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समस्याओं से उबरने का विकल्प नहीं आत्महत्या

राम कुमार सिंह

स्मृति शेष

स्तम्भ: मानव जीवन कि आंतरिक व्यवस्था को समझने वालो का मत हैं कि एक इंसान अपने जीवन में जिन परेशानियों का सामना करता हैं उसका जिम्मेदार कोई दूसरा नही हो सकता। जाने-अनजाने में इंसान के जीवन में आई समस्या के सैलाब का कारण उसकी कामनाओं के बवंडर में ही गुथा हुआ होता हैं।

समाजिक व्यवस्था में आप किसी व्यक्ति के असहाय, मजबूर ,बंधन फॉस में फंस कर प्राण त्यागने कि स्थिति तक पहुंचने पर व्यवस्था को भी दोषी ठहरा सकते हैं किंतु यह इस समस्या का मूल निदान नही,बल्कि समस्या या रोग पर एक समयकाल तक परदा डालकर समस्या को पुन: घातक बनकर सामने उपस्थित होने तक के लिए छोड देना हैं।

हम प्राय: ऐसी परिस्थिति या घटनाओं पर अपनी संवेदनाएं प्रकट कर अपने कर्तव्यों कि इतिश्री तो कर लेते हैं लेकिन अवसाद कि परिस्थिति से जीवन अंधकार कि अवस्था तक पहुंचे व्यक्ति व उसकी मनोदशा को स्वस्थ करने या मानसिक डैमेज कंट्रोल कर पाने का कोई सशक्त विकल्प नही दे पाते।

जिसके फलस्वरूप इंसान आत्महत्या जैसे कृत्य से अपनी जीवन लीला को विराम देकर विपरीत परिस्थितियों से मुक्ति पा लेने का अंतिम विकल्प चुन लेता हैं। क्योंकि हमने भावनाओ के स्तर पर आधुनिक समाज में ऐसी कोई व्यवस्था ही नही तैयार कि हैं जो किसी व्यक्ति को अवसाद या आत्महत्या करने जैसी परिस्थिति में पहुंचने पर उम्मीद कि एक भी किरण दिखा पाये,जो अवसाद में फंसे निराशा पूर्ण अंधकारमय जीवन से बाहर ला पाने में मददगार साबित हो सके।

ऐसा नही कि हमारे समाज में ऐसी कोई व्यवस्था मौजूद नही हैं। हमारे आध्यात्मिक शोधपरक ग्रंथ मानव जीवन में भौतिकता के त्याग को अधिक महत्व देने कि बात नादानी में नही करते। अध्यात्मिक दर्शन का जीवन व मानवीय संवेदनाओ पर गहरा,तथ्यात्मक,अनुभवगम्य मार्गदर्शन उपलब्ध हैं। बस परिस्थियों के सिकंजे में फंसने से पहले तक हमें वह बेमतलब लगता हैं और अतिशय कामनाओं का दानव जब व्यक्ति को अपना ग्रास बनाने को भयावह रूप में सम्मुख खड़ा होता हैं तब व्यक्ति के पास उससे अपनी सुरक्षा कर पाने कि शक्ति संग्रह करने का समय नही रह जाता।

जीवन कि आवश्यकताओं को समग्रता में समझने वालो का मानना हैं कि मात्र स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर के गठबंधन को विलग कर देने से समस्यायें समाप्त नही होती। समस्यायें तो किसी कम्प्यूटर के माँनीटर बदलने से नही बल्कि कम्प्यूटर कि हाडडिस्क में लिपटे वायरस को क्लीन कर सिस्टम को फ्री कर पाने के बाद ही मूल समस्या का समाधान सुनिश्चित कर पाने में समर्थ हो पाती हैं।

अगर हम अपने कम्प्यूटर के वायरस को इसी जीवन में नही निकाल पाते तो माँनीटर बदलने मात्र से हमारी समस्यायें जस कि तस बनी रहेंगी। जैसे ही आपके पुराने कम्प्यूटर यानि व्यक्ति के सूक्ष्म और कारण शरीर को प्रारब्ध वश नया माँनीटर यानि स्थूल शरीर प्राप्त होगा, समस्याओ के वायरस पुन: माँनीटर पर दृष्टिगत होने लगेंगे।

स्थूल,सू़्क्ष्म और कारण से उपस्थित मानव रूपी डिवाइस यानि शरीर को शरीर,इंद्री,मन बुद्धि और अहम् के समन्वय के साथ संचालित करती हैं। किंतु अधिकतर लोग इसे मात्र शरीर तक सीमित मानकर मानव जीवन के अन्य अंग या विभागो को नासमझी के कारण अधिक महत्व नही दे पाते,जो ऐसी समस्याओ का मूल कारण बनता हैं और यही कारण हैं कि विपरीत परिस्थितियों में कई लोग जीवन लीला समाप्त कर परेशानियों से मुक्ति पा लेने वाले छलावे मात्र से अपने मन को झूठी दिलाशा या आशा में ऐसा कदम उठा लेते हैं।

वो अलग बात हैं कि इस समस्या में लौकिक के साथ परालौकिक जगत के जुड़े होने के कारण इस बात कि पुष्टि सामूहिक रूप से तो नही की जा सकती लेकिन जो लोग अध्यात्म या परालौकिक दुनियॉ कि थोडी सी भी समझ या झलक पाने में समर्थ रहे हैं वह इस बात से इत्तेफाक रख सकते हैं।

जीव जब परालौकिक जगत से लौकिक जगत में प्रवेश करता हैं तो उसके पीछे पूरी एक व्यवस्था कार्य करती हैं जैसे हम लौकिक जगत कि व्यवस्थायें बनाते हैं ।वैसी ही व्यवस्था परालौकिक जगत कि भी कार्य-कारण के सिद्धांत से कार्य करती हैं। बस फर्क इतना कि इंसानी व्यवस्था में तो चूक होना संभावी हैं किंतु परमात्मा कि व्यवस्था जिसे हम नेचर या प्रकृति के नाम से पुकारते हैं।जिसको एक कठोर मॉ कि संज्ञा भी दी जाती हैं उसकी व्यवस्था इतनी चुस्त दुरूस्त और अचूक कि गल्ती की कोई संभावना ही नही।

इसलिए होना तो यह चाहिए कि हम सभी को इस संसार के रंगमंच पर जो रोल मिला हैं उसे बखूबी पूरा निभाये,बीच मझधार में अभिनय छोडने से न डायरेक्टर खुश होगा न प्रड्यूसर और दर्शक भी निराश हो जायेंगे। तो आईये हम सभी एक युवा और लोकप्रिय अभिनेता के सांसारिक अभिनय को अधूरा छोडने कि निराशा से यह सबक ले कि हम जीवन को समग्रता से समझने का प्रयास करेंगे और विपरीत परिस्थितियों में भी अपना अपना रोल पूरा निभायेंगे। । हम सब अधूरे हैं पर पूर्णता को प्राप्त करने का प्रयास तो कर ही सकते हैं।

अलविदा “सुशांत” विनम्र श्रृद्धांजलि ईश्वर आपको सद्गति और आपके शोक संतृप्त परिवार व मित्रों को संबल प्रदान करें।

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