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पूर्व विधायक की मौत – बेटा बोला “मारडाला” पुलिस कह रही “गिरपड़े”

अमरेन्द्र प्रताप सिंह

जल-जंगल-जमीन से भरपूर इलाका,  लखीमपुर कब्जे-कमाई-कारनामों का नया अड्डा

लखनऊ, 06 सितंबर, दस्तक टाइम्स : लखीपुर-खीरी में हुईं पूर्व विधायक निर्वेन्द्र कुमार मुन्ना की मौत के मामले में परिवारी जनों का साफ़ आरोप है कि विपक्षी दबंगों द्वारा लाठी-डंडों के हमले में उन्हें मार डाला गया है। पूर्व विधायक का बेटा जो कि खुद भी घायल है साफ़-साफ़ विपक्षी गणों का नाम लेकर पिता की हत्यारा बता रहा है। बेटे के अनुसार 60 से 70 लोगों द्वारा सुनियोजित ढंग से इस घटना को अंजाम दिया गया जिसमे स्थानीय दबंगों के साथ कुछ पत्रकार भी शामिल थे। दूसरी और पुलिस इस घटना को दूसरे रूप में सामने ला रही है, जिले के एसपी से लेकर आईजी रेंज लक्ष्मी सिंह तक के बयान के अनुसार पूर्व विधायक ‘गिरपड़े’ थे जिस कारण उनकी मृत्यु हो गयीं।

सच जो भी हो, परन्तु एक बात तो साफ़ है कि मामला एक जमीन के कब्जे और उसपर चल रहे विवाद से जुड़ा हुआ था। लखीमपुर खीरी जिला जहां यह घटना हुयी है, कुछ समय तक प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार होता था, फिर आखिर कैसे यह तस्वीर बदली कि आज तराई के इस जिले में मामला इस हद तक पहुंच चुका है कि एक पूर्व विधायक की मृत्यु या ह्त्या जमीन से जुड़े विवाद में हो जाती है। शायद इसको समझने के लिए हमें इस जिले की स्थति को ठीक से समझने की जरूरत है।         

खेती किसानी के लिए मशहूर, प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर, बेहद शांत रहने वाला क्षेत्र

उत्तर प्रदेश का जिला लखीमपुर खीरी, पिछले कुछ सालों में जमीन माफियाओ, खनन माफियाओं, लकड़ी तस्करों और कमाऊ अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए नया स्वर्ग बनकर उभरा है। इसका कारण है इस जिला-क्षेत्र का जल, जमीन और जंगल से भरापूरा होना। यही जल, जमीन और जंगल इस क्षेत्र पर ताकतवर लोगों की गिद्ध दृष्टि पड़ने का कारण बन गया और आज यह हराभरा, खेती किसानी के लिए मशहूर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर, बेहद शांत रहने वाला क्षेत्र, अशांत होकर कब्जे, कमाई तथा इन गतिविधियों से जुड़े कारनामों और इसके परिणामों का का नया अड्डा बनकर उभर रहा है। 

क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा और जनसंख्या में चौदहवें नम्बर का जिला

तराई का पड़ोसी राज्य उत्तराखंड और पड़ोसी देश नेपाल से जुड़ा यह जिला क्षेत्रफ़ल की दृष्टि से यूपी का सबसे बड़ा जनपद है। जबकि जनसंख्या की दृष्टि से यह जिला 2011 के सेंसेस में चौदहवें नम्बर पर आता है। इस प्रकार यहां के निवासियों के पास औसतन अन्य जिलों से ज्यादा जमीने हैं। इसी वजह से यहां पर कृषि क्षेत्र की जमीनों के दाम भी अन्य जिलों की अपेक्षा कम हैं।

लगभग 22 प्रतिशत भूभाग जंगलों से आच्छादित, साखू और सागौन का वनक्षेत्र 

इतना ही नहीं जिले का लगभग 22 प्रतिशत भूभाग जंगलों से आच्छादित है। जंगल भी किसी झाड़-झंखाड़ के झुरमुटों वाला नहीं बल्कि बाजार में जो सबसे कीमती लकड़ी मानी जा रही उसके यानी की सागौन और साखू (साल या कोरौं) के पेड़ों के हैं। छोटी काशी कहे जाने वाले भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिर वाली तहसील गोला गोकर्णनाथ के चारोंओर से शुरू होने वाला यह प्रचुर वन क्षेत्र, मैलानी के घने जंगली इलाके से होता हुआ उत्तराखंड के उधमसिंह नगर और दूसरे छोर पर नेपाल के धनगढ़ी कस्बे तक फैला हुआ है। विश्व प्रसिद्द अभ्यारण्य ‘दुधवा नेशनल पार्क’ भी इसी का हिस्सा है। यह वन क्षेत्र ही बहराइच जिले की सीमा में आने वाले ‘कतर्निया घाट’ तक विस्तारित है। 

