राज्य

इस दंगल में और भी हैं ‘महावीर’, रूढ़ियों को धोबीपछाड़ देती बेटियां भी

dangal_indore_girls_20161222_102213_21_12_2016बेशक महावीर फोगाट हरियाणा जैसे राज्य में रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़कर अपनी बेटियों को कुश्ती में आगे लाए और उन्होंने देश के लिए सोना जीता। उनके जीवन पर बनी आमिर खान की ‘दंगल” फिल्म रिलीज के लिए तैयार है। पर देश में ऐसे और भी महावीर हैं जो बेटियों को कुश्ती में आगे ला चुके हैं। ऐसी और भी गीता और बबीता फोगाट हैं जो दंगल में उतर चुकी हैं।अभाव, संघर्ष और तानों के बीच भी वे अपने गांव, शहर और राज्य और देश का नाम रोशन कर रही हैं। वर्ष 1997 में राष्ट्रीय कुश्ती संघ ने जब महिला कुश्ती शुरू की तो देश के कई बड़े पुस्र्ष पहलवानों ने इसका विरोध किया था, लेकिन आज देश के शहर, गांव और कस्बों की लड़कियां कुश्ती में लोहा मनवा रही हैं। महिला कुश्ती के जज्बे व संघर्ष को दिखाती नईदुनिया की ये रिपोर्ट।

समाज देता था ताने, आज कर रहा तारीफ

इंदौर की बड़ी ग्वाल टोली के सामान्य और पिछड़े परिवार की नीलिमा बौरासी ने जब कुश्ती की ओर कदम बढ़ाए तो उन्हें समाज के कई ताने सुनने पड़े। समाज के महिला-पुस्र्ष कहते थे, अरे लड़कियां भी कहीं कुश्ती लड़ती हैं? ये समाज का नाम डुबोएंगी। जब कास्ट्यूम पहनती थीं तो सब कहते, अरे ये छोटे कपड़े शोभा देते हैं क्या? पर जब मैडल जीते तो समाज के वही लोग अब तारीफ करते नहीं थकते।कोलकाता में साल 2013 में हुई सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में नीलिमा को ब्राउंज मैडल मिला। उन्होंने राज्य स्तरीय स्पर्धाओं में अब तक 8 गोल्ड मैडल जीते हैं। पिता मुन्नालाल बौरासी नेशनल इंस्टिट्यूट कोच रहे हैं। दादा जगन्नाथ भी अपने जमाने के मिट्टी पकड़ पहलवान रहे हैं। सलमान खान की रेसलिंग पर बनी फिल्म सुल्तान में भी उनका रोल था। अब महावीर फोगाट के जीवन पर बनी फिल्म दंगल में भी वे कुश्ती लड़ते नजर आएंगी।

दर्द झेलने पर टूटी हिम्मत, मां और दादी ने बढ़ाया हौसला

पिछले महीने सिंगापुर में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मैडल जीतने वाली इंदौर की अर्पणा विश्नोई को अब कौन नहीं जानता। उन्हें कुश्ती विरासत में मिली। वे अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी की रेसलर हैं। अर्पणा कहती हैं, आठ साल पहले जब मैंने कुश्ती की ट्रेनिंग लेना शुरू किया तो बहुत तकलीफ होती थी। एक्सरसाइज करने के बाद बॉडी में इतना दर्द होता था कि उठना मुश्किल होता था। तब मां गंगादेवी और दादी रूक्मिणीदेवी मेरा हौंसला बढ़ातीं। कहतीं, बेटा मेहनत कर ले, यही काम आएगा। अर्पणा का यही संघर्ष काम आया। अर्पणा के खाते में स्कूल, यूनिवर्सिटी और स्टेल लेवल के गोल्ड, सिल्वर और ब्राउंज मैडल भी हैं।

