हृदयनारायण दीक्षित विश्व मानवता का सतत् विकास हुआ है। मनुष्य ने सुख स्वस्ति और आनन्द के लिए लगातार प्रयत्न किये हैं। प्रकृति और मनुष्य के बीच अंगांगी सम्बन्ध ...
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Comments Off on आनंद के प्यास से जन्म लेती है कला
हृदयनारायण दीक्षित
हृदयनारायण दीक्षित सभी मनुष्य जनहितकारी राजव्यवस्था और समाज व्यवस्था में रहना चाहते हैं। ऋग्वेद (9.111.10 व 11) में सोम देवता से प्रार्थना है कि जहाँ जीवन की सारी ...
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Comments Off on वामपंथ सारी दुनिया में असफल सिद्ध हो गया है : हृदयनारायण दीक्षित
हृदयनारायण दीक्षित हम भारतवासी बहुदेव उपासक हैं। लेकिन बहुदेववादी नहीं। बहुदेव उपासना हमारा स्वभाव है। शिव एशिया के बड़े भाग में प्रचलित देव हैं। रूद्र शिव देव नहीं ...
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Comments Off on सोम से ओम की यात्रा है ‘रूद्र शिव’ : हृदयनारायण दीक्षित
हृदयनारायण दीक्षित स्तम्भ : कला अश्लील नहीं हो सकती। सभी कलाएँ समाज में उदात्त भाव विकसित करने का संधान हैं। यूनानी दार्शनिकों ने कला को प्रकृति की अनुकृति ...
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हृदयनारायण दीक्षित स्तम्भ : भारतीय राजनीति लोकमंगल का उपकरण है। सभी दल अपनी विचारधारा को देशहित का साधन बताते हैं। विचार आधारित राजनीति मतदाता के लिए सुविधाजनक होती ...
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Comments Off on मतदाता के लिए सुविधाजनक होती है विचार आधारित राजनीति
हृदयनारायण दीक्षित स्तम्भ : प्रकृति दिव्यता है, सदा से है। देवी है। मनुष्य की सारी क्षमताएँ प्रकृति प्रदत् है। जीवन के सुख-दुख, लाभ-हानि व जय-पराजय प्रकृति में ही ...
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Comments Off on ईश्वर भी प्रकृति में अवतरित होने के लिए माता पर ही निर्भर
हृदयनारायण दीक्षित स्तम्भ : प्राण से जीवन है। प्राण नहीं तो जीवन नहीं। शरीर में प्राण के संचरण से ही सभी कर्म सम्पन्न होते हैं। तैत्तिरीयोपनिषद में प्राण ...
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Comments Off on पृथ्वी में अन्न प्रतिष्ठित और अन्न में पृथ्वी, पूर्वजों ने की प्राण की तरह अन्न की प्रशंसा
हृदयनारायण दीक्षित स्तम्भ : प्राण से जीवन है। प्राण से प्राणी है। प्राण दिखाई नहीं पड़ते। इसके बावजूद प्राण का अस्तित्व है और प्राण के कारण ही जीव ...
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Comments Off on प्रकाश का पर्याय, सहस्त्रों किरणों वाला सूर्य संसार का प्राण है
हृदयनारायण दीक्षित स्तम्भ : विश्व की सभी सभ्यताओं में पुस्तकों का आदर किया जाता है। पुस्तकों में वर्णित जानकारियाॅं लेखक के कौशल से सार्वजनिक होती हैं। शब्द स्वयं ...
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हृदयनारायण दीक्षित स्तम्भ : क्या ब्राह्मण जाति हैं? पहले वे समूहवाची वर्ण-वर्ग थे। साहित्य में ज्यादा यथार्थ में नगण्य। फिर ब्राह्मण पिता के पुत्र भी ब्राह्मण होने लगे। ...
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Comments Off on ब्राह्मण होने के लिए आंतरिक ऊर्जा को बनाना होता है उर्ध्वगामी