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राहत पैकेज का झुनझुना

डॉ. धीरज फुलमती सिंह

मुम्बई: मै तो तुम्हारे लिए चाँद तारे तोड लाऊगा। अधिकतर आशिक, अपनी माशुका को ऐसा कह कर प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। जबकि हकीकत में मालूम है कि ऐसा करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। भारत सरकार का राहत पैकेज भी कुछ-कुछ वैसा ही है।

कुछ दिन पहले 12 मई की रात को आठ बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आकर राष्ट्र को संबोधित करते हुए बीस लाख हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया और उस राहत पैकेज को लगातार तीन दिनों तक वित्त मंत्री ने आकर खंडों में विस्तार पूर्वक समझाया लेकिन शायद ही किसी आम जनता को यह समझ में आया?

कहते हैं मुसीबत आती है तो अकेले नहीं आती है। कोरोना वायरस की वजह से देश में बना ख़ौफ, अनिश्चितता का माहौल, बेमौसम बरसात और देश मे पहले से ही बनी आर्थिक मंदी यही साबित कर रही है। केद्र सरकार ने अर्थ व्यवस्था को उबारने और देश के नागरिकों को राहत देने के लिए बीस लाख हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है।

देखा जाए तो इस राहत पैकेज में ज्यादा कुछ नया नहीं है। घुमाफिरा कर वही पूरानी डिश खाने के लिए आगे परोस दी गई है। इस राहत पैकेज का दो हिस्सा है। पहला राजकोषीय (फिक्सल) हिस्सा जो सरकार अपनी जेब से देती है और दूसरा मौद्रिक (मोनिटरी) हिस्सा जो रिजर्व बैंक या भारतीय बैंकों के मार्फत दिया जाता है। तो यह जो राहत पैकेज है, इसमे से रिजर्व बैंक और बैंकों की तरफ से मिलने वाला करीब 11 लाख करोड़ रुपये की रकम मौद्रिक पैकेज का हिस्सा है।

आपको जान कर थोडा आश्चर्य होगा कि अब तक इस मौद्रिक पैकेज के हिस्से में से 6 लाख करोड़ की रकम मौद्रिक पैकेज के तहत पहले से ही दी जा चुकी है, जिसे सरकार ने बडी सफाई से छुपा लिया सरकार ने सिर्फ 1.7 लाख करोड़ रुपये का फिक्सल पैकेज दिया लेकिन यह भी बजट में पहले से तय था, कुछ भी नया नहीं है। सीधे तौर पर कहूँ, तो बजट में तय किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं का पैसा सरकार ने पहले से ही खर्च कर दिया है, जिसे इस राहत पैकेज में छुपा कर मिला लिया गया है।

सरकार ने कई ऐसी चीजों को भी राहत पैकेज से जोड़ दिया है, जिसका धरातल पर कोई मतलब नहीं है, जैसे पीएफ में 2 प्रतिशत कम योगदान को राहत पैकेज कैसे कह सकते हैं? इसमें जो भी पैसा जायेगा, वह कर्मचारी की अपनी जेब से जाएगा, इसमे सरकार का क्या लेना-देना? 

इसी तरह लोन की मासिक किस्त पर राहत यह है कि जिसके पास पैसा नहीं है, वे इसे तत्काल नहीं चुकाएगें लेकिन कल तो उनको चुकाना ही पडेगा, वह भी ब्याज के साथ। भविष्य में जब यह रकम बढ जाएगी तो एक आम मध्यम वर्गीय परिवार पर चुकाने के लिए यह एक तरह का बोझ ही हो जाएगा। फिर यह राहत कैसे?

भारतीय अर्थ व्यवस्था की रीढ़ रियल एस्टेट सेक्टर को भी रेरा के नाम पर छः महीने की छुट्ट का झुनझूना पकडा दिया गया है, जबकि रेरा में खुद पुनः निवेदन करने पर एक साल की मोहलत मिल जाती है।

हाउसिंग लोन की किस्त के लिए भी तीन महीने के बाद तीन महीने की और छुट दी गई है।  गौरतलब है कि हाउसिंग लोन के लिए डिफाल्ट होने पर लिखित निवेदन करने पर बैंक स्वतः एक साल का समय दे देती है तो सरकार किस प्रकार की राहत दे रही है?

