ली वालों से कमज़ोर हूँ।
मैं बुरी तरह घबरा गया था क्योंकि बिना किसी बात के बखेड़ा खड़ा हो गया था। मैंने दीन मुद्रा बनाली और डॉक्टर साब से बोला..सर मेरा मतलब ये नहीं है मैं तो सिर्फ़ पत उन्होंने मुझे पत पर ही रोक दिया, पता के त में अ की मात्रा भी नहीं लगाने दी और मुझे फटकारते हुए से बोले, अरे पादना कोई बीमारी नई है बच्चे। छोटा हो या बड़ा,इंसान हो या जानवर सब पादते हैं। मैं ख़ुद डॉक्टर होके पादता हूँ।
गैसपास होना बीमारी का लक्षण नई, बल्कि उत्तम स्वास्थ की निशानी है। इसका मतलब है की तुम्हारा लीवर अच्छा काम कर रहा है।बल्कि पाद ना होना बीमारी का लक्षण है। जितने बड़े बड़े लोग हैं, ये खाते यहाँ हैं,लेकिन दिल्ली मुंबई सिर्फ़ पादने के लिए जाते हैं । पता नहीं क्यों उनको लोकल डॉक्टर से गैस निकलवाने में शर्म सी आती है, जबकि हम कुल २० रुपये में गैस पास करवा दें, लेकिन नई एक पाद पे जब तक वो बीस हज़ार ख़र्च ना कर दें तब तक उनको तसल्ली नहीं होती। डॉक्टरी के धंधे में आजकल पाद-पाद नई, खाद का काम करता है। बड़े आदमियों की क़ब्जियत वाली हवा पे लोग फल फूल रहे हैं, और क्यों ना फूलें ? शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है .. पादे सो पुण्यवान, सूँघे धर्मात्मा। थूँके सो नरक को जाए, अन्न की है वासना ।। पुण्य के कारण ही सेठ लोगों को धन सम्पत्ति मिलती है सो गैस होना उनका पुण्यफल है, कुछ लोग उसे सूंघ के पैसे कमा रहे हैं ये उनका धर्मफल है। जयपुर में तो सिर्फ़ एक हवामहल है लेकिन तुम देश के अन्य शहरों में जाके देखो..सैकड़ों की तादाद में हवा से खड़े हुए हवामहल मिल जाएँगे। कई डॉक्टरों ने सिर्फ़ पाद की दम पे बड़े बड़े बंगले बना लिए। हालाँकि बड़े आदमी को पदवाना बहुत मुश्किल है लेकिन कहीं तुम अपने हुनर से उसको पदवाने में सफल हो गए, तो इनकी बड़ी प्रतापी पाद होती है, इनके पादने भर से बंगले खड़े हो जाते हैं। तुम भाग्यशाली हो की तुमको गैस पास हो रही है। अगर गैस पास ना हो ना बच्चे..तो ये संसार, सुरा, सुंदरी सब निस्सार लगने लगता है। गैस फसी हो तो स्वयं को तकलीफ़ होती है, और निकल जाए तो समाज को तकलीफ़ होती है। समाज पीड़ा देने वाले के ख़िलाफ़ अनापशनाप बकने लगता है, उसे पदोड़ा, चिरका ना जाने क्या क्या कहता है, हिक़ारत से देखता है .. लेकिन तुम उनकी चिंता मत करो, वो सब नरक में जाएँगे क्योंकि वे अन्न की वासना का अपमान कर रहे हैं। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है की अन्न ही साकार ब्रह्म है। अन्न रूपी ब्रह्म जब साकार से निराकार की बिरादरी में जाता है, गैस फ़ॉर्म में, तब आप उसे देख नहीं सकते सिर्फ़ अनुभूत कर सकते हैं, तब वो आँख का नहीं नाक का विषय हो जाता है। और ये संसार का नियम है की हर आदमी को दूसरे का ब्रह्म बेहूदा, बदबूदार ही लगता है।इसलिए तुम ग़ौर करना, इंसान को दूसरे का पाद और दूसरे की सफलता फूटी आँखों नहीं सुहाती, लेकिन अपना पाद और अपनी सफलता के गुणगान गाते हुए इंसान दिव्यानुभूति से भरा होता है।