उत्तराखंडराज्य

गगास नदी से जुड़ेगा जीवन-जीविका-जमीर का रिश्ता

देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं में गगास नदी ऐसी है, जिसके दो उद्गम स्थान माने जाते हैं। इसकी भौतिक और आध्यात्मिक महत्ता के चर्चे होते हैं। कभी सदाबहानी रही गगास अब तेजी से सूख रही है।
गगास नदी से जुड़ेगा जीवन-जीविका-जमीर का रिश्ता
स्थानीय जनता की समझ और सहयोग के बल पर और विभिन्न सरकारी विभागों को साथ लेकर इस नदी को फिर से सदाबहानी करने का अभियान अमर उजाला फाउंडेशन 22 मई से शुरू कर रहा है।

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कुमाऊं के अल्मोड़ा जिले की सबसे ऊंची चोटी भटकोट और आध्यात्मिक महत्व की दूसरी चोटी पांडवखोली के बीच से निकलने वाली गगास नदी को फिर से सदानीरा यानी सदाबहानी करने के अभियान का शुभारंभ 22 मई को पदयात्रा के साथ होगा।

अभियान के इस पहले चरण का श्रीगणेश राजस्थान की कई सूख चुकी नदियों को जनसहयोग से सदानीरा करने वाले, अंतरराष्ट्रीय मेगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित और ‘जल पुरुष’ के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह द्वाराहाट इलाके में गगास की धारा के साथ यात्रा कर करेंगे। पदयात्रा के दूसरे चरण का शुभारंभ 24 मई को गगास की भटकोट पर्वत के पास से निकलने वाली दूसरी धारा पर लोध गांव से प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी के नेतृत्व में होगा।

सामाजिक-आध्यात्मिक महत्व वाली नदी

इन पदयात्राओं में स्थानीय ग्राम समाज के महिला-पुरुषों के साथ ही स्थानीय विद्यालयों के विद्यार्थी और अध्यापक-अध्यापिकाएं शामिल होंगे। पदयात्राओं के बाद जमीनी काम में भी यही लोग मिलकर काम करेंगे। कुछ स्कूल, कॉलेजों के वार्षिक कैलेंडर में गगास पर काम करने को शामिल किया जाना तय भी हो गया है।

अपनी कुल 121 किमी की लंबाई में 70 से भी अधिक प्रमुख सहायक नदियों से जलबल पाने वाली और रानीखेत की जीवनरेखा कहाने वाली गगास नदी कोई 12 साल पहले ही सदाबहानी का रूतबा खो चुकी थी और इधर के वर्षों में बड़ी तेजी से सूखती जा रही है।

आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों और भूगर्भ शास्त्रीय जानकारियों के आधार पर और स्थानीय लोगों के पारंपरिक ज्ञान को साथ में जोड़कर इस सामाजिक-आध्यात्मिक महत्व वाली नदी को सदाबहानी करने का अभियान अमर उजाला फाउंडेशन ने हाथ में लिया है। स्थानीय समाज की सक्रिय भागीदारी से एक-एक पग बढ़ने की नीति पर काम करते हुए विभिन्न सरकारी विभागों की लगातार सहयोग-सलाह इस अभियान की धुरी होगी।

सब मिलकर साथ चलें, गगास को सदाबहानी करें, इस नीति की धार पर आगे बढ़ने वाले इस अभियान को औपचारिक रूप से शुरू करने से पहले कई सभाएं करके गगास के जल से अपना जीवन सींचने वाले अनेक गांवों का मन टटोला गया है। गगास को सदाबहानी करने के लिए लंबे समय से वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले भूगोलविद् और कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में नेचुरल रिसोर्स डाटा मैनेजमेंट सिस्टम के प्रमुख प्रो. जेएस रावत और उनकी टीम से कामकाज की रणनीति पर सघन चर्चाएं की गई हैं।

संबंधित विभागों के शीर्ष पदाधिकारियों और प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों से बात की गई है। अनेक सेवारत और सेवानिवृत्त वन अधिकारियों के अनुभवों का लाभ लेने की कोशिश की गई है।

आने वाली 22 मई को द्वाराहाट इलाके से शुरू होने वाली पदयात्रा कुकछीना, सुरना, भतौरा गांवों से गगास की धारा के साथ-साथ चलते हुए नौलाकोट पर निकलेगी और इस यात्रा के दौरान लगातार स्थानीय ग्राम समाज से संवाद-सलाह लेने और मिलकर काम करने का संकल्प दोहरवाया जाएगा। पदयात्रा के दूसरे चरण में 24 मई को लोध गांव से गगास की धारा के साथ-साथ चलना शुरू करके अल्मिया, तल्लामनारी आदि गांवों से होते हुए बिंता पर निकला जाएगा। 

गगास को सदाबहानी करने के काम को अंजाम देने के लिए स्थानीय ग्राम समाज, वन विभाग के हर स्तर के कर्मचारी, अधिकारी, विभिन्न पेयजल योजनाओं को कार्यकारी अधिकारी, सीड सामाजिक संस्था, वन पंचायत, महिला एकता परिषद, विभिन्न गांवों में सक्रिय महिला मंगल दल, स्थानीय विद्यालय-महाविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों के विद्यार्थियों को सक्रिय किया जा रहा है। इसमें पारदर्शी तरीके से और पूरी तरह से निस्वार्थ काम करने वाली और भी सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं को जोड़ने का भी  प्रयास किया जाएगा।

गगास और उसकी सहायक नदियों-धाराओं से जुड़े नौलों, गधेरों और खाल-खावों को फिर से जलपूरित करने की नीति पर काम करते हुए हर जगह स्थानीय समाज की जिम्मेदारी पर ही आगे बढ़ा जाएगा। यानी काम वहीं पर शुरू होगा जहां पर स्थानीय समाज उस काम की शुरुआती और भविष्यत देखभाल और संरक्षण की जिम्मेदारी लेगा।

अभियान का मकसद टिकाऊ समाज के बल पर गगास को सदाबहानी करने का टिकाऊ काम करना है। समाज के हर जाति-आयु वर्ग को इससे जोड़ने का काम किया जा रहा है। समाज और सरकार मिलकर काम करेंगे तो ही पानी के संकट से त्रस्त लाखों लोगों और वन्यजीवों को राहत मिलेगी और पर्यावरण भी संतुलित करना होगा।

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