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गुआम से अमेरिकी बमवर्षक विमानों की वापसी, भारत के साथ मिलकर हिंद प्रशांत क्षेत्र में चायना को काउंटर बैलेंस करने की तैयारी

विवेक ओझा

अमेरिका हिंद महासागर में भारत का उदय क्षेत्रीय आर्थिक शक्ति के तौर पर चाहता है जिससे कि पश्चिमी प्रशांत महासागर में तैनात अमेरिकी फ़ौज पर कम दबाव हो और वो भारत के साथ मिलकर बोझ उठाए।

नई दिल्ली (स्तम्भ): पिछले 16 वर्षों में पहली बार अप्रैल 2020 में अमेरिका ने अपने नियंत्रण वाले प्रशांत द्वीपीय क्षेत्र गुआम द्वीप से अपने बम वर्षकों को वापस बुला लिया है। इस प्रशांत महासागर द्वीप के एंडरसन एयरफोर्स बेस से पांच बी -52 स्ट्रेटोफोर्सेज बम वर्षकों को अमेरिका ने वापस बुला लिया है। इस प्रकार गुआम द्वीप पर अमेरिका जिस कंटिन्यूअस बॉम्बर प्रेजेंस (सीबीपी) मिशन को चला रहा था, उसका समापन हुआ है।

अब अमेरिकी स्ट्रेटेजिक कमांड का कहना है कि ये बम वर्षक अमेरिकी मुख्यभूमि में स्थित अड्डों से अधिक प्रभावी तरह से कार्य कर सकेंगे। जब ज़रूरी समझा जाएगा तो इन्हें पैसिफिक में भी तैनात किया जा सकेगा और आवश्यकता पड़ने पर फारस की खाड़ी में भी इनकी शीघ्र तैनाती हो सकेगी। यह कदम अमेरिका के वर्ष 2018 के नेशनल डिफेंस स्ट्रेटजी से संगति रखते हुए उठाया गया है।

गुआम पर अमेरिका का नियंत्रण कैसे?

गुआम में पुर्तगाली खोजकर्ता फ्रेडिनेंड मजेलन की दस्तक के 40 साल बाद 1565 में स्पेन ने इस पर दावा किया। 1898 में स्पेन-अमेरिका युद्ध तक गुआम पर स्पेन का शासन रहा। इसके बाद स्पेन ने पेरिस संधि के तहत गुआम को अमेरिका को सौंप दिया। 1941 में पर्ल हार्बर हमले के बाद गुआम पर जापान का अस्थायी रूप से नियंत्रण रहा। हालांकि तीन साल बाद मित्र बलों ने गुआम को फिर से अपने नियंत्रण में ले लिया। गुआम 1950 में आधिकारिक रूप से अमेरिकी क्षेत्र बना और यह अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ नेवी के अंतर्गत आता है । 1950 में ही अमेरिकी कांग्रेस ने ऑर्गेनिक एक्ट ऑफ गुआम पास किया और वहां के नागरिकों को अमेरिकी नागरिकता मिली। हालांकि गुआम के लोग अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डालते हैं। गुआम में 1970 में पहली बार एक गवर्नर को चुना गया। 1972 के बाद से अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में गुआम का एक नॉनवोटिंग डेलिगेट है।

गुआम उत्तर कोरिया के करीब स्थित अमेरिकी इलाका है। दोनों के बीच की दूरी 3427 किलोमीटर की दूरी है। यह दूरी हवाई और गुआम के बीच की आधी है। गुआम और हवाई के बीच की दूरी 6373 किलोमीटर है। गुआम प्रशांत महासागर में सुदूर दक्षिणी हिस्से का द्वीप है। यह माइक्रनेसिया का सबसे बड़ा द्वीप है।

अमेरिका ने फ्री और ओपन इंडो पैसिफिक की धारणा को मजबूती देने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया है। हिन्द प्रशांत क्षेत्र में घातक बम वर्षकों की तैनाती की संभावना बना कर अमेरिका चीन को प्रतिसंतुलित करने की इच्छा रखता है। यूएस स्ट्रेटेजिक कमांड के प्रवक्ता ने इस निर्णय के पीछे के कारण को स्पष्ट करते हुए कहा कि 2018 में अपनाई गई नेशनल डिफेंस स्ट्रेटजी में प्रावधान किया गया है कि अमेरिका के सामरिक बम वर्षक विमानों को हिन्द प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए प्राथमिक तौर पर उपयोग में लाया जाए। 17 अप्रैल, 2020 को इसी रणनीति के अनुपालन में अमेरिका ने गुआम के संबंध में बड़ा फैसला लिया। अमेरिका के इस निर्णय के पिछे यह भी कारण है कि वह अपने सामरिक बम वर्षक और लड़ाकू विमानों की वैश्विक तैनाती को ऐसी दिशा देना चाहता है कि चीन, उत्तर कोरिया या रूस जैसे देश उसका पूर्वानुमान ना लगा सकें।