अपना ब्रह्म ब्रह्म और दूसरे का ब्रह्म बदबू..ये कोई बात हुई ? तुम बिलकुल बिंदास रहो जब तक तुमको गैसपास हो रही है बीमारी तुमको छू भी नहीं सकती। तुम बीमार नई पूर्ण स्वस्थ हो। डॉक्टर लाठी का नियम है जो सलाह देने से ठीक हो जाए उसे खामखां सुई लगा के लूटना नहीं चाहिए। इसलिए तुमसे सिर्फ़ सलाह के और कम्प्लीट बॉडी चेकअप के मात्र ५० रुपए लिए जाएँगे।
मैंने कहा ये कहाँ की ज़बरदस्ती है, मैं क्यों दूँ ५० रुपए ? मैं तो आपके पास आया नहीं था? आप लोगों ने ज़बरदस्ती मुझे सड़क से घसीट के दवाखाने में बंधक बना लिया, और फिर मैंने तो आपसे कहा नहीं कि आप मेरा चेकअप कीजिए? आप ज़बरदस्ती मेरा चेकअप कर दें तो मैं क्या करूँ? आपका नाती लड़का बहु मुझे देख के मरीज़ मरीज़ चिल्लाने लगे तो क्या मैं मरीज़ हो गया?
डॉक्टर बोले अच्छा, तो फिर तुम दवाखाने में घुसे क्यों? अरे मैं अपने आप घुसा नहीं हूँ मैं तो बाहर खड़ा था सड़क पे, वहाँ से घसीट के लाया गया हूँ ज़बरदस्ती।
वे बोले तो फिर तुम हमारे दवाखाने के सामने क्यों खड़े थे हाथ में पर्चा लेके ?
मैं बोला डॉक्टर साब मेरा एक दोस्त रहता है यहाँ। सामने तिगड्डा देख मैं चकरा गया सो पता पूछने के लिए रुका था उस छोटे बच्चे के पास, वो मुझे देख के मरीज़ मरीज़ चिल्लाने लगा तो मैं क्या करता ?
वे बोले.. हो गया ना सिद्ध की तुम मरीज़ हो।
मैंने कहा कैसे? वे बोले कोई भी बुद्धिमान आदमी, पता अपने से बडे आदमी से पूछता है, तुम छोटे से पूछ रहे थे, वो भी बच्चा ! मतलब तुम बुद्धिहीन हो, बुद्धिहीनता एक रोग है। फिर तुमने कहा की तुम चकरा गए, चक्कर आना एक क़िस्म की बीमारी। मैं बोला अरे!! चकरा से मतलब मैं कन्फ़्यूज़ था। वे बोले कन्फ़्यूज़ मतलब भ्रम , भ्रम भी एक बीमारी है। तुम अपने भ्रम का निवारण चतुर आदमी से ना करवा के चंचल बच्चे से करवा रहे थे ये पागलपन की प्राइमरी स्टेज है। सो एक-बुद्धिहीनता, दो-चक्कर आना, तीन-भ्रम होना, चार-पागलपन सो अभी तक कुल चार बीमारियाँ तो पकड़ में आ गईं, तुम शारीरिक रोगी नहीं मानसिक रोगी हो।
मैं ग़ुस्से से फट पड़ा और ज़ोर से चिल्लाया आप पागल हैं क्या? अच्छे भले आदमी को मानसिक रोगी कह रहे हैं। उस मोटी नर्स ने लपक कर ज़ोर से मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए इतनी ताक़त से की मैं हिल भी नहीं पाया। डॉक्टर साब ने शांति से मेरी तरफ़ देखा और मुझे सुनाते हुए बोले पाँचवी बीमारी उन्माद हिस्टीरिया, तुम्हें उन्माद भी है, ये उसी के लक्षण हैं । अच्छा हुआ तुम सही समय पे आ गए इन सबकी अभी प्रायमरी स्टेज है, मैं कुछ दवाइयाँ अपने पास से तुमको देता हूँ। दवाई,चेकअप सब मिला के साढ़े तीन सौ में काम हो जाएगा।
मैंने कहा मैं फूटी कौड़ी भी नहीं दूँगा मैं अभी पुलिस थाने जाता हूँ । वे बोले उससे पहले मैं तुमको पागलखाने भिजवाता हूँ, साढ़े तीन सौ देते हो या पागलखाने फ़ोन करूँ ?