ये चित्रा तो लड़कों से भी भिड़ जाती है

दो साल पहले तक चित्रा यादव कबड्डी खेला करती थीं, लेकिन इंदौर के मल्हार आश्रम व्यायामशाला के रेसलिंग कोच वेदप्रकाश ने कहा कि छोड़ो कबड्डी, तुम कुश्ती क्यों नहीं लड़ती? कोच की बात चित्रा को जम गई और अब वह अखाड़े में है। वह लड़कों के साथ ही कुश्ती की प्रैक्टिस कर रही हैं। लड़कों के साथ तुम्हें झिझक नहीं होती? इस सवाल पर चित्रा कहती है, ना! काहे की झिझक? मेरे वजन 75 (किलोग्राम) की कोई लड़की नहीं है, इसलिए मुझे उनके साथ लड़ना पड़ रहा है।कोच भी कहते हैं, तुम तो ओपन ही लड़ो। पिता रामचंद्र यादव छोटी-मोटी पहलवानी किया करते थे। अब बैलगाड़ी से लोहा ढोते हैं। पहले तो बेटी को कुश्ती में जाने से रोका लेकिन उसके समर्पण को देखकर वे भी खुश हैं। भागीरथपुरा जैसे पिछड़े इलाके की यह लड़की 2015 में सीहोर में इंटर कॉलेज लेवल की कुश्ती में गोल्ड मैडल ला चुकी है। शाजापुर में राज्य स्तरीय सीनियर कुश्ती स्पर्धा में भी स्वर्ण पदक जीता।

पिता बॉडी बिल्डर और बेटी नेशनल चैम्पियन

मालवा में कुश्ती की उर्वर भूमि रहे इंदौर से ही अपूर्वा वैष्णव भी निकली हैं। दादा बाबूराम वैष्णव भी जाने-माने पहलवान थे तो पिता अजय वैष्णव बॉडी बिलिडंग में सात बार मि. एमपी और तीन बार वेस्टर्न इंडिया चैम्पियन रहे। एक बार भारतश्री का दर्जा भी मिला। खेलों से जुड़े परिवार ने अपूर्वा के कुश्ती में आने की राह आसान की। पिता के जिम में आते-आते वह मल्हार आश्रम कुश्ती केंद्र की तरफ मुड़ गई। ढाई साल की कुश्ती में वे स्टेट सब जूनियर प्रतियोगिता में दो बार फर्स्ट रहीं। नेशनल स्कूल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीता और इसके बाद 2012 में टर्की में आयोजित वर्ल्ड स्कूल चैम्पियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

तोड़े समाज के बंधन, अभावों के बीच निखरी रानी

रानी राणा ग्वालियर के जखाड़ा गांव में जाट परिवार की बेटी हैं। समाज की बंदिशों के कारण लड़कियों का कुश्ती लड़ना एक सपना था लेकिन गांव का दंगल देखते-देखते उन्होंने कब कुश्ती लड़ने का मन बना लिया किसी को पता ही नहीं चला। उन्होंने ग्रामीण राष्ट्रीय ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगिता में दो बार गोल्ड और एक बार सिल्वर जीतकर अपना लोहा मनवाया।नेशनल सब जूनियर में भी वे सिल्वर जीत चुकी हैं। आल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में उन्हें ब्राउंज मैडल मिल चुका है। साधारण किसान की बेटी रानी अब भी अभावों के बीच है। इसीलिए इंदौर के अजय वैष्णव अपनी बेटी की तरह रानी की कुश्ती की तैयारी और खुराक का खर्च उठा रहे हैं। वह जनवरी में सिरसा में होने वाली आल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी कुश्ती स्पर्धा के लिए तैयारी कर रही हैं।

महू में भी बेटियों ने थामा अखाड़े का ध्वज

महू के ऋषि सोनकर ने कई कुश्तियां लड़ीं। राष्ट्रीय स्पर्धा में गोल्ड मैडल मिला। पिता बलवंत सोनकर, दादा ताराचंद सोनकर भी अपने जमाने के पहलवान रहे। ऋषि की दो बेटियां अनेरी और प्रांजल भी अब कुश्ती लड़ रही हैं। अनेरी तो कुश्ती के मुख्यमंत्री कप में संभाग का प्रतिनिधित्व कर चुकी है और 70 किलोग्राम में अव्वल रही। महू के कोदरिया गांव के राजेश पाटीदार पहलवानी किया करते थे। उन्होंने भले ही कुश्ती को अलविदा कह दिया हो, लेकिन बेटी श्री और भाई की बेटी हर्दिका को जरूर कुश्ती की ट्रेनिंग दे रहे हैं।