उल्लेखनीय है कि गुआम में अमेरिका का नौसैनिक अड्डा चीन के पूर्व में 1800 मील की दूरी पर स्थित है। अमेरिका हिंद महासागर में भारत का उदय क्षेत्रीय आर्थिक शक्ति के तौर पर चाहता है जिससे कि पश्चिमी प्रशांत महासागर में तैनात अमेरिकी फ़ौज पर कम दबाव हो और वो भारत के साथ मिलकर बोझ उठाए।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत अमेरिका रणनीतिक सामंजस्‍य:

भारत और अमेरिका के बीच घनिष्‍ठ साझेदारी एक खुले, मुक्‍त, समावेशी, शांतिपूर्ण एवं समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अत्‍यंत आवश्‍यक है। इस सहयोग को आसियान की केंद्रिता को स्‍वीकार करने; अंतरराष्‍ट्रीय कानून एवं सुशासन का पालन करने; नौवहन की सुरक्षा एवं स्‍वतंत्रता, समुद्र के ऊपर उड़ानों एवं समुद्र के अन्‍य वैध उपयोगों के लिए समर्थन; निर्बाध वैध वाणिज्‍य; और अंतरराष्‍ट्रीय कानून के अनुसार समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की हिमायत के जरिये रेखांकित किया जाता है।

अमेरिका हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा मुहैया कराने के साथ-साथ विकास एवं मानवीय सहायता प्रदान करने में भारत की भूमिका की सराहना करता है। भारत और अमेरिका इस क्षेत्र में सतत, पारदर्शी एवं गुणवत्‍तापूर्ण अवसंरचना विकास के लिए अब भी प्रतिबद्ध हैं। प्रधानमंत्री मोदी और राष्‍ट्रपति ट्रंप ने भारत में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए अमेरिकी अंतरराष्‍ट्रीय विकास वित्‍त निगम (डीएफसी) द्वारा 600 मिलियन डॉलर की वित्‍त पोषण संबंधी सुविधा देने की घोषणा के साथ-साथ इस वर्ष भारत में अपना स्‍थायी कार्यालय खोलने संबंधी डीएफसी के निर्णय का भी स्‍वागत किया।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ विश्‍व स्‍तर पर विकास संबंधी कारगर समाधानों को आगे बढ़ाने के लिए अपने-अपने देशों की साझा प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी और राष्‍ट्रपति ट्रंप तीसरे अथवा अन्‍य देशों में सहयोग के लिए ‘यूसेड’ और भारत के विकास साझेदारी प्रशासन के बीच एक नई साझेदारी के लिए तत्‍पर हैं।

भारत एवं अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में एक सार्थक आचार संहिता की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को ध्‍यान में रखा और इसके साथ ही उन्‍होंने पूरी गंभीरता के साथ अनुरोध करते हुए कहा कि यह अंतरराष्‍ट्रीय कानून के अनुसार सभी राष्‍ट्रों के वैध अधिकारों एवं हितों के लिए पक्षपातपूर्ण नहीं होना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी और राष्‍ट्रपति ट्रंप ने भारत-अमेरिका-जापान त्रिपक्षीय शिखर सम्‍मेलनों; भारत एवं अमेरिका के विदेश व रक्षा मंत्रियों की 2+2 मंत्रिस्‍तरीय बैठक व्‍यवस्‍था; और भारत-अमेरिका-ऑस्‍ट्रेलिया-जापान चतुष्कोणीय परामर्श, इत्‍यादि के जरिये पारस्‍परिक सलाह-मशविरा को मजबूत करने का निर्णय लिया। प्रधानमंत्री मोदी और राष्‍ट्रपति ट्रंप अमेरिका, भारत एवं अन्‍य साझेदारों के बीच समुद्री क्षेत्र संबंधी विशिष्‍ट जानकारियों को और भी अधिक साझा करने के लिए तत्‍पर हैं।

(लेखक अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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