सौन्दर्यबोध से भरेपूरे हैं वैदिक पूर्वज

हृदयनारायण दीक्षित : संसार धर्म क्षेत्र है। यह कथन शास्त्रीय है। संसार कर्मक्षेत्र है। पुरूषार्थ जरूरी है। यह निष्कर्ष वैदिक है। संसार आनंद क्षेत्र है, परम चरम मधुरसा है। वह रसपूर्ण है। तैत्तिरीय उपनिषद् में ‘संपूर्णतारस है।’ छान्दोग्य उपनिषद् में ओम्-उद्गीथ रस है। बताते हैं, “प्राणियों का रस पृथ्वी है। पृथ्वी का रस जल। जल … Continue reading सौन्दर्यबोध से भरेपूरे हैं वैदिक पूर्वज