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पसीने की कहानी

जय प्रकाश मानस

प्रिय दोस्त की प्रिय लघुकथा

एक बहुत अमीर आदमी था। उसके पास बहुत बड़ा महल था। देशी-विदेशी लंबी कारें थीं। एक और दो नम्बर की अकूत संपत्ति थी। जीवन में सुख की खोज भी, मानो उसी ने की थी। लेकिन उसकी एकमात्र समस्या थी कि उसे पसीना बहुत आता था। घर में एयर कंडीशनर लगे थे। फिर भी घर से बाहर निकलने या पाखाना जाते समय वह पसीने से नहा उठता था। उसकी आस्तीनों और पैरों के नीचे से पसीना बहुत निकलता था। ऐसे में उसके कपड़े और परफ़्यूम, सब बेकार हो जाते थे।

वह सोच में डूब गय कि इस पहाड़ को कैसे पार करे? दसों दिशाओं में ख़ास आदमी दौड़ाए गए। कई तरह की दवाएँ आज़मा कर देख लीं। पर पसीना जस का तस था। ठाठ-बाट में उसकी रुचि कम होती गई। उसकी चिंता बढ़ती गई। उसकी सेहत गिरने लगी।

आख़िर उसके मंत्रियों ने आपात-बैठक करके, एक उपाय निकाला। सारे राज्य में विज्ञापित करवा दिया कि जो भी उसका पसीना बहना बंद कर देगा, उसे मुँह-माँगा ईनाम दिया जाएगा। कई वैद्य और डॉक्टर आए। सभी ने अपनी-अपनी समझ से उसके लिए दवाएँ बना कर दीं। पर उसका पसीना था कि बंद होने का नाम ही न लेता था।

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इसी चिंता में वह दिनों-दिन सूखता चला गया। आख़िर एक दिन उसकी मृत्यु हो गई। तब कहीं जाकर उसको पसीना आना बंद हुआ।

अशोक भाटिया

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