यही बात सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग (एमएसएमई) के लिए भी लागू होती है। इस राहत पैकेज में इस उद्योग को जो तीन लाख हजार करोड़ रुपये के लोन गारंटी राहत पैकेज की घोषणा की गई है, उसमे भी भारत सरकार की जेब से कुछ भी नहीं जाने वाला। लोन गारंटी का मतलब है कि अगर ये छोटे और मझोले उद्योग ऋण की रकम को नहीं चुका पाते हैं, लोन डिफाल्टर हो जाते है तो लोन की रकम बाद में सरकार चुकाएगी।

ऐसे लोन की भरपाई सरकार करेगी लेकिन समस्या यह है कि आज बैंकों का एनपीए जिस तरह से दिन प्रतिदिन बढ रहा है, जो आज बैंकों का सबसे बडा सर दर्द बना हुआ है। ऐसे में बैंक लोन देने के लिए आना-कानी ही करेंगे। भला कौन सा बैक चाहेगा कि उसका लोन डिफाल्ट हो, लंबे समय तक विवाद हो, उसका सर दर्द और बढे फिर सरकार उसकी भरपाई करें। वैसे सरकारी ऑफिस के काम करने का तरीका आज सबको पता है, कितनी धीमी और बेतरतीब तरीके से काम होता है।

क्या पता, कल सरकार बदल जाए और वह तब की सरकार पैसे देने से इनकार कर दे, मुकर जाए, नियमों मे कुछ अमेडमेंट ही कर दे? या लोन माफ़ करने की घोषणा कर दे, ऐसे में पैसा तो बैंकों का ही डूबेगा ना? वैसे भी सरकार का पैसा आज तक डूबा भी कहां है? दूसरी तरफ यह तत्काल राहत तो है नही कि इसका प्रभाव कई वर्षो तक होगा।

चाहे तो आप इसे दूसरी तरह से समझ सकते हैं कि घरेलू संकट के समय गृहिणी अपने पति को कुछ पैसे कर्ज के तौर पर देती है, यह वही पैसे होते हैं, जो उसने घर खर्च में से बचाए होते हैं। पति के पैसों को ही वे, पति को देकर, पति को कर्जदार बना देती है। डूबे तो पति के पैसे, मिले तो पत्नी के पैसे लेकिन हमेशा के लिए कर्ज़दार पति हो जाता है और कर्ज का एहसान उपर से सो अलग।
मैंने अपने विश्लेषण में पाया है कि सरकार ने कुल 20.97 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है लेकिन इसमें सीधी राहत के नाम पर सिर्फ 3.15 लाख करोड़ रुपये ही खर्च किये जाएंगे जो भारत की कुल जीडीपी का 1.5% ही है। बचा हुआ 17.82 लाख करोड़ रुपये का पैकेज सरकार सरकार ने लिक्विडिटी यानी नकदी की मदद या ऋण के रूप में दिया है।

आने वाले वक्त में यानी भविष्य में यह ब्याज के साथ सरकार के पास वापस ही आएगा। इस राहत पैकेज में सरकार का कोई नुकसान नहीं है, उल्टा राहत पैकेज के नाम ऋण पर ब्याज के साथ फायदा ही है। इसे कहते हैं, बनिया बुद्धि..राहत भी और फ़ायदा भी।

आप को अचरज होगा कि प्रधानमंत्री ने कोरोना राहत पैकेज के नाम पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए जो घोषणा की है, वह वित्त मंत्री ने 2020-21 की बजटीय भाषण में पहले ही कर चुकी हैं। वर्ष 2020-21 में केद्र सरकार का 30 लाख 42 हजार करोड़ का बजटीय खर्च पहले से ही तय है लेकिन यह समझ में नही आ रहा है कि अर्थ व्यवस्था को सुधारने के लिए जिस पैकेज की घोषणा की गई है, वह बजटीय खर्चों से इतर है या उसी में शामिल हैं? सरकार साफ़-साफ़ कुछ भी नहीं बता रही है। इतना जरूर कहूँगा कि लॉकडाउन मे हजारों लोगो की जान तो बच गई है लेकिन लाखों की कमर टूट गई है।

जय हिंद

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