दस्तक-विशेषस्तम्भहृदयनारायण दीक्षित

कोरोना वायरस : सतर्कता की बात ठीक, डराना सही नहीं

हृदयनारायण दीक्षित

लखनऊ : कोरोना महामारी है। महमारी की इस अवधि में हजारों विद्वान व विशेषज्ञ प्रकट हो गए हैं। हमारे जैसे विद्यार्थी हलकान हैं। ढेर सारे विद्वान, ढेर सारे विशेषज्ञ, ढेर सारे चैनल। पुराना फिल्मी गीत याद आता है – किस किस को प्यार करूं? टीवी पर बहसे ही बहसें। एक विशेषज्ञ ने कहा कि कोरोना का विषाणु गर्मी के ताप में झुलस जायेगा। हमने अपनी मित्रमण्डली में विषय रखा। मैंने गर्मी के प्रभाव का अपना ज्ञान जोड़ा। गपशप अंतिम चरण में थी कि विषय का ज्ञान न रखने वाले एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि सरकारी प्रवक्ता ने इस विचार का खण्डन कर दिया है।

एक विशेषज्ञ ने बताया कि यह वायरस प्राकृतिक नहीं है। चीन की प्रयोगशाला में इसका जन्म हुआ। हम यह बात मानने को तैयार ही हो रहे थे कि चीन ने इस बात से इंकार कर दिया। मैं क्या करता? जब बाप ही अपनी औलाद को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है तो आप क्या कर लोगे? लेकिन दूसरे विशेषज्ञ ने ज्ञान जोड़ा कि चीन ने जानबूझकर यह वायरस नहीं पैदा किया। प्रयोग का उद्देश्य दूसरा था। दूसरे विशेषज्ञ ने कहा कि सही जो भी हो, बच्चा तो चीन का ही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प चीन पर गुस्सा हो गये। आपने इसकी सूचना क्यों नहीं दी? यह भी कोई बात हुई कि आपके घर नाटी ब्वाय का जन्म हुआ और आप छुपाए रहे। विशेषज्ञ इस विषय की आगे की चर्चा की जिम्मेदारी ट्रम्प पर छोड़कर आगे बढ़े। न कोरोना से जुड़े विषय कम और न विशेषज्ञ कम। फिर इसी बीमारी की दवा के रूप क्लोरोक्वीन बहस का विषय बनी। कुछ विशेषज्ञों ने अडं़ंगा लगाया। बताया कि यह नुकसानदेह है। अगले ने कहा कि बीमारी पर इसका प्रभाव सुविदित है। विशेषज्ञ बीमार और बीमारी के पक्ष विपक्ष में लड़ते झगड़ते थकते थकते भी राय दे रहे हैं। इसी “बीच कई देशों से खबर उड़ी कि इसकी दवा खोज ली गई है। इससे आशावाद बढ़ा विशेषज्ञों ने कहा इसमें कम से कम दो वर्ष लगने वाला है। फिर रोग निरोध शक्ति” नाम की प्राचीन भारतीय धारणा नए रूप में प्रकट हो गई। शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता का ज्ञान वैदिक काल से है। वैदिक ऋषि 100 वर्ष से ज्यादा लम्बी आयु के अभिलाषी थे। विशेषज्ञों ने रोग निरोधक क्षमता की बाते शुरू की तो योग विशेषज्ञ गहरी सांस लेकर मैदान में आ गए। बता रहे हैं कि इस आसन से वह अंग शक्ति पाता है और उस आसन से यह। कोरोना तो भी अजर अमर।

हम प्राचीन काल से स्वच्छता प्रेमी हैं। विशेषज्ञों ने कोरोना से बचाव के लिए हाथ धोते रहने का ज्ञान दिया। उन्होंने 20 सेकंड का समय जोड़ा। कैसे नापें 20 सेकेंड। हम भारतीय समय की चिंता नहीं करते। लेकिन सौभाग्य से कई गुणी ज्ञानी टी0वी0 पर पधारे। उन्होंने साबुन के झाग को प्रत्येक अंगुली में ले जाकर विधिपूर्वक हाथ धोए। बोले 20 सेकेंड हो गए। यह ज्ञान उपयोगी है। एक साबुन कम्पनी को अपने साबुन के प्रचार का मौका मिला। विशेषज्ञ हाथ धोकर पीछे पड़े हैं। विशेषज्ञों के सामने ढेर सारी समस्याएं है। प्रश्नावली बड़ी है। क्या कोरोना वायरस जूतों से भी फैलता है? एक ने कहा कि जूतों पर भी कुछ समय तक रहता है। अब जूते डराने लगे। जूतों को घर के बाहर ही उतारने की भारतीय परंपरा पुरानी है। घर के हर कोने जूते चलेंगे तो परिणाम सुखद कैसे होंगे? फिर खबर उड़ी कि खबरें देकर खबरदार करने वाले अखबारों से भी कोरोना का वायरस फैल सकते हैं। विशेषज्ञ मौन रहे। सोचा होगा कि अखबार के सम्पादक बुरा मानेंगे तो विशेषज्ञों की विशेषज्ञता कैसे सिद्ध होगी। इस खबर से मैं भी डर गया।

मैं न्यूनतम 15 अखबार पढ़ता हूं। कई अखबारों में लिखता छपता भी हूं। लेकिन अखबारों में इसका खण्डन छपा। अखबार सुरक्षित हैं। इस विषय पर विशेषज्ञों का मौन ही अच्छा ज्ञान है। परस्पर दूर रहने से बचाव का उपाय सबने माना लेकिन एक ही कमरे वाले घरों के निवासी क्या करें? लाखों मजदूरों के किराए के आवास बहुत छोटे हैं।

