राष्ट्रीयस्तम्भ

भारतीय राज्यों द्वारा लॉकडाउन श्रमिक कानून में बदलाव

प्रशांत कुमार पुरुषोत्तम (पटना)

नई दिल्लीः लॉकडाउन 3.0 के समाप्त होने में अभी सप्ताह भर से अधिक का समय शेष है। 25 मार्च , 2020 से लागू लॉकडाऊन के दौरान अनेक घटनाएँ घटित हुई। इस दौरान भारत की एकता, संयम, त्याग, मजबूत मनोबल के अनेक उदाहरण से दुनियाँ परिचित हुई। इस दौरान ऐसी भी चंद घटनाएं हुई जो न होती तो सुखद अहसास में और वृद्धि करतीं। इस कोविड-19 के दौर में श्रमिक और उद्योग – धंधे पर भी गहरी चोट पहुँची है। श्रमिकों की सहायता के लिए विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार ने संघीय व्यवस्था को कायम रखते हुए अनेक कदम अपने – अपने स्तर से आरंभ किये हैं ।

कोविड-19 के दौर में सबसे ज्यादा संकटों का सामना वैसे श्रमिकों को करना पड़ है जो अपने घर से दूर हैं और दैनिक मजदूरी से अपना और अपने परिवार के भरण-पोषण का उत्तरदायित्व निभाते हैं। अब ऐसे में जब इन श्रमिकों के सामने बेरोजगारी का संकट खड़ा हुआ है तो इसके निवारण की दिशा में ठोस कदम उठाया जाना जरूरी है। समस्या इन श्रमिकों के साथ ये भी है कि ये अधिक पढ़े – लिखे नहीं हैं और सही और उपयुक्त सूचना इन तक पहुँच नहीं पाती या अधिक देर से पहुँचती है। यही कारण है कि कुछ श्रमिक अनुपयुक्त कदम उठाने को विवश हो जाते है, जिसके परिणाम कभी – कभी सुखद नहीं होते।

गत दिनों में छह राज्य सरकारों ने श्रमिक कानूनों में बदलाव किये हैं। श्रमिक कानूनों में बदलाव करने वाले छह राज्य हैं – उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र और ओडिशा। राज्य सरकारे आशा रखती हैं कि ये बदलाव निवेश, नौकरी और अर्थव्यवस्था को गति देनें में सहायक होंगी। इससे रोजगार और निवेश की संभावना बढ़ेगी।

उत्तर प्रदेश ने चुनिंदा श्रम कानूनों से अस्थाई छूट के अध्यादेश 2020 को मंजूरी दे दी है ताकि फैक्ट्रियों और उद्योगों को कुछ छूट दी जा सके। महिलाओं और बच्चों से जुड़े श्रम कानून के प्रावधान और अन्य श्रम कानून लागू रहने की बात कही गयी है।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने विभिन्न कदमों की घोषणा करते हुए कहा है कि प्रदेश में सभी कारखानों में कार्य करने की पाली 8 घंटे से बढाकर 12 घंटे की होगी। सप्ताह में 72 घंटे के ओवरटाइम की स्वीकृति दी गयी है। कारखाना नियोजक उत्पादकता बढाने के लिए सुविधानुसार शिफ्टों में परिवर्तन कर सकेंगे। वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा कि कम से कम 1200 दिनों के लिए काम करने वाली सभी नयी परियोजनाओं को श्रम कानूनों के सभी प्रावधानों से छूट दी जाएगी। हालांकि तीन प्रावधान लागू रहेंगे। राज्य सरकार ने वैश्विक कंपनियों के लिए 33000 हेटक्टेयर जमीन की भी पहचान की है, जो चीन से अपना कारोबार स्थांतरित करना चाहती है। न्यूनतम मजदूरी के भुगतान से संबंधित कानूनों, सुरक्षा मानदंडों का पालन करना तथा औद्योगिक दुर्घटना के मामलों में श्रमिकों को पर्याप्त मुआवजा देना जैसे कानूनों के अलावा कंपनियों पर श्रम कानून का कोई अन्य प्रावधान नहीं होगा।

गोवा, महाराष्ट्र और ओडिशा की सरकार ने भी 1947 के कारखाना अधिनियम के अंतर्गत श्रम कानूनों में छूट दी है।

गोवा और उडीशा सरकार ने कोरोना वायरस महामारी की वजह से तीन महीने तक श्रम कानून में ढ़ील देने की घोषणा की है। दोनों राज्यों ने कहा कि श्रमिकों को अतिरिक्त घंटों के लिए अतिरिक्त श्रम भुगतान किया जाएगा। केन्द्र सरकार ने भी आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए श्रम कानून में सुधारों का समर्थन किया है। उम्मीद है संकट के इस समय में ये सुधार आने वाले दिन श्रमिकों के हित में भी उपलब्धियाँ अर्जित करेंगे। इससे श्रमिक कानून के उद्देश्यों की पूर्ति भी होगी। श्रमिक और उद्योग फलेंगे- फूलेंगे और परस्पर हित पूरक होंगे।

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