National News - राष्ट्रीयPolitical News - राजनीतिTOP NEWSज्ञानेंद्र शर्माफीचर्डस्तम्भ

लो मैं तो साहब बन गया

ज्ञानेन्द्र शर्मा

स्तम्भ: कुछ समय पहले यह तय हुआ था कि राज्यपाल को ‘महामहिम’ नहीं बोला जाएगा। अब राज्यपाल को ‘माननीय’ की संज्ञा से संबोधित किया जाएगा। ‘महामहिम’ का मतलब वास्तव में होता है- वह व्यक्ति जिसकी महिमा बहुत अधिक हो और माननीय का अर्थ होता है, जो सम्मान के काबिल हो। तो ऐसे में जब कि बहुत अधिक महिमा घटा दी गई हो और वे एक छोटे से नेता, साहब, अफसर के बराबर माननीय ही रह गए हों तो राज्यपाल क्या करें? सो उन्होंने नए तरीके ईजाद कर लिए। उनमें से कई बिना पुकारे, बिना बुलाए, बिना कायदा-कानून ही महामहिम बनने में जुट गए हैं।

खासकर उन राज्यपालों को, जहाॅ केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी से भिन्न दल वाली सरकारें पदारूढ़ हैं, नए आयाम खोजने पड़े हैं। अब देखिए कांग्रेस की परिपाटी का अंधानुकरण करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी पार्टी के लोगों को राज्यपाल के पदों से नवाज दिया है। इस समय राज्यपाल के 28 पदों में से 25 पर अपनी पार्टी के लोगों को भाजपा ने बिठाया हुआ है। केवल 3 राज्यपाल गैर-नेता श्रेणी के हैं।

अब इन तमाम राज्यपालों में से खासकर उनकी दिनचर्या बड़ी मुश्किलों से घिरकर कटती है, जो गैर-भाजपाई सरकारों के घरों वाले राजभवनों में तैनात हैं। कहने को तो वे राजभवनों में हैं लेकिन उन्हें ये राजभवन श्रीविहीन लगते हैं- न मंत्री सलाम बजाने आते हैं और न अफसर। कलम में भी धार नहीं दिखती, चश्मे से रंगीनी नहीं दिखती, सदरी पर कलफ ठीक से नहीं चढ़ता, छड़ी पहले से ज्यादा बूढ़ी होने को चली है, राज्य सरकार के हवाई जहाज पर चढ़ने को बहुत कम मिल पाता है और जनता दरबार लगाने को नहीं मिलते। तो ऐसे में क्या हो?

एक राज्यपाल राज्य सरकार से पूरी तरह अलग और भिन्न सचिवालय की स्थापना चाहते हैं, दूसरे कोलकाता में बैठकर चुने हुए मुख्यमंत्री को हटवाने की धमकी देते रहते हैं और एक और साप्ताहिक फील्ड विजिट पर तामझाम केे साथ निकलते हैं। वैसे यह तो कहा ही जा सकता है कि आमतौर पर भाजपाई गवर्नर भी कांग्रेसी गवर्नरों की तरह ही काम करते हैं।

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महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की, जो पिछले साल सितम्बर में राज्यपाल बनाए गए थे, उनकी बेचैनी एकदम उभरकर सामने आ गई है। करीब एक सप्ताह पहले उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र भेजकर मांग की कि ‘भारतीय न्यायपालिका और विधायिका’ की तरह उनके राजभवन का सचिवालय पूरी तरह से उनके नियंत्रण में काम करे। यह माॅग अपने आप में अभूतपूर्व है और अद्भुत भी थी क्योंकि ऐसा आज तक देश में किसी भी राज्य में नहीं हुआ। वास्तव में राजभवन को राज्य सरकार का विस्तार माना जाता है।

महाराष्ट्र में भी राजभवन का सारा कामकाज राज्य सरकार का सामान्य प्रशासन विभाग देखता है जो आमतौर पर मुख्यमंत्री के पास होता है। कोश्यारी चाहते हैं कि यह सब सीधे उनके नियंत्रण में रहे। अभी यह भी व्यवस्था है कि राजभवन में जो अधिकारी तैनात किए जाते हैं, वे राज्यपाल की सहमति के बाद ही रखे जाते हैं। राज्यपाल को अधिकारियों के नामों का एक पैनल भेजा जाता है, जिसमें से वे चुनाव करते हैं और आम तौर पर सरकार उनकी पसंद को स्वीकार कर लेती है।

महाराष्ट्र राजभवन के तीन परिसर हैं जो मुम्बई, पुणे और नागपुर में स्थित हैं और उनमें करीब 200 कर्मचारी काम करते हैं और जो संकेत हैं उनसे नहीं लगता कि मुख्यमंत्री ठाकरे राज्यपाल की माॅग मान लेंगे। वैसे भी यदि महाराष्ट्र में यह माॅग मान ली गई तो और राज्यों में इसका उठना तय माना जाना चाहिए।

पुडुचेरी की उपराज्यपाल हैं पूर्व आईपीएस किरन बेदी जो 2014 में भारतीय जनता पार्टी की भावी मुख्यमंत्री की तरह चुनाव मैदान में उतारी गई थीं लेकिन उनकी पार्टी का चुनाव में सफाया हो गया। उसे 70 में से 3 सीटें मिल पाई थीं। इस करारी हार के बाद उन्हें केन्द्र-शासित प्रदेश पुडुचेरी की उप राज्यपाल बना दिया गया। उन्होंने कई ऐसे काम किए जो मुख्यमंत्री वेलू नारायन स्वामी को पसंद नहीं आए और दरअसल उनकी नाक में दम हो गया। तब मामला मद्रास हाईकोर्ट गया जहाॅ से बहुत करारा फैसला आया।

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि उप राज्यपाल के कोई अलग अधिकार नहीं हैं और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना चाहिए। उन्हें सरकारी कामों में हस्तक्षेप करने और स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिकार नहीं है। लेकिन किरन बेदी ने दूसरा रास्ता अपना लिया। वे साप्ताहिक फील्ड विजिट पर निकलने लगीं और बकौल मुख्यमंत्री समानांतर सरकार चलाने से बाज नहीं आईं।

तब मुख्यमंत्री ने तंग आकर 25 दिसम्बर 19 को राष्ट्रपति को एक पत्र भेजकर माॅग की कि ‘तानाशाह’ राज्यपाल को वापस बुलाया जाय जो संविधान की मंशा के विपरीत काम कर रही हैं। उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच तनातनी जारी है। ऐसी की तनातनी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच जारी है।

और अंत में, पाॅचवां लाॅकडाउन लगाने की तकलीफ ना करें, अब हम इतने आलसी हो गए हैं कि खुद ही, घर से बाहर नहीं निकलेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)

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