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आदमी, आदमी हुआ तो इसलिए

जय प्रकाश मानस

ख्यात लेखक, जनसत्ता के संपादक प्रभाष जोशी जी का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि बस्स, वे कहते रहें और आप सुनते रहें।

सुनना आता हो तो फिर गुनते रहें।

चाहें विषय या कथ्य की चुनौती नयी कितनी भी क्यों न हो।

ऐसे ही एक आयोजन में, 20-21 साल पहले जब रायपुर में ललित निबंधों के स्थापत्य पर यथासंभव देश की पहली राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई थी-उन्होंने अपनी बात रखते हुए गद्य का एक विचारणीय अंश रखा था, याद गया तो अभी वही:

प्रभाष जोशी

“यथार्थवादी वर्तमानवादी होते हैं। वर्तमान में सिर्फ़ पशु ही जीते हैं, क्योंकि उसका कोई अतीत नहीं होता।…आदमी आदमी हुआ तो इसलिए कि उसके स्मृति मिली और वह भविष्य के सपने देखने लगा। वर्तमान यथार्थ हो सकता है, परन्तु यथार्थ सत्य नहीं हो सकता। सत्य को यथार्थ के आर-पार देखकर ही आप पा सकते हैं।”

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