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500 साल पहले टेलीफोन की तरह था इनका इस्तेमाल, राजा-रानी करते थे बात

ग्वालियर. वर्ल्ड टेलीकॉम डे मंगलवार को मनाया जा रहा है। ग्वालियर के हेरिटेज ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है। यहीं पर एक ऐसी टेक्नॉलॉजी भी मौजूद है जो 500 साल पहले टेलीफोन की तरह काम करती थी। उस तरीके के बारे में, जिसके माध्यम से बात की जाती थी।
500 साल पहले टेलीफोन की तरह था इनका इस्तेमाल, राजा-रानी करते थे बात
 
-करीब 300 फीट ऊंचाई पर स्थित ग्वालियर फोर्ट का स्थान टॉप 10 में आता है।
-करीब ढ़ाई किमी लंबे और 900 मीटर चौड़े इस फोर्ट पर 10 से ज्यादा ऐतिहासिक विरासत मौजूद हैं।

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ग्राहम बेल ने 1876 में किया टेलीफोन का अविष्कार, हमारे यहां 15वीं शताब्दी में करते इसका उपयोग

-ग्वालियर फोर्ट की तकनीक का विदेशी भी लोहा मानते थे।
-15वीं शताब्दी में ग्वालियर फोर्ट पर संदेश का आदान-प्रदान करने के लिए भी आधुनिक तकनीक का उपयोग होता था। किला राजा मानसिंह तोमर ने बनवाया था।
-राजा रानी के कमरे के बीच मे पाईप बिछे हुए थे जो उस समय टेलीफोन का कार्य करते थे।
-नीचे तहखाने मे रानियों का स्नानगृह था जो बाद मे जौहर के काम मे भी लाया गया।
-इसी तहखाने मे औरंगजेब ने अपने छोटे भाई मुराद को फांसी भी दी थी।
-संदेश भेजने और सुनने के लिए किले में अलग-अलग जगह इस प्रकार की व्यवस्था थी। इसके तहत दो छेद हुआ करते थे।
-एक छेद का उपयोग बोलने के लिए और दूसरे का उपयोग सुनने के लिए होता था।
-एलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने 10 मार्च 1876 में इससे कुछ हद तक मिलती-जुलती तकनीक का उपयोग कर टेलीफोन आविष्कार किया था।
 
पहले सुनने, बाद में यातना के लिए होने लगा इस्तेमाल
-ग्वालियर फोर्ट के मानमंदिर के तलघर में बने छेद पहले टेलीफोन के तरह इस्तेमाल होते थे।
-जब ये किला मुगलों के अधीन आया तो इसे मुगल साम्राज्य की शाही जेल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
-इस तलघर में शाही कैदियों को यातना दी जाती थी। जिन छेदों का इस्तेमाल टेलीफोन की तरह होता था, उनसे अब पानी की धार जाती थी।
-इन छेदों से पानी तलघर में बने एक गड्ढे में भरता जाता था। इसके चारों तरफ कैदी जंजीरों से लटके रहते थे। उन्हें फिर पानी में लटकाकर यातना दी जाती थी।

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