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कोरोना संकट के दौर में मील का पत्थर साबित होता ‘इंटरनेट आफ थिंग्स’

अखिलेश बधानी
(उत्तरकाशी, उत्तराखंड)

नई ​दिल्ली: इंटरनेट ऑफ थिंग्स एक ऐसा साधन है जिसने मानव को कल्पनालोक से वास्तविकता की ओर लाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। साधारण भाषा में कनेक्टेड डिवाइस जो कार्य क्षमता में मनुष्य को पछाड़ दे उसे आमतौर पर इंटरनेट आफ थिंग्स के रूप में जाना जाता है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स के अंतर्गत आपका एक डिवाइज आपके घर, किचन आदि में मौजूद अन्य डिवाइसेज को कमांड देता है। इस तरह से एक डिवाइस को इंटरनेट के साथ लिंक कर के बाकी डिवाइसेज से अपने अनुसार कुछ भी कार्य करवाया जा सकता है जैसे कि एक कार बीमा कंपनी अपने पालिसी धारकों को सेंसर के माध्यम से किसी ऐसे क्षेत्र में बढ़ने से रोक/ चेतावनी दे सकती है, जहां चक्रवात या कोई और आपदा आने की आशंका हो।

इसके कार्यात्मक घटकों में डाटा संग्रहण, भण्डारण, विश्लेषण, अंतरण, सेंसर, रोबोटिक्स इत्यादि है। डेटा को मोबाइल/ फोन/ रोबोट पर लगे सेंसर के माध्यम से एकत्र कर फिर मोबाइल डेटा को विश्लेषण व क्लाउड सर्वर पर भेजा जाता है तथा मशीन के अनपेक्षित ब्रेकडाउन को रोकने के लिए अति सक्रिय रख रखाव की आवश्यकता को पूरा करने या किसी मरीज को जांच कराने की जरूरत जैसी स्थिती में इस से मदद मिल सकती है।

भारत में कोरोना वायरस से निपटने में इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल

हाल ही में केरल सरकार द्वारा कोरोना से संक्रमित व्यक्तियों की देखभाल हेतु “ “Nightingale 19” नामक रोबोट का विकास किया गया है जो मरीजों को दवा और भोजन की सुविधा प्रदान करेगा। इसी प्रकार आंध्रप्रदेश भी रोबोट के माध्यम से मरीजों को स्वास्थ्य सेवा मुहैय्या करवा रहा है। अस्पताल में रोगी की निगरानी कर स्वास्थ्य प्रणालियों को आपस में जोड़कर मनुष्य द्वारा किये जाने वाले कार्यों में कमी की जा सकती है। इसके साथ घर पर रहने वाले मरीजों का इलाज इएमआर (इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड) के माध्यम से किया जा सकता है ताकि मरीजों को घर पर ही चिकित्सकीय सहायता मिल सके व अस्पतालों का कार्यभार कम हो।

आईआईटी बीएचयू के विशेषज्ञों ने खिलौने वाली टॉय कार से ऐसा रोबोट तैयार किया गया है, जो महज आधे घंटे में हॉस्पिटल, क्‍वारंटीन सेंटर एवं ट्रेन आदि को सैनेटाइज कर डिसइन्फेक्‍ट कर देगा। यह रोबोट यूवी-सी लाइट यानी अल्‍ट्रा वायलेट रेडिएशन (पैराबैंगनी विकिरण) पर आधारित है। रोबोट में आरएफ स्विच और कैमरा लगाए गए हैं, जिससे इसे रूम के बाहर से ही ऑपरेटर किया जा सकता है। ऐसे में रेडिएशन का खतरा नहीं होगा। इसकी कीमत करीब 50 हजार रुपये है। रोबोट में लगी यूवी-सी लाइट से निकलने वाले अल्‍ट्रा वायलेट रेडिएशन से वायरस की माइक्रोबियल संरचना नष्‍ट हो जाती है। ऐसे में कोविड-19 वायरस तो नष्‍ट हो ही जाएगा, बैक्‍टीरिया सहित सभी सूक्ष्‍मजीवों की श्रृंखला भी समाप्‍त हो जाएगी। ज्‍यादा यूवी-सी लाइट लगाकर रोबोट को और शक्तिशाली बनाया जा सकता है।

इसी प्रकार पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में सीएसआईआर के केंद्रीय यांत्रिकी-अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (CMERI) ने कम कीमत वाला एक रोबोटिक उपकरण तैयार किया है। यह कोरोना लक्षण वाले लोगों के नमूने लेने में मदद करता है। यूपी के बुलंदशहर के छात्रों निशांत शर्मा और अतुल कुमार ने कोबोट नामक रोबोट बनाया है। यह कोरोना संक्रमित मरीजों के वार्ड में खाना और दवा पहुंचा रहा है। ऐसे ही केरल में ‘कर्मी-बोट’ नामक रोबोट का इस्तेमाल एर्नाकुलम सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में कोरोना मरीजों को रोबोट के जरिए चिकित्सा सेवाएं मुहैया कराई जा रही हैं। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के विक्टोरिया अस्पताल में भी इसी तरह का एक रोबोट काम कर रहा है।

