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अखिलेश यादव के पास दो सरकारी घर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इसमें दिक्कत क्या

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुख्यमंत्री के पास बहुत काम होते हैं ऐसे में अगर उनके पास दो सरकारी आवास रहें तो इसमें क्या हर्ज है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि मुख्यमंत्री के पास काफी संख्या में लोग मिलने आते हैं और उनका निवास भी एक तरह का दफ्तर ही हो जाता है|ये टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दो सरकारी आवास आवंटित करने के खिलाफ दायर याचिका पर अप्रैल में सुनवाई करने का निर्णय लिया है।
पीठ ने कहा कि अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं, लिहाजा चुनाव के बाद इस याचिका पर सुनवाई की जाएगी। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी थी। पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि अगर मुख्यमंत्री केपास दो सरकारी आवास हैं तो इसमें परेशानी क्या है। एक आवास रहने के लिए और एक दफ्तर के लिए। वैसे भी मुख्यमंत्री केपास बहुत काम होते हैं और बड़ी संख्या में लोग उनसे मिलने आते हैं।अगर काम के लिए दूसरा आवास लिया गया है तो इसमें गलत क्या है। पीठ ने कहा कि कई बार हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केपास भी दो सरकारी आवास होते हैं। पीठ ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि आप अदालत का वक्त बर्बाद कर रहे हैं। हमारे समक्ष कई महत्वपूर्ण मामले लंबित हैं।
लोग वर्षों से जेल में हैं। उन मामलों की सुनवाई अधिक जरूरी है। हालांकि याचिकाकर्ता के यह कहने पर कि नियम के मुताबिक, मुख्यमंत्री को एक ही सरकारी आवास देने का प्रावधान है पीठ ने कहा कि विधानसभा चुनाव के बाद इस पर सुनवाई की जाएगी।

CM को दो सरकारी घर देना नियम के खिलाफः याचिकाकर्ता

गैर सरकारी संगठन लोकप्रहरी द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया कि मुख्यमंत्री अखिलेश को लखनऊ में दो सरकारी आवास मिला हुआ है। पहला 5, कालिदास मार्ग है जबकि दूसरे सरकारी आवास का पता 4, विक्रमादित्य मार्ग है। याचिका में कहा गया है कि दो सरकारी आवास आवंटि करना उत्तर प्रदेश मंत्री (वेतन, भत्ते और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम, 1981 से विपरीत है। 

इससे पहले गत नवंबर महीने में हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि एक आवास का इस्तेमाल दफ्तर के तौर हो रहा है। मुख्यमंत्री के पास काफी संख्या में लोग मिलने आते हैं, ऐसे में परिवार की निजता उल्लंघन होता होगा। 

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