मुम्बई का धारावी त्रासद स्थिति में है। सरकार भी परेशान है। जीवन यहां सामूहिक है। ऐसे सघन आबादी वाले नगरों में सरकार भी परस्पर दूरी का नियम कैसे लागू करें? प्रवासी मजदूर भूखे हैं। वे घर जाने के लिए तड़प रहे हैं। हजारेां मजदूर हजार डेढ़ हजार किलोमीटर दूर अपने गांवो के लिए पैदल जा रहे हैं। पुलिस इनसे अच्छा बर्ताव नहीं करती। इनमें से कुछ रास्ते में ही दम तोड़ रहे हैं। ऐसे दृश्य भावुक करते हैं। ईश आस्था को प्रश्न वाचक बनाते हैं। विशेषज्ञ बेकार का ज्ञान झाड़ रहे हैं। वे 70 साल पुराने संवैधानिक तंत्र पर अर्थचिंतन नहीं करते। मैं स्वयं इसी संविधान तंत्र का हिस्सा हूं। 70 साल में भी हम सब मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार क्यों नहीं दे सके? उ0प्र0 सरकार ने प्रवासी मजदूरों को घर लाने के अच्छे उपाय किए है। अन्य राज्य भी प्रयासरत हैं। मूलभूत प्रश्न दूसरे हैं कि श्रम बेचने के लिए मजदूर स्थानीय स्तर पर रोजगार क्यों नहीं पा सकते? और उन्हें स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार की व्यवस्था हम 70 साल के बावजूद क्यों नहीं कर सके? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी ध्येय पर सक्रिय हैं। यह स्वागत योग्य है।

विशेषज्ञ डरा रहे हैं। कुछ मौतो का विश्लेषण बता रहे हैं। कुछ खांसी को भी कोरोना से जोड़ रहे हैं। वे खांसने के समय दायें-बांए कंधे में मुंह छुपाने के परामर्श दे रहे हैं। छींकना अपने देश में पहले से अशुभ माना जाता है। विशेषज्ञ छींक के प्रभाव की दूरी बता रहे हैं। कुछ कमरे की सिटकिनी पर भी वायरस का अड्डा बता रहे हैं। लिफ्ट के बटन को वायरस का खतरनाक आवास बता रहे हैं। कोरोना हर जगह है। यहां, वहां, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे। विशेषज्ञों का ज्ञान भय पैदा कर रहा है। वे कहते हैं कि डरना मना है। अजीब बात है। आप ही डरा रहे हैं। आप ही न डरने का निर्देश दे रहे हैं। आप न डरने का निर्देश देकर और भी डरा रहे हैं। मैं वरिष्ठ नागरिक हूं। हम बिना प्रयास ही आज अपने जीवन के 74 वर्ष पूरे कर रहे हैं। अब तक पढ़ता सुनता आया हूं कि जवानी खतरनाक होती है। जवानी में कदम डगमगाते हैं। विशेषज्ञ जवानी पर चुप हैं।

कोरोना काल में बूढ़ों को भारी खतरा बता रहे हैं। सो खांसी आते ही डर जाता हूं। विशेषज्ञों की मानें तो बड़ी उम्र में रोगनिरोधक शक्ति घटती है। मेरी रोग निरोधक शक्ति ठसाठस है। मित्रों के कहने से गिलोय, तुलसी, काली मिर्च आदि का काढ़ा पी रहा हूं। विशेषज्ञ कृपया बताएं कि यह शक्ति जरूरत से ज्यादा बढ़ गई तो क्या होगा? उन्होंने पहले से ही डरा रखा है यह एक नया डर हो सकता है। विशेषज्ञों की न डरने की सलाह ने चैकन्ना किया है। वे अन्य डरों के साथ में कह रहे हैं कि अवसाद से भी बचिए। अवसाद आदि रोगों के मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ भी तमाम परामर्श देने को तत्पर हैं। वे अवसाद का कारण व निदान बता रहे हैं। लेकिन हमारा डर नहीं घटता।

मैं जन्मजात भीरू हूं। कोरोना से कम विशेषज्ञों से ज्यादा डरता हूं। क्या पता कौन विशेषज्ञ बिना पूछे ही परामर्श देने लगे कि लाकडाउन में पुस्तकें पढ़ना अवसाद बढ़ता है। वह बता सकते हैं कि इस समय 90 प्रतिशत पुस्तक पढ़ने वाले लोगों में अवसाद के लक्षण देखे गए हैं कि अवसाद के लक्षण वाले 52 प्रतिशत लोगों में कोरोना के संक्रमण की संभावना है। आंकड़े निर्मम होते हैं। कृपया डराने वाले आंकड़े न दीजिए। शराबबंदी खुलने वाले दिन उमड़ी भीड़ कहां डरी थी? सारा ज्ञान, शिष्टाचार लतियाते हुए कहीं कहीं पुलिस की लात खाते हुए भी वे दारू को ही श्रेष्ठ मानते रहे। विशेषज्ञ यहां भी नहीं चूके। उन्होंने एक दिन में ही बिकी दारू के आंकड़े बता ड़ाले। पीने के बाद हुए उत्पात के आंकड़ों की प्रतीक्षा है। सतर्कता की बात ही ठीक है। डराना सही नहीं।

(रविवार पर विशेष)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं वर्तमान में उत्तर ​प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष हैं।)

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