मैं घबराहट में रोने लगा, मुझे रोता देख उन्होंने काग़ज़ पर छटवीं बीमारी लिखी बोले तुम्हें अवसाद भी है, इसका ५० और लगेगा..कुल ४०० रुपए हुए। रुपए दो और जाओ..नहीं तो मुझे मजबूरन पागलखाने फ़ोन करना पड़ेगा, हम तुम जैसे बीमार पागल को सड़क पे छुट्टा नहीं छोड़ सकते। मैंने कहा लेकिन अभी तो आप कह रहे थे की मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ ? डॉक्टर लाठी बोले तब मैं सिर्फ़ मरीज़ को देख रहा था मर्ज़ को नहीं, अब मैं मर्ज़ को देख रहा हूँ। और किसी भी अच्छे डॉक्टर का धर्म होता है की वह मर्ज़ को समाप्त करे। तुम्हारी बीमारी बाहरी नहीं भीतरी है। इसलिए चुपचाप मेरा सहयोग करो, मैं उन डॉक्टरों में से नहीं हूँ जो मरीज़ को बचाने के लिए मर्ज़ को ज़िंदा छोड़ देते हैं, मैं मर्ज़ को मिटाने में विश्वास रखता हूँ और उसके लिए मुझे अगर मरीज़ को भी मिटाना पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूँगा। ये चार आदमी पागल नहीं हैं जो तुमको देखते ही मरीज़ मरीज़ चिल्लाने लगें, जिसमें एक बच्चा है, बच्चे भोले होते हैं वो झूठ नहीं बोलते। एक विशुद्ध ग्रहणी है, ग्रहणियाँ झूठ नहीं बोलती। एक युवा है जिसके कंधे पर राष्ट्र टिका है युवा शक्ति मुँहफट होती है, वो जो बोल दे वही सच होता है। चलो मान लिया की सब झूठ बोल रहे हैं..लेकिन ये, जिसने तुम्हें पकड़ के रखा है तुम्हारी माँ जैसी है, माताएँ कभी झूठ नहीं बोलती। तुम पागल हो। पागल आदमी का सबसे बड़ा लक्षण होता है की उसको अपना पागलपन नज़र नहीं आता, वो दूसरों को पागल कहता है, जो की अभी तुमने मुझे कहा।
मैं तुझे स्वस्थ करना चाहता हूँ और तू मुझे लुटेरा कह रहा है? तुझे अपने धन की चिंता है लेकिन मुझे तेरे मन चिंता है।क्योंकि तेरी इसी लोभलिप्सा ने तेरे मन को रुग्ण कर दिया है। तू पागल ही नहीं एक नम्बर का लोभी, लालची, झूठा, मक्कार, भ्रष्टाचारी है। मन के उपचार के लिए धन की परवाह करने वाला सबसे बड़ा पागल होता है।
अब मैं पहले तुझे पागलखाने भेजूँगा फिर पुलिस थाने..और एक बार तू पुलिस थाने पहुँचा तो परमानेंट पागल हो जाएगा। मैं घबरा गया और सचमुच अपने आपको बीमार पागल समझने लगा था..मरता क्या न करता मैंने जान छुटाने के लिए अपना बटुआ निकाल के ४०० रुपए उनकी टेबल पर रख दिए। उन्होंने अब पहली बार अपनी भद्दी सी मुस्कुराहट लाते हुए मुझसे पूछा वैसे किसके यहाँ जाना है ? मैंने ऐड्रेस की पर्ची उनके हाथ में रख दी उन्होंने पर्ची पढ़के मुझे सख़्त निगाह से देखा और बोले ५० रुपए और दो।
