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पौधों में मौजूद औषधीय गुणों के प्रति बढ़ा लोगों का आकर्षण

लखनऊ: एनबीआरआई, सोसायटी ऑफ फार्मेकोग्नोसी (भारत) और भारतीय फार्माकोपिया आयोग (आईपीसी) गाजियाबाद, के सहयोग से आयोजित ‘23वें नेशनल कन्वेंशन ऑफ सोसायटी ऑफ फार्माकोग्नोसी’ और “फार्मास्युटिकल ड्रग विकास में गुणवत्ता, सुरक्षा और जीएमपी के लिए नवयुगीन अवसर और चुनौतियां” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले दिन उदघाटन समारोह में मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. नित्यानंद ने हर्बल औषधि विकास के क्षेत्र में संभावनाओंकी चर्चा की एवं साथ ही इस दिशा में सार्थक कार्य करने हेतु संस्थान को साधुवाद प्रस्तुत करते हुए भविष्य की सफलताओं के लिए शुभकामनाएं दीं.

एनबीआरआई में फार्मेकोग्नोसीपर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उदघाटन

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों में प्रमुख रूप से स्विट्ज़रलैंड से आये डॉ आइक रेक (अध्यक्ष, इंटर्नेशनल एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ़ HPTLC एसोसिएशन), ने हर्बल औषधियों की गुणवत्ता नियंत्रण के क्षेत्र में HPTLC तकनीक के महत्त्व की चर्चा की. प्रो.जीएन सिंह (सचिव सह निदेशक, भारतीय फार्माकोपिया आयोग) ने गुग्गुल पौधे से स्रावित होने वाले रेसिन में मौजूद अणुओं ‘गुग्गुल्स्टेरोन‘ई’ एवं ‘जेड’पर इंडियन फर्मैकोपिया रिफरेन्स सब्सटेंस के विषय में चर्चा करते हुए बताया कि गुग्गुल के औषधीय उपयोगों को देखते हुए इसके औषधीय गुणों की आधुनिक तकनीक से जांच से तैयार ऐसे प्रमाणित डेटा की अत्यधिक आवश्यकता है. इस अवसर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के साइंस फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट विभाग के सलाहकार एवं मुख्य वैज्ञानिक डॉ देबप्रिय दत्ता ने कहा कि पौधों पर आधारित औषधि प्रणाली भारत में लम्बे समय से प्रचलित है.  आजकल औषधि विकास के लिए कृत्रिम रासायनिक तरीकों से अलग पौधों में मौजूद औषधीय गुणों में लोगों का आकर्षण बढ़ा है. ऐसे में पारंपरिक हर्बल औषधियों को आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों से प्रमाणित करने की आवश्यकता है. पद्मश्री डॉ पी पुष्पांगदन ने कहा कि 19वी सदी में आधुनिक औषधियों के विकास से पूर्व मनुष्यों द्वारा पारंपरिक प्राकृतिक औषधियों का ही प्रयोग किया जाता था. ये पारंपरिक प्रणालियाँ मुख्यतः दो पद्धतियों, प्राचीन पद्धति एवं स्थानीय स्वास्थ्य परम्पराओं  में बंटी हैं. प्राचीन पद्धतियों में विधिवत व्यवस्थित एवं लिखित वर्णन मिलते हैं जैसे आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध आदि जबकि स्थानीय स्वास्थ्य परम्पराएं मौखिक रूप से एक पीढी से दूसरी पीढी तक आगे बढ़ती हैं. आजकल ऐसी जानकारियों को एकत्र करने, इनके व्यवस्थित वर्णन तैयार करने एवं इनको वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किये जाने की अत्यंत आवश्यकता है.

इस अवसर पर अन्य गणमान्य अतिथियों में सोसायटी ऑफ़ फार्मेकोग्नोसीकेराष्ट्रीय सलाहकार प्रो.सीके कोकाटे (सचिव), प्रो. उमेश पाटिल (उपाध्यक्ष) डॉ एएन कालिया, प्रो.वीके दीक्षित एवं श्रीमती पद्मप्रिया बालकृष्ण (उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड) भी उपस्थित थे. इसके पूर्व संस्थान के निदेशक प्रो.एसके बारिक ने कहा कि हमारे पास अभूतपूर्व पादप विविधता है जिसके चलते हमारे पास इसे समुचित उपयोग करने के बहुत अवसर उपलब्ध हैं. उन्होंने कहा कि एनबीआरआई पौधों पर आधारित हर्बल औषधि विकास, एवं इन औषधियों की गुणवत्ता, सुरक्षा एवं प्रभावों के वैज्ञानिक आंकलन एवं प्रमाणन की दिशा में कार्य करने हेतु कटिबद्ध है. सम्मेलन में विभिन्न फार्मेसी  संस्थानों के 350 से अधिक स्नातक व स्नातकोत्तर छात्रों और शोधकर्ताओं सहित 500 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं. आज विभिन्न फार्मेकोग्नोसी विषयों पर 2 विशेष  एवं 10 आमंत्रित व्याख्यान प्रस्तुत किये. गए. अंत में कार्यक्रम के संयोजक डॉ शरद श्रीवास्तव ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनिका ने किया.

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