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खाकी-खादी का कमाल, जुर्म की दुनिया में ऐसे ‘विकास’ कर गया विकास दुबे…देंखे वीडियो

फाइल

लखनऊ, 6 जुलाई, दस्तक (ब्यूरो): कानपुर हत्याकांड मामले में बीते 100 घंटे से भी ज्यादा समय से पुलिस को तलाश है। पुलिस जगह-जगह गैंगस्टर की तलाश में छामेमारी कर रही है। सरकार ने अपराधी को पकड़ने के लिए इनामों की बौछार लगा दी। पहले 50 हजार फिर 2.5 लाख और अब 5 लाख रुपये कुख्यात अपराधी का पता बताने वाले को दिया जाएगा। इन सबके बावजूद पुलिस के हाथ अभी खाली है। कहानी तो शुरू होती है 2000 से लेकिन तब यूपी में जुर्म की सूरत थोड़ी अलग थी। क्योंकि तब जुर्म और सियासत ऐसे घुला-मिला था कि नेता और क्रिमिनल को साथ-साथ देखना मानो रोजमर्रा की बात हो। कहानी शुरू करते हैं 2008 से और चलते हैं 2020 तक। क्योंकि 2020 में विकास दुबे की कहानी लगभग खत्म हो ही जाएगी। तो इन बारह सालों में जब आप फ्रेम दर फ्रेम विकास दुबे को देखेंगे तो राजनीति, अपराध और पुलिस। तीनों के गठजोड़ की दास्तान बड़ी आसानी से समझ जाएंगे।

नेताओं-पुलिसवालों में विकास की बड़ी घुसपैठ

तस्वीर में बुराई नहीं है। बड़े और सम्मानीय लोगों के आगे-पीछे दाएं-बाएं खड़े होकर कोई भी फ्रेम में घुस सकता है। तो चलिए मान लेते हैं विकास दुबे भी ऐसे ही इन सब फ्रेम में घुस गया। पर दिमाग काम करना तब बंद कर देता है। जब ये सोचता हूं कि जिसके सर पर 150 मुकदमे हैं, कायदे से जिसे खुद पुलिस से दूर भागना चाहिए वही गुंडा उन्हीं पुलिसवालों के सुरक्षा घेरे में घुस कर इन बड़े और सम्मानीय नेताओं के आगे-पीछे, दाएं-बाएं खड़े होकर कैसे फ्रेम में आ जाता है? और इतना रिस्क लेकर ऐसे फोटो फ्रेम में आने का उसे क्या फायदा?

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विकास के खिलाफ दर्ज हैं 60 संगीन मामले

तो फायदा तो है जनाब। भरपूर फायदा है। अगर ये नेताओं के आगे-पीछे ना होता तो शर्तिया यूपी के टॉप टेन क्रिमिनल की लिस्ट में इसका नाम होता। जबकि ये टॉप 50 में भी नहीं है। अगर ये नेताओं के इर्द-गिर्द ना होता तो एनकाउंटर की लिस्ट में शर्तिया इसका नाम सबसे ऊपर होता। मगर एनकाउंटर तो छोड़िए 150 मुकदमे सर पर होने के बावजूद इसका नाम तो अपने इलाके के भी वॉटेंड क्रिमिनल में नहीं है।

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2008 में विकास दुबे पर 43 मुकदमे थे

यूपी की सत्ता में बैठे चाहे वो नेता हों, आईएएस अफसर, आईपीएस, लोकल पुलिस हर जगह विकास दुबे की घुसपैठ है। बदनसीबी देखिए कि यूपी की जिस स्पेशल टास्ट फोर्स यानी एसटीएफ को अब विकास दुबे को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गई है, उस एसटीएफ तक में विकास दुबे के हमदर्द बैठे हैं। बात 2008 की है। तब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री थीं और विक्रम सिंह यूपी के पुलिस महानिदेशक. मायावती के कहने पर तब यूपी पुलिस ने राज्य भर के छटे हुए बदमाशों की एक लिस्ट बनाई थी। बाद में इसी लिस्ट के हिसाब के उन बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई होनी थी। कमाल देखिए। उस वक्त भी यानी 2008 में विकास दुबे पर 43 मुकदमे थे। कत्ल, कत्ल की कोशिश, जबरन वसूली समेत तमाम संगीन जुर्म उसके नाम थे। पर इसके बावजूद ना तो विकास दुबे का नाम उस लिस्ट में था और ना ही उसके खिलाफ कोई कार्रवाई हुई। क्योंकि मायावती विकास दुबे को सिर्फ जानती ही नहीं थीं, बल्कि उसे नाम से पुकारती थीं।

विकास दुबे का साथी गिरफ्तार

सत्ता बदली पर विकास दुबे की किस्मत नहीं बदली

बाद में सत्ता बदली पर विकास दुबे की खुशनसीबी नहीं बदली। ठसक सपा के राज में भी कायम थी। लखनऊ में सत्ता के गलियारों के फोटो फ्रेम में अब भी वो मौजूद था। एक फ्रेम में तब यूपी की कैबिनट मंत्री अरुणा कोरी के साथ विकास दुबे नजर आया था। पत्नी के चुनावी पोस्टर में साइकिल ऐसी चिपकाई कि मजाल क्या जो पुलिस की जीप रास्ते में आ जाए। हाथी और साइकिल की सवारी के बाद यूपी में कमल खिला। पर विकास दुबे का चेहरा तब भी नहीं मुरझाया। योगी सरकार के आते ही खुद मुख्यमंत्री योगी ने बदमाशों के नाम खुली चेतावनी जारी की थी। सुधर जाओ या यूपी छोड़ दो। उसी दौरान राज्य भर के बदमाशें के खिलाफ बाकायदा अभियान भी चलाया गया। चुन-चुन कर बदमाशों को ठोका गया। पर 2008 के 43 मुकदमों से तरक्की करते हुए सवा सौ मुकदमे पार करने के बाद भी विकास दुबे यूपी पुलिस को खतरनाक बदमाश नहीं लगा। यही वजह है कि 2017 में इसी अभियान के दौरान यूपी एसटीएफ ने विकास दुबे को गिरफ्तार तो किया मगर लखनऊ के कृष्णानगर थाने में मामूली मारपीट के इलज़ाम में। जबकि उसके जुर्म का बही-खाता तो कानपुर में खुला हुआ था। दरअसल, अंदर खबर ये थी कि विकास दुबे को एनकाउंटर से बचाने के लिए ही मामूली लड़ाई-झगड़े के मामलवे में पकड़ कर कुछ दिनों के लिए अंदर कर दिया गया था। यानी तब एसटीएफ ने उस पर मेहरबानी ही की थी।

दारोगा विनय तिवारी पर एसएसपी की मेहबानी

इस मेहरबानी को ज़रा तसल्ली से समझिए। महीने भर पहले तक कानपुर के एक एसएसपी हुआ करते थे। जिनका एसटीएफ में एक लंबा कार्यकाल रहा है। इन्हीं एसएसपी साहब ने चौबेपुर थाने में विनय कुमार तिवारी को दरोगा बना कर भेजा था। ये वही विनय तिवारी हैं जिनपर विकास दुबे के साथ सांठगांठ और दो जुलाई को हुए पुलिस ऑपरेशन की मुखबिरी का इल्जाम है। कानपुर के वो एसएसपी साहब एक बार फिर से एसटीएफ में पहुंच गए हैं। उसी एसटीएफ में जिसे विकास दुबे को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गई है।

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