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6 विवादों पर मोहन भागवत ने तोड़ी चुप्पी


नई दिल्ली : ‘भविष्य का भारत : संघ का दृष्टिकोण’ कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने ‘संघ’ की विचारधारा सभी के सामने रखने की कोशिश की। दिल्ली के विज्ञान भवन में बोलते हुए भागवत ने हिंदुत्व समेत ऐसे छह मुद्दों पर अपनी चुप्पी तोड़ी जिन्हें लेकर वैचारिक प्रतिद्वंदी आरएसएस को निशाने पर लेते रहे हैं। भागवत ने अपने व्याख्यान में संगठन के संस्थापक केबी हेडगेवार के जीवन और उनके संघर्ष के बारे में बात करते हुए कहा कि आरएसएस को समझने के लिए आपको डॉ हेडगेवार से शुरुआत करनी चाहिए। आरएसएस प्रमुख ने डॉ केशव बलराम हेडगेवार के जीवन से तीन बिंदुओं का हवाला देते हुए संघ के राष्ट्रवादी विचारधारा को चित्रित करने की कोशिश की। हेडगेवार के बारे में बताते हुए भागवत ने कहा कि वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक साल तक जेल में रहे। कांग्रेस पर बोलते हुए भागवत ने स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने के लिए कट्टरपंथी कांग्रेस की भी प्रशंसा की। सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने स्वीकार किया, देश में कांग्रेस के रूप में बड़े स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसने कई महान व्यक्तित्व दिए। भागवत ने आरएसएस और उसके सहयोगियों के कार्यकलापों और आरएसएस बीजेपी और सरकार को कैसे नियंत्रित करता है, जैसे आरोपों के जवाब में कहा कि उनके सहयोगी स्वतंत्र हैं, ऐसे मुद्दों पर वह सार्वजनिक बैठकें करके जनता के सामने चर्चा और बहस करने के पक्ष में तैयार हैं। उन्होंने कहा कि सत्ता में कौन होगा, देश किस नीति को स्वीकार करेगा यह लोगों और समाज को तय करना है। आरएसएस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने को लेकर बहुत सारे विवाद सामने आ चुके हैं, पिछले साल राहुल गांधी ने भी आरोप लगाया था कि स्वतंत्रता के 52 साल बाद भी संघ राष्ट्रीय ध्वज की बजाय भगवा ध्वज को सलाम करता है। भागवत ने अपने पहले दिन के व्याख्यान में भगवा ध्वज पर संघ की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि स्वयंसेवक संघ हर साल भगवा ध्वज को गुरु दक्षिणा देते हैं। संगठन इस प्रकार दान दक्षिणा से चलता है। आरएसएस ने हमेशा राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान किया है। आरएसएस को सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक संगठन करार देते हुए भागवत ने कहा कि जब उन्हें सदस्य के तौर पर नामांकित किया गया था, उस समय एक युवा द्वारा शाखा के कार्यक्रम में भाग नहीं लेने पर उनसे सवाल किया था। भागवत ने कहा, मुझे उस युवक को समझाना पड़ा कि मैं यात्रा कर रहा था और इसलिए कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सका।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महिला विरोधी जैसे आरोपों पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि आरएसएस में एक महिला विंग, राष्ट्रीय सेवा समिति है। इसे स्वतंत्रता से पहले स्थापित किया गया था।भागवत ने कहा, हमारी मां और बहन, जहां भी वे हैं, आरएसएस द्वारा किए गए कार्यों में योगदान देती रहती हैं। भागवत ने हेडगेवार का हवाला देते हुए कहा कि संगठन का लक्ष्य सभी हिंदुओं को एकजुट करना है, यह केवल समाज में बदलाव लाने के द्वारा किया जा सकता है, उन्होंने हिंदुओं को परिभाषित करते हुए कहा, बलिदान, धैर्य, निगम और कृतज्ञता हिंदुओं के मूलभूत मूल्य हैं। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता के बावजूद इन मूल्यों के द्वारा इन्हें परिभाषित किया जा सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने कहा कि आरएसएस पर बहुत सारी बहस हुई है, चर्चा और बहस होनी चाहिए लेकिन डिबेट के लिए सच्चाई का पता होना चाहिए। भागवत ने कहा कि संघ का कार्य विशिष्ट और अतुलनीय है। मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय समाज विविधताओं से भरा है, किसी भी बात में एक जैसी समानता नहीं है, इसलिये विविधताओं से डरने की बजाय, उसे स्वीकार करना और उसका उत्सव मनाना चाहिए। संघ प्रमुख ने करीब डेढ़ घंटे के संबोधन में यह साफ किया कि उनका संगठन अपना प्रभुत्व नहीं चाहता। उन्होंने कहा, अगर ‘संघ’ के प्रभुत्व के कारण कोई बदलाव होगा तो यह ‘संघ’ की पराजय होगी। हिन्दू समाज की सामूहिक शक्ति के कारण बदलाव आना चाहिए। उन्होंने कहा, संघ का स्वयंसेवक क्या काम करता है, कैसे करता है, यह तय करने के लिये वह स्वतंत्र है। उन्होंने कहा, संघ केवल यह चिंता करता है कि वह गलती न करे। उन्होंने कहा कि आरएसएस की एक अलग पहचान है, इसलिए यह लोगों में लोकप्रिय हो जाता है और इसके कार्यकर्ताओं को अपने काम के प्रचार के लिए कहीं भागना नहीं पड़ता है। सरकार और संघ के बीच समय समय पर होने वाली समन्वय बैठकों का परोक्ष तौर पर जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि समन्वय बैठक इसलिए होती है कि स्वयंसेवक विपरीत परिस्थितियों में अलग अलग क्षेत्रों में काम करते हैं, ऐसे में उनके पास कुछ सुझाव भी होते हैं, वे अपने सुझाव देते हैं, उस पर अमल होता है या नहीं होता इससे उन्हें मतलब नहीं।

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