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कोरोना भी खड़ा हंस रहा

सूर्य कांत शर्मा

सारस्वत भंडार में उड़ी हुई है धूल।
चिमटे चम्मच पूंछ रहे और कड़ाही मंज रही।
चाटुकारिता और लालसा कर रही हैं, सालसा।
चमचे भैया सज रहे, खुशामद भी जम रही।
लिप्सा का लिबास भी, देखो कितना फब रहा।

और हमारा नीरो, चैन की बंसी बजा रहा।
कोरोना भी खड़ा हंस रहा, देखो देखो विपणन मर रहा।
देखो विपणन मर रहा, बचे हुए विपणन के अश्वत्थामा।
लाशों की खेती कर रहे, देखो देखो,सारस्वत मर रहा।

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