प्रदेश की सबसे विकराल नदियों में गिनी जाने वाली घाघरा और शारदा इसी जनपद में

जमीन और जंगल के बाद अगर बात करें जल की तो उत्तर प्रदेश की सबसे विकराल नदियों में गिनी जाने वाली घाघरा और शारदा नदियां इसी जनपद में हैं और यहां पर उनके फैलाव का क्षेत्र बहुत विस्तारित है। नेपाल के रास्ते से वर्षा ऋतु में आने वाला अथाह जल इन्ही नदियों के माध्यम से इस जिले को विशाल जलराशि से भरपूर और उससे जुडी बालू आदि खनिज संपदा से अति समृद्ध बनाता है। पड़ोसी जिले पीलीभीत के फुलवा टांडा तालाब से निकली गोमती नदी भी इसी जिले से होकर राजधानी लखनऊ पहुँचती है और आगे जाकर गाजीपुर में गंगा से मिल जाती है।

चीनी का कटोरा कहे जाने वाले इस जिले में दर्जन भर से ज्यादा शुगर मिल्स

अब बात करते हैं तराई के इस पिछड़े कहे जाने वाले और शांत जिले की आज की स्थितियों पर, तो लखीमपुर खीरी अब पहले वाला नहीं रहा, आज प्रदेश भर के राजनेताओं, उद्योगपतियों, व्यापारियों और अधिकारियों-कर्मचारियों को यह जिला भाने लगा है। यहां की जमीने, जल और जंगल सबको लुभा रहे हैं। चीनी का कटोरा कहे जाने वाले इस जिले में आज दर्जन भर से ज्यादा शुगर मिल्स चल रही हैं। जिनके मालिक देश के बड़े और नामचीन उद्योग घराने हैं। यह शुगर मिल्स अपने मालिकानों को भारी मुनाफ़ा कमाकर तो दे ही रही हैं, साथ ही अरबों खरबो की संपत्ति भी इनके पास है। राज्य के वन विभाग और सिंचाई विभाग के अधिकारियों के लिए भी यह जिला बेहद अहम् है। इसी के साथ इन विभागों से जुड़े ठेकेदार और उद्योगपति-व्यापारी भी इस जिले में पूरी तरह सक्रिय हो चुके हैं। सरकार का हजारों करोड़ का बजट इन विभागों के माध्यम से यहां पहुंचता है। इस की वजह से ही बाहरी जिलों खासकर पूर्वांचल के न जाने कितने ताकतवर लोगों ने यहां का रुख किया है।

जो भी एक बार यहां तैनाती पा जाता है, यहां से जाना ही नहीं चाहता

अधिकारियों कर्मचारियों को भी यह जिला स्वर्ग लगने लगा है। आलम यह है कि जो भी एक बार यहां तैनाती पा जाता है, यहां से जाना ही नहीं चाहता। सरकार की महत्वपूर्ण योजनों से लेकर स्थानीय जल – जमीन- जंगल से जुडी संपदा के चलते सबकी यहाँ आकर चांदी होने लग जाती है। अधिकारियों की मिलीभगत से ही यहां नए-नए स्थानीय माफियाओं का भी तेजी से उदय हो रहा है।  साथ ही इन सभी को सत्तासीन पार्टी का साथ पाना भी जरूरी रहता है, जिसके चलते स्थानीय नेता भी यहां खूब फल-फूल रहे हैं। 

लखीमपुर अब सब कुछ हड़प-बेच कर अपनी तिजोरी भरने वालों की सीधी नजरों में

जिले का पलिया क्षेत्र जो कि बेहद सुरम्य और बड़ी कमाई वाले क्षेत्र के रूप में उभरा स्थानीय बाजार है, यह क्षेत्र नेपाल की सीमा से जुड़े होने के कारण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण यहाँ सरकार की योजनाओं की भी भरमार है, ऐसे में जमीन से जुड़े विवाद के चलते हुयी पूर्व विधायक की मौत के निहितार्थ आसानी से समझे जा सकते हैं। पूर्व विधायक निर्वेन्द्र की मौत भले ही एक मामले से जुडी हो परन्तु इस क्षेत्र की अशांति का कारण वही है जो हमने ऊपर दर्शाया है। जल-जंगल-जमीन की प्रचुरता ने इस जिले को आज पूरी तरह लोभी-लालची और सब कुछ हड़प-बेच कर अपनी तिजोरी भरने वालों की सीधी नजरों में ला दिया है। वक्त रहते अगर शासन-सत्ता न चेती तो निकट भविष्य में और भी ऐसे मामले यहां से सामने आ सकते हैं।

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