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पॉलिटिक्स पप्पू से लल्लू तक

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

स्तम्भ: तीन जुलाई 2019 को राहुल गॉधी हिट विकेट आउट क्या हुए तब से खिलाड़ियों के लिए रिजर्व ड्रेसिंग रूम से बाहर ही नहीं निकलना चाहते। कभी कभार अपने तने बाजू बाहर निकलकर दिखा देते हैं, बस। साढ़े 11 महीने से उनकी पॉलिटिक्स क्रिकेट मैचों की तरह चल रही है।

पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद से वे अकड़े बैठे हैं- न बल्लेबाजी करने को तैयार हैं और न ही ड्रेसिंग रूम छोड़ने को। सामने मैदान में डटे फील्डर कैच पकड़ने की कोशिश करते रहते जरूर हैं लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आता। उन्हें लगता है कि पारी की हार से बचने के लिए उनके पास ‘सचिन तेंदुलकर’ के मैदान में आने के अलावा और कोई चारा नहीं है।

दूसरी तरफ, बहन प्रियंका बीच—बीच में डंका बजा देती हैं लेकिन अभी आम जनता तो दूर अपनी पार्टी के अंदर ही वह ठीक से नहीं सुनाई पड़ता। पार्टी हाई कमान ने उन्हें पूरा उत्तर प्रदेश सौंप रखा है सो वे गाहे बगाहे विरोधी तेवर दिखाते हुए बयान दे देती हैं, सरकार की खिंचाई कर देती हैं। और अभी हाल में तो उन्होंने दो कदम आगे बढ़ाते हुए प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुॅचाने के लिए ढेर सारी बसें प्रदेश की सीमा पर भेज दीं। एक तरफ उन्होंने सरकार का उलाहना लिया और दूसरे हाई कोर्ट की डॉट भी खानी पड़ी।

पहले भाई साहब की बात कर लेते हैं। कांग्रेसी अड़े हुए हैं कि राहुल जी को वापस ले आया जाय पर वे बार—बार के मान-मनौअल के बाद भी अपनी पीठ ही दिखाए चले जा रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि अध्यक्ष का पद जो उनकी मॉ के पास चला गया था, वह वहीं टिक गया। अखबार वालों ने कई तरीके बताए।

किसी ने कहा कि प्रियंका को अध्यक्ष बना दो तो किसी ने लिखा आनंद शर्मा को। कुछ दूसरों ने लिखा कि पार्टी में अध्यक्षीय सिस्टम लागू कर देना चाहिए तो कोई कोई यह भी कह रहा है राहुल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाना चाहिए- वैसे ही जैसे कभी कमलापति त्रिपाठी को और कभी अर्जुन सिंह को बनाया गया था। यह भी सुझाव दिया गया कि राहुल और प्रियंका को अध्यक्ष सोनिया का एडवाइजर बना दिया जाय। पर अब अखबार वाले भी लिख—लिख कर तंग आ गए हैं और राहुल जैसे हैं और जहॉ हैं, उनसे ही काम चलाए ले रहे हैं।

बात असल यह है कि राहुल को लेकर अब लोग ऊब गए हैं। पहले जब वे अध्यक्ष थे तो भी यदा कदा छुट्टी पर चले जाते थे लेकिन ऐसी उबासी कभी नहीं आती थी। आखिर वे एक बार फरवरी 2017 में छुट्टी पर चले गए थे- मौज मस्ती करने नहीं, चिंतन करने। फिर 2019 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय भी वे परिदृश्य से ज्यादातर गायब रहे- लोग उनकी चुनाव सभाओं के लिए तरस गए। उनकी अनुपस्थिति जितनी कांग्रेंस को नहीं खली उतनी भाजपा को अखरी।

भाजपा ने कहा भी- राहुल बाबा कांग्रेस का प्रचार कर रहे होते तो हम इतने बुरे नहीं हारते। मतलब यह कि 70 में 8 का आंकड़ा छूने की बेइज्जती होने पर भाजपा ने तमाम कारणों में राहुल गॉधी की सीन से गैर-हाजरी को भी गिनाया – वे होते तो कांग्रेस को कुछ तो वोट मिलते और आप के वोट घटते जो भाजपा के फायदे में जाता।

कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा कि पार्टी में ऐसी निष्क्रियता कभी नहीं रही। कुछ और कांग्रेसी लुके छुपे कहते हैं — भैया राहुल या तो फिर से अध्यक्षी संभाल लो वरना चुप बैठो और केरल जाकर सांसदी करो- उत्तर प्रदेश तो बहना देख ही रही हैं। बाकी रही बात राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों की सो कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत गुजरात और खुद राजस्थान के विधायकों को छुपाने के लिए रिजॉर्ट और होटलों का इंतजाम अपने यहॉ कर ही रहे हैं।

राहुल के विकल्प के रूप में प्रियंका पहले बड़े मुकाम पर भी उस समय फॅस गईं जबकि भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार को निष्क्रिय साबित करने के लिए बहुत सारी बसें प्रवासी मजदूरों के लिए यू0पी0 के बार्डर पर जाकर लगा दीं। जब सरकार से कांग्रेस की तनातनी हुई तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को प्रियंका ने मोर्चे पर लगा दिया।

वे 19 मई को गिरफतार कर लिए गए और 16 जून को ही हाई कोर्ट से छूट पाए। हाई कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश तो दिया लेकिन साथ ही कांग्रेस के खिलाफ सख्त टिप्पणी कर दी। कोर्ट ने कहा कि बसों की सेवा देने का कोई औचित्य नहीं था। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों ने कोरोना से निपटने के लिए आर्थिक सहयोग मांगा था लेकिन परिवहन की कोई सेवा नहीं मांगी थी, इसलिए बसों की सेवा के प्रस्ताव का कोई औचित्य नहीं था।

लेकिन बसों के मामले के संदर्भ में एक दिन पहले ही प्रियंका ने लल्लू की ऐसी भूरि भूरि प्रशंसा की थी जैसी शायद ही किसी केन्द्रीय नेता ने अपने प्रदेश अध्यक्ष की कभी की हो। उन्होंने कहा, ‘पीड़ितों के लिए संघर्ष करने की सर्वोच्च भावना से संचालित, अपने कई सहयोगियों की ड्राइंग रूम राजनीति से असहज और बेबाकी से अपनी बात रखने वाले लल्लू ऐसे व्यक्ति हैं जिनके लिए संघर्ष और पीड़ा स्वयं का भोग हुआ यथार्थ है। …वे उस भारत के सच्चे नागरिक हैं जिसके लिए महात्मा गॉधी ने लड़ाई लड़ी थी।’

प्रियंका ने अपने प्रदेश अध्यक्ष की प्रशंसा के जिस तरह पुल बॉधे, उसने तमाम आम कांग्रेसियों को असहज कर दिया है क्योंकि सालों से जिस तरह पार्टी के नेता पार्टी के आंदोलन में गिरफ्तारियॉ देते रहे हैं, वह प्रियंका ने भले ही न देखा हो, आम पार्टी जनों के लिए सामान्य सी बात रही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)

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