क्या कर्मफल की इच्छा दोषपूर्ण अभिलाषा है, अनासक्त कर्म ही क्यों श्रेष्ठ है?
हम सब कर्मशील प्राणी हैं। कर्म की प्रेरणा है कर्मफल प्राप्ति की इच्छा। कर्मफल प्राप्ति की अभिलाषा के कारण ही सभी प्राणी सक्रिय हैं। मानव जीवन अनंत अभिलाषा है। लेकिन उपनिषद् और गीता में इच्छारहित कर्म पर जोर है। फल की इच्छा न करना-मा फलेषु कदाचन गीता का केन्द्रीय विचार है। प्रश्न उठता है कि … Continue reading क्या कर्मफल की इच्छा दोषपूर्ण अभिलाषा है, अनासक्त कर्म ही क्यों श्रेष्ठ है?
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