कविता 2020 : जो मेरे चावल खा जाए, ऐसा मित्र कहाँ से लाऊँ
कहाँ कहाँ खोजूँ मैं उसकोकिसके दरवाज़े पर जाऊँजो मेरे चावल खा जाएऐसा मित्र कहाँ से लाऊँ। जीवन की इस कठिन डगर मेंदोस्त हज़ारों मिल जाते हैंजो मतलब पूरा होने परअपनी राह बदल जाते हैंहरदम साथ निभाने वालासाथी ढूँढ कहाँ से लाऊँ जो मेरे चावल खा जाएऐसा मित्र कहाँ से लाऊँ। हार सुनिश्चित मालूम थी परसाथ … Continue reading कविता 2020 : जो मेरे चावल खा जाए, ऐसा मित्र कहाँ से लाऊँ
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