मैंने चौंक के कहा अब किसलिए? वे बोले तुम्हारी आँख में नम्बर है दूर का, २.२५ सिलेंडरिकल चश्मा लगेगा। और वे मेरा हाथ पकड़ के लगभग घसीटते हुए सड़क पे उसी जगह ले आए जहाँ से मुझे घसीट के अंदर ले जाया गया था, और अपने दवाखाने की दीवार से बिलकुल सटे हुए दरवाज़े पर लगी एक धुँधली सी नेम प्लेट की तरफ़ इशारा किया जिसपर मेरे दोस्त का नाम लिखा था।
मैं भौंचक्का सा कभी नेम प्लेट को देखता तो कभी डॉक्टर को.. डॉक्टर लाठी ने मुझे बेहद दया के भाव से देखा और कहा कि तुमको दो और बीमारियाँ हैं, मैं १०० रुपए और लूँगा..एक Anxiety की और दूसरा भूलने की, तुम अपना बटुआ मेरे दवाखाने में भूल आए हो। ये सुनके मुझे सच में चक्कर आ गया और मैं बेहोश होके गिर पड़ा।
होश आने के बाद जब घर पहुँचा तो पत्नी मुझे देख चिंतित हो गई बोली क्या हो गया तुम्हें ? तुम एकदम बीमार टूटे हुए क्यों लग रहे हो ?
मैंने कहा की जब कोई बलात हमारी ईमानदारी पर हमला करता है, जब ना चाहते हुए भी हम लूट लिए जाते हैं, जब ज़बरदस्ती हमारे सच को झूठ क़रार दिया जाता है, जब चार लोग मिलके हमें देखते ही मरीज़ या पागल कहने लगते हैं, तब अच्छा भला आदमी टूट ही जाता है। अनपढ़ आदमी की मार शरीर पर होती है लेकिन पढ़े लिखे लोग मन मस्तिष्क पर चोट करते हैं क्योंकि वे जानते हैं की तन को खंडित करने से कहीं अधिक लाभ मन को खंडित करने में होता है। किसी को नष्ट करना है तो उसको नहीं, उसके विश्वास को नष्ट कर दो, उसका विवेक स्वमेव समाप्त हो जाएगा। फिर वो परिवार में रहते हुए भी परिवार का व्यक्ति नहीं, भीड़ का हिस्सा हो जाएगा।
मैंने पत्नी की तरफ़ प्रेम भरी मायूसी से देखा और विवशता भरे स्वर में उससे कहा हे मेरी सबसे अच्छी मित्र मुझे क्षमा करना..मैं अब व्यक्ति नहीं रहा भीड़ हो गया हूँ , और भीड़ के लिए सारा संसार सिर्फ़ एक ही बात कहता है की भीड़ पागल होती है।
मुझे अचानक अपनी पत्नी धुँधली दिखाई देने लगी, इस धुँधलेपन का कारण तब समझ में आया जब मेरे गालों को गर्म पानी की धारा ने स्पर्श किया। ओह ये तो मेरे आँसू थे, जो ना चाहते हुए भी मेरी आँखों से बह रहे थे,और कमाल ये था कि मैं रो रहा हूँ इस बात का मुझे भान ही नहीं था मैं समझ चुका था की डॉक्टर लाठी ने मेरा सही डायग्नोसिस किया था कि ये पागलपन की प्रायमरी स्टेज है।

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