अयोध्या : अपने ही कर रहे महंतों का अंत
लखनऊ । राम की नगरी ‘अयोध्या’ में सब कुछ ठीक नहीं है यहां के मठों व मंदिरों में इधर कुछ वर्षों से गोलियों की आवाज गूंजने लगी है। कई संतों-महंतों की हत्या हो चुकी है। हत्याओं का यह सिलसिला कहां जाकर थमेगा कह पाना मुश्किल है। हत्याओं की वजह है अथाह संपत्तियों पर कब्जे की होड़। संतों की हत्या कोई बाहरी नहीं उनके अपने ही कर रहे हैं। अयोध्या को साधुओं का शहर भी कहा जाता है। यहां की गली-सड़कों से लेकर मंदिरों और मठों में महंतों और साधुओं की अपनी एक अलग दुनिया है लेकिन विगत कुछ वर्षों से यह क्षेत्र महंत और साधुओं की लगातार होती हत्याओं के कारण सुर्खियों में हैं। इनके खूनी खेल से अयोध्या की छवि बिगड़ रही है। जिला प्रशासन ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि मठों व मंदिरों की संपत्तियों पर कब्जे को लेकर पिछले कुछ वर्षों में कई घटनाएं सामने आई हैं। अधिकारियों की मानें तो जांच के दौरान ज्यादातर मामलों में संपत्ति का विवाद ही सामने आया है। फैजाबाद के जिलाधिकारी डा़ॅ इंद्रवीर यादव ने अयोध्या में साधु-संतों की हत्या की अहम वजह संपत्ति विवाद बताया है। उन्होंने कहा कि ठाकुर जी के नाम पर मंदिरों की एक नहीं कई स्थानों पर जमीन होती है। इसी को लेकर विवाद होता है। बकौल जिलाधिकारी ‘‘पिछले रिकार्ड को देखा जाए तो अधिकांश विवाद जमीन को लेकर हुए हैं और यह बात सामने आई है कि संतों की हत्या में उनके शिष्यों का हाथ होता है।’’
कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो इसी वर्ष 12 जून को अयोध्या के वासुदेवघाट स्थित बैकुंठ भवन के महंत अयोध्या दास के अचानक लापता होने के बाद उनकी हत्या की खबर आई। बात सामने आई कि महंत की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि मठ में रहने वाले उनके ही चेले रामकुबेर दास ने सुपारी देकर करवाई थी। महंत अयोध्या दास की हत्या धर्मनगरी में इस तरह की पहली वारदात नहीं है। इस कड़ी में दर्जनों नाम हैं जो अपनों के ही शिकार हुए। यहां के मुमुक्ष भवन में स्वामी सुर्दशनचार्य की हत्या उनके ही शिष्य जितेंद्र पांडेय ने की। यह हत्या इतनी दिल दहलाने वाली थी कि अपने गुनाह को छिपाने के लिए हत्यारे शिष्य ने स्वामी सुर्दशनचार्य के शव को भवन में ही गाड़ दिया था। इसी प्रकार हनुमत भवन में रामशरण भी अपनों के ही षड्यंत्र का शिकार हुए। विद्याकुंड मंदिर में महंत स्वामी रामपाल दास को भी विवाद के कारण मौत के घाट उतार दिया गया। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा मौजूदा महंत उमेश दास पर भी जानलेवा हमला हो चुका है। महंत रामाज्ञा दास पहलवान रामपाल दास महंत प्रहलाद दास और हरिभजन दास की हत्या से लोग सहम उठे। एक अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल जानकी घाट (बड़ा स्थान) में महंत मैथिली शरण दास की हत्या में जिस जनमेजय शरण का नाम आया वह वर्तमान में महंत की गद्दी पर विराजमान है।
इधर दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास महाराज ने बताया कि अयोध्या के मंदिरों में जातिवाद और भाई-भतीजावाद हावी है। इसी वजह से इस प्रकार की घटनाएं हो रही हैं। बकौल सुरेश दास ‘‘महंत अपने संबंधियों को लाभ पहुंचाने के चक्कर में रहते हैं और उनका असली उत्तराधिकारी गद्दी पाने से वंचित रह जाता है। इससे आपसी द्वेष और असंतोष बढ़ता है।’’ रामनगरी में असली साधुओं के बीच कई ऐसे चहेरे में भी हैं जिनका वास्ता जरायम की दुनिया से है। ऐसे तथाकथित साधुओं ने अयोध्या के विभिन्न मठों में अंदर तक घुसपैठ कर ली है। अयोध्या में रहने वाले लोग भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि मठों व मंदिरों में संपत्ति के कब्जे को लेकर जो हिंसक प्रवृत्ति फैल रही है वह साधु समाज और अयोध्या के लिए शुभ संकेत नहीं है। इस बारे में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के उत्तर प्रदेश मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने कहा कि मठ-मंदिरों में संपत्ति के लालच में अनधिकृत लोग भी प्रवेश कर जाते हैं और महंतों के शिष्य बन जाते हैं। संत समाज को स्वयं जागरूक होना पड़ेगा और ऐसे तत्वों को बाहर करना होगा। सरकार की तरफ से प्रमुख संत-महंतों को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। स्थानीय भाजपा सांसद लल्लू सिंह भी इस बात को मानते हैं कि समाज में जब धनबल का प्रभाव बढ़ता है तो इस प्रकार की घटनाएं बढ़ती हैं। बकौल लल्लू सिंह ‘‘संत-महंतों की हत्या की प्रमुख वजह उनकी संपत्ति ही है। साधु के वेश में कुछ स्वार्थी लोग अयोध्या की गरिमा को गिरा रहे हैं। साधु-संतों को इस तरह के लोगों की ठीक तरह से पहचान कर शरण देनी चाहिए।’’