वासुदेव_कृष्ण : आशुतोष राणा की कलम से..{भाग_७}

स्तम्भ : काम का ज्वर उतरते ही पवनरेखा की देह पर आरूढ़ उग्रसेन ने भी अपनी दृष्टि की कोर से प्रकोष्ठ के द्वार पर खड़ी उस पुरुष आकृति को देखा, ओह ये तो उग्रसेन है !!  वास्तविक उग्रसेन को प्रकोष्ठ द्वार पर उपस्थित देख दुर्मिल सिहर गया, उग्रसेन के रूप में उसे अपनी मृत्यु साक्षात … Continue reading वासुदेव_कृष्ण : आशुतोष राणा की कलम से..{भाग_७}