दिल्ली एम्स में रोबोटिक्स ब्रांड मिलाग्रो ने अपने रोबोट को तैनात करने का ऐलान किया है। कंपनी का कहना है कि कोविड-19 वार्ड में एडवांस एआई-पावर्ड रोबोट मिलाग्रो आईमैप 9 और ह्यूमनॉइड ईएलएफ रोबोट को लगाया जाएगा। मिलाग्रो आईमैप 9 फर्श को कीटाणुरहित करता है। वहीं, मिलाग्रो ह्यूमनॉइड ईएलएफ कोविड-19 रोगियों की निगरानी में डॉक्टरों की मदद करता है। रोगी इस रोबोट के माध्यम से समय-समय पर अपने रिश्तेदारों से बातचीत कर सकते हैं। इसमें हाई डेफिनेशन वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग भी हैं।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम अनुसार पिछले 15 वर्षों के दौरान इंटरनेट क्रांति ने मीडिया खुदरा व वित्तीय सेवाओं जैसे व्यापार से उपभोक्ता(बी 2 सी) को पुनः परिभाषित किया है तथा ऐसा माना है कि आगामी 10 वर्षों में इंटरनेट ऑफ थिंग्स क्रांतिकारी रूप से औद्योगिक क्षेत्रों, ऊर्जा, कृषि, परिवहन, अर्थव्यवस्था को पूर्णं रूप से बदल देगी जो कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग दो तिहाई लिए जिम्मेदार है। साथ ही वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम का मानना है कि 2025 तक तक इंटरनेट ऑफ थिंग्स उपकरणों की संख्या 50 बिलियन से अधिक होने का अनुमान है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स ने फैक्ट्रियों में स्वचालित विनिर्माण से लेकर वस्तु की उपभोक्ता तक पहुंच को सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।

सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणाओं से लेकर स्थानीय स्तर पर विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुझाव का आदान प्रदान किया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ सम्पन्न राज्यों में घर बैठे बैठे कक्षाओं का संचालन वीडियो के माध्यम से किया जा रहा है।
यह समय इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसे डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण को तेज करने का है क्योंकि भविष्य में इस प्रकार की चुनौतियों से निपटने के लिए हमें तकनीकी रूप से सक्षम होना पड़ेगा। हालांकि मौजूदा सरकार इसके लिए कदम उठा भी रही है। इसी क्रम में एक पहल आरोग्य सेतु ऐप है तथा सरकार ने इसको सुदृढ बनाने के लिए कार्यदल भी गठित किया है परन्तु देखना यह होगा कि इसके सुझाव को व्यावहारिक स्तर पर कब तक लागू किया जाता है।

इंटरनेट ऑफ थिंग्स के लिए एप्लिकेशन्स

स्मार्ट होम: स्मार्ट होम इंटरनेट ऑफ थिंग्स की सबसे पॉपुलर एप्लीकेशन है। अमेजन इको से लेकर नेस्ट थर्मोस्टेट तक ऐसे हजारों प्रोडक्ट्स हैं जिन्हे यूजर्स अपनी आवाज से कंट्रोल कर सकते हैं।

वियरेबल्स: वॉच अब समय बताने तक ही सीमित नहीं रही है। एप्पल वाच समेत बाजार में ऐसी कई वाच उपलब्ध हैं जिनसे अब टेक्स्ट मैसेज, फोन कॉल्स और कई काम किये जा सकते हैं। इसी के साथ फिटबिट और जॉबोन जैसे डिवाइसेज ने फिटनेस की दुनिया को बदल दिया है।

स्मार्ट सिटीज: इंटरनेट ऑफ थिंग्स से लोगों की रोजमर्रा में आने वाले परेशानियों को बहुत आसानी से हल किया जा सकता है। इससे क्राइम, प्रदूषण, ट्रैफिक की समस्या आदि से आसानी से निपटा जा सकता है।

कनेक्टेड कार: इन वाहनों में इंटरनेट एक्सेस होता है और यह एक्सेस दूसरों के साथ शेयर भी किया जा सकता है।

इंटरनेट ऑफ थिंग्स डिवाइसेज और उदाहरण

अमेजन इको- स्मार्ट होम: अमेजन इको वॉयस असिस्टेंट एलेक्सा के जरिए काम करता है। इसमें यूजर्स अलग-अलग कार्य करवाने के लिए बात कर सकते हैं। यूजर्स एलेक्सा को म्यूजिक प्ले करने, मौसम की जनकारी देने, खेल का स्कोर बताने, टैक्सी बुक करने जैसे कई काम करवा सकते हैं।

फिटबिट वन- वियरेबल्स: फिटबिट वन ट्रैक करता है की आप कितना चले हैं , अपने कितनी कैलरीज बर्न की हैं या आप कितना सोए हैं आदि। इसी के साथ यह डिवाइस आपके स्मार्टफोन या कंप्यूटर से सिंक हो कर आपके फिटनेस डाटा को चार्ट में भी तब्दील कर देता है ताकि आप अपनी फिटनेस प्रोग्रेस आसानी से ट्रैक कर सकें।

बार्सिलोना- स्मार्ट सिटी: यह स्पेनिश सिटी स्मार्ट सिटीज में से सबसे पहले आती है। यहां कई IoT की योजनाओं को लागू किया गया है। इससे स्मार्ट पार्किंग और वातावरण को साफ रखने में मदद मिली है।

एस्ट्रम AL 150 लॉक- सिक्योरिटी: इन ब्लूटूथ आधारित लॉक में आपको चाबी या किसी कॉम्बो लॉक की जरुरत नहीं पड़ती। ये लॉक एंड्रॉयड और आईओएस डिवाइसेज को सपोर्ट करता है। इसे आप घर में मौजूद अन्य गैजेट्स के साथ आसानी से कनेक्ट कर सकते हैं।

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