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गौरव स्मृति : जब बलिया में घर बा – त काहे का डर बा

अमरेन्द्र प्रताप सिंह

देश की आजादी से 5 साल पहले आजाद हुआ था बलिया

लखनऊ, 19  अगस्त, दस्तक टाइम्स, (अमरेंद्र प्रताप सिंह) :  उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के लिए यह सूक्ति अक्सर प्रयोग में आती है। यह तो नहीं मालूम की इन पंक्तियों का प्रादुर्भाव कहां से हुआ परन्तु यह अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है कि, आजादी की लड़ाई में इस जनपद के वासियों द्धारा दिखाया साहस ही इन लाइनों के निर्माण की वजह बना होगा। आज “बागी-बलिया” के नाम से मशहूर और आजादी की लड़ाई में बगावत को अपना हमराह बनाने वाले बलिया जिले में सन 1942 की क्रांति के रूप में एक अमिट कहानी लिखी गयी। यूपी के पूर्वांचल इस छोटे से जिले ने वह कर दिखाया जिसका सपना देखते हुए भारत मां के कितने ही लाल अपने प्राणों की आहूति दे गए। जिसकी उम्मीद आंखों में लिए कई रण-बांकुरे हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। बागी-बलिया में क्रांति की ऐसी मशाल जली, जिसके बारे में फिरंगी कल्पना भी नहीं कर पाए थे।

बलिया में फूटी थी भारत की स्वतंत्रता की पहली किरण

10 अगस्त 1942 को शुरू हुई अहिंसक क्रांति, 19 को आजादी की घोषणा की

बलिया की क्रांति का रूप कुछ ऐसा था जिसके सामने गांव के चौकीदार से लेकर जिले के कलक्टर तक सबको नतमस्तक होना पड़ा। 10 अगस्त 1942 को शुरू हुई इस अहिंसक क्रांति से अंग्रेजी राज के सभी गढ़ ढह गए और नौकरशाही भाग खड़ी हुयी। एक के बाद एक थाने और तहसील पर तिरंगा फहरता गया और अंग्रेजी प्रशासन पूरी तरह ख़त्म कर दिया गया। बलिया के लोगों ने अपने अदम्य साहस और अद्भुत शौर्य के दम पर लगभग पौने दो सौ साल से पड़ी गुलामी की बेड़ियां काट दीं और 19 अगस्त 1942 को ही स्वतंत्रता के सुप्रभात का दीदार कर लिया। घोषणा कर दी गयी कि बागी बलिया आजाद है। 

बलिया को यूं ही “बागी- बलिया” नहीं कहा जाता

इस तरह भारत की स्वतंत्रता की पहली किरण बलिया से फूटी। अलग बात है कि यह आजादी अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकी और 22 अगस्त 1942 की देर रात अंग्रेजी फौज बलिया पहुंची। अंग्रेजी फौज के साथ नेदरसोल को विशेषाधिकार से लैस प्रशासक बनाकर बलिया भेजा गया था। नेदरसोल ने कलक्टर के बंगले पर पहुंचकर जिले का प्रशासन अपने हाथ में लेने की घोषणा कर दी। एक बार फिर से जिले की सत्ता पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया, लेकिन बलिया के लोगों ने अपने तेवर और पराक्रम से यह बता दिया कि इस धरती को यूं ही बागी- बलिया नहीं कहा जाता।

बलिया से क्रांतिकारियों को मिला नया उत्साह

इतिहास में दर्ज बलिया की यह आजादी भले ही चंद दिनों की रही, लेकिन इसके निहितार्थ बड़े व्यापक थे। एक छोटे से जिले का चारों ओर के अंग्रेजी शासन से घिरे रहकर भी आजाद हो जाना, क्रांतिकारियों में नए उत्साह का संचार कर गया। इस खबर से दुनिया चौंक पड़ी। 1942 की क्रांति के बारे में ‘स्वतंत्रता संग्राम में बलिया’ नामक किताब में लिखा है कि अगस्त महीने के अंत में प्रदेश के गवर्नर सर हैलेट ने लंदन को यह खबर भेजी कि बलिया पर फिर कब्जा कर लिया गया है। गवर्नर के संदेश में स्वीकारोक्ति थी कि बलिया में अंग्रेजी शासन समाप्त हो गया था। यह मुद्दा ब्रिटिश संसद में भी उठा। भारतीय मामलों के मंत्री एमरी ने भी हैलेट की बात दोहराई। ब्रिटिश संसद में बलिया की आजादी गूंजी। दुनिया के अन्य देशों में इसे ब्रिटिश शासन की ओर से अपनी पराजय की स्वीकारोक्ति के रूप में देखा गया।

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