‘प्रकृति की संगति में स्वयं का पुनर्सृजन ही वास्तविक अभिव्यक्ति’
हृदयनारायण दीक्षित: बोलने से मन नहीं भरता। लगातार बोलना हमारा व्यावहारिक संवैधानिक दायित्व है। विधानसभा का सदस्य हूं और अध्यक्ष भी। जनप्रतिनिधि जनता की ओर से बोलते हैं। लोगों ने मुझे चुना है कि बोलो, सदन में बोलो। सदन की समितियों में बोलो। सभाओं में बोलो और गोष्ठियों में बोलो। बोलते बोलते थक जाना चाहिए … Continue reading ‘प्रकृति की संगति में स्वयं का पुनर्सृजन ही वास्तविक अभिव्यक्ति’
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