यहां तो पूरे मोहल्ले की लड़कियां लड़ रही कुश्ती

इंदौर का बड़ी ग्वाल टोली एरिया। यहां रामनाथ गुरू की लगभग 75 साल पुरानी व्यायामशाला है। अखाड़े का असर यह रहा कि यहां कई पहलवान कुश्ती के दांवपेंच सीखकर आगे निकले। रामनाथ गुरू तो चले गए लेकिन वे कुश्ती का ऐसा बीज बो गए कि अब यहां की कई लड़कियां भी अखाड़े में ताल ठोंक रही हैं। रेसलिंग की नेशनल प्लेयर नीलिमा इसी अखाड़े की उपज हैं। उनकी देखादेखी इस समय मोहल्ले के गरीब व मजदूर परिवारों की लगभग 30 लड़कियों ने कुश्ती लड़ना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री कप में सफलता हासिल करने वाली चंचल, शिखा व स्वाति बौरासी, विशाखा चौधरी इसी अखाड़े से ट्रेनिंग ले रही हैं।

किसान, मजदूर की बेटियां भी खेलो इंडिया में

खानदानी पहलवान तो अपनी बेटियों और पोतियां तो कुश्ती में आगे ला ही रहे हैं, लेकिन अब किसानों और मजदूरों की बेटियां भी अखाड़े में ताल ठोंक रही हैं। महेश्वर की मातंगेश्वर व्यायामशाला के उस्ताद देवकिशन यादव ने अपनी पोती और पहलवान विक्रम यादव ने भतीजी पूजा को भी एक साल से अखाड़े में उतार दिया है। पूजा मुख्यमंत्री कप के अलावा स्कूली स्तर पर इंदौर में दो बार कुश्ती प्रतियोगिता लड़ चुकी हैं। कहती हैं, अब कुश्ती को ही कैरियर बनाऊंगी।नर्मदा में मछली पकड़ने वाले धर्मेंद्र वर्मा की बेटी नंदिनी, बदनावर के किसान राजेश पाटीदार की बेटी शिवानी पाटीदार, कोद गांव के राधेश्याम कुमावत की बेटी पूजा, धार नागदा के गोपाल जाट की बेटी सोनू, सिलोदा गांव के किसान मोहनसिंह की बेटी पूजा मंडलोई, खरगोन (गोगावां) की दीपाली लखन तंवर, कौसर खान, सानिया रसीद खान और फरनाज शेख भी इसी राह पर हैं।खंडवा (बोरगांव) की माधुरी जगदीश पटेल, छनेरा गांव की नंदिनी अंकरे, पलसूद (बड़वानी) की ज्योति बामने, राजपुर की अन्न्पूर्णा प्रजापत, मोयदा की वर्षा भगवान चौहान सब की सब केंद्र सरकार की आओ खेलो इंडिया में कुश्ती के ट्रायल से गुजर रही हैं। सातवीं से लेकर 12वीं कक्षा तक की इन लड़कियों के इरादे बुलंद नजर आते हैं।

इनका कहना है

लडके हों या लडकियां, कुश्ती की ट्रेनिंग देने के लिए दोनों पर बराबर मेहनत करनी पड़ती है। लड़कियां स्वभाव से भी नाजुक होती हैं, इसलिए मनोवैज्ञानिक रूप से उनका डर बाहर निकालना पड़ता है। उन्हें भी लड़कों की तरह ताकतवर बताकर रेसलिंग के लिए तैयार किया जाता है। – वेदप्रकाश, कुश्ती के जाने-माने कोच

बेटियों की भ्रूण हत्या के मामले में कुख्यात हरियाणा जैसे राज्य में महावीर फोगाट ने बेटियों को कुश्ती में लाकर बड़ा परिवर्तन किया है। इससे लड़कियों के कुश्ती में आने के रास्ते और बेहतर हुए हैं। लोग दकियानूसी सोच से बाहर आए हैं। साक्षी मलिक के बाद महिला कुश्ती में ओलिंपिक में पदक जीतने की राह और आसान हुई है।- कृपाशंकर पटेल, अर्जुन पुरस्कार प्राप्त पहलवान

 

Related Articles

Back to top button