दस्तक-विशेषस्तम्भ

भारत पर चीन का आर्थिक शिकंजा

के.एन. गोविन्दाचार्य

स्तम्भ: चीन ने जब से लद्दाख सीमा पर सेना लाकर खड़ी कर दी है और सीमा रेखा पर छिटपुट झड़पें हुई हैं, तब से चीन से होने वाले अनियंत्रित आयात पर चर्चाएं गरम हुई हैं। इसमें मुख्य रूप से #व्यापारअसंतुलन पर ही अधिकाँश चर्चाएं केंद्रित हैं। वैसे वह है भी प्रमुख चिंता का विषय। पर अगर अन्य विषयों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे भी शीघ्र ही चिंताजनक स्वरुप धारण कर सकते हैं।

चीन का भारत पर चौतरफा आर्थिक हमला जारी है और अनजाने में गत 10 वर्षों में चीन ने भारत आर्थिक क्षेत्र पर अपना मजबूत शिकंजा कस लिया है। 2010 तक केवल #आयातनिर्यात में असंतुलन ही भारत के लिए चिंता का विषय था, लेकिन अब उसमें 3 अन्य विषय भी साफ़ तौर पर जुड़ गए दिखते हैं। इन चारों विषयों पर एकसाथ विचार करते है तो विषय की गंभीरता स्पष्ट हो जाती है।

 #व्यापार_संतुलन (Trade Deficit)

वैसे तो चीन जब से विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सदस्य बना है तब से भारत और चीन के व्यापार में असंतुलन बना हुआ है, पर 2015-16 से वह भारत को हर वर्ष चीन से व्यापार में 50 बिलियन डॉलर से अधिक घाटा दे रहा है। 2017-28 में तो चीन के साथ व्यापार घाटा 63 बिलियन डॉलर हो गया।  केंद्र सरकार ने चीन पर व्यापार संतुलन दूर करने के लिए दबाव बनाया तो पिछले दो वर्ष 2018-19 और 2019-20 में व्यापार घाटे में 48.5 बिलियन डॉलर रहा।

इससे कुछ लोग राहत महसूस कर रहे थे, तभी चीन का हिस्सा बन चुके हांगकांग के साथ व्यापार के तथ्य सामने आए। जहाँ पहले हांगकांग के साथ व्यापार में भारत लाभ की अवस्था मे था, वहीँ इन दो वर्षों में भारत को उससे भी घाटा होने लगा। अर्थात चीन ने धूर्तता करके कुछ सामान हांगकांग के माध्यम से भेज कर अपना निर्यात कर दिखाया। हांगकांग से 2018-2019 में भारत को 5 बिलियन डॉलर का घाटा हुआ और 2019-20 में 6 बिलियन डॉलर का। जबकि 2017-18 में भारत को 4 बिलियन डॉलर का लाभ था। अर्थात चीन से व्यापार घाटा अब भी भीषण समस्या बना हुआ है।

#चीनकीकंपनिया भारत में

2014 के बाद “मेक इन इंडिया” का सबसे अधिक लाभ किसी ने उठाया है तो वह चीन है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है स्मार्ट मोबाइल । 2014 में भारतीय ब्रांड के मोबाइल 65 बिकते थे। 2020 आते-आते चीन के मोबाइल ब्रांड 72% बिकने लगे और भारतीय मोबाइल कंपनिया लगभग गायब हो गई। अब सब चीन की कंपनियों ने भारत में मोबाइल बनाने की फैक्टरियां लगा ली है। 2019-20 में भारत में स्मार्ट मोबाइल हैंडसेट का मार्किट 2 लाख करोड़ रूपये का है, जिसमें 72% पर चीन की कंपनियों का कब्जा है।

इसमें रेडमी, ओप्पो, रियल मी, आदि कंपनियां हैं। इसी प्रकार अनेक चीन की कंपनियां भारत में दाखिल हो चुकी हैं। इस समय सोलर एनर्जी सबसे उभरता उद्योग है, भारत मे सोलर पेनल्स बिकते है, वे 90: चीन की कंपनियों के है। वे चीन या मलेशिया से आ रहें हैं या चीन की कंपनियां भारत में ही असेम्बली कर रहीं हैं।

#चीनकाभारतीय स्टार्टअप में निवेश

चीन ने केवल भारत में प्रत्यक्ष निवेश (FDI) ही नहीं किया है, बल्कि उसकी वितीय कंपनियों ने भारत के शेयर बाजार में भी खूब निवेश किया और जिसे आजकल स्टार्टअप कहते हैं, उन कंपनियों में भी चीन ने बहुत धन लगया है। जिस स्टार्टअप की वैल्यू 1 बिलियन डॉलर से ऊपर हो जाती है, उसे यूनिकॉर्न कहते है। भारत में भी अभी ऐसे 30 उनिकोर्न हैं, जिसमें से 18 में चीन ने बहुत पैसा निवेश किया है। उनमें पेटीएम जैसे प्रसिद्ध कंपनी तो चीन के हाथ मे चली गयी है।

#आसियानदेशोंसे होने वाला मुक्त व्यापार

भारत ने दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के संगठन आसियान (ASEAN) के साथ 2009 मे मुक्त व्यापार समझौता किया। आसियान का ऐसा ही मुक्त व्यापार समझौता चीन के साथ है, पर भारत का चीन के साथ नही है। भारत के आसियान से हुए मुक्त व्यापार समझौते का चीन दुरूपयोग कर रहा है।

अगर भारत में वह चीन से निर्यात करता है तो उसे आयात शुल्क देना पड़ता है, इसलिए उसने आसियान के देशों में अपनी कंपनियों के फर्जी कंपनियां खोल दी है और उन कंपनीयों के माध्यम से चीन अपने सामान को उन देशों को दिखाकर भारत को निर्यात करता है, जिस कारण उसे आयात शुल्क नहीं चुकाना पड़ता है। भारत – आसियान में भी व्यापार घाटा पिछले वर्षों में तेजी से बढ़ा है। 2008-09 में उनके साथ भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) 8 बिलियन डॉलर था वह 2018-19 में बढ़कर 22 बिलियन डॉलर हो गया है। इसमें भी प्रमुख कारण चीन द्वारा इन देशों के माध्यम से भारत को निर्यात करना है।

(अपने प्रमुख कुछ कार्यकर्ताओं से बात के आधार पर)

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