ज्ञानेंद्र शर्माटॉप न्यूज़दस्तक-विशेषफीचर्डराजनीतिराष्ट्रीयस्तम्भ

गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबों

प्रसंगवश

जातिवादः उत्तर प्रदेश के एक साहित्यकार-अधिकारी सूचना निदेशक के रूप में बिहार के दौरे पर गए। वहाॅ मुख्यमंत्री से मिलने पहुॅचे और अपना परिचय देते हुए बोले- मैं ठाकुर प्रसाद सिंह हूॅ। मुख्यमंत्री चैंकते हुए बोले, नाम तो ठीक लगता है पर ये बताओ कि तुम ठाकुर हो, प्रसाद होे या कोई सिंह?

भ्रष्टाचार: बिहार के 15 साल मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव जेल में हैं और 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले में 5 साल की सजा काट रहे हैं।

पिछड़ापनः बिहार पिछड़ेपन में देश के 28 राज्यों में 24-वें नम्बर पर है।

राजनीतिः बिहार विधानसभा के 2015 में हुए पिछले चुनाव के बाद तीन दलों- राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल, यूनाइटिड और कांग्रेस के महागठबंधन ने सरकार बनाई थी ।

लेकिन मध्यांतर होते होते नीतीश कुमार अपनी जदयू को साथ लेकर महागठबंधन से बाहर हो गए। चुनाव में केवल 53 सीटें जीती और विपक्ष में बैठने के लिए चुनी गई भाजपा से जा मिले और उसे सत्ता का ऑफर देते हुए उससे मिलकर सरकार बना ली। लालू यादव और कांग्रेस टापते रह गए।

कांग्रेस के बिहारी बाबू शत्रुघन सिन्हा पिछले साल लोकसभा चुनाव में धराशाई हो गए। बिहार से भागकर उत्तर प्रदेश और दिल्ली के राजनीतिक क्षितिज पर पहुॅचे पूरबिया फिल्म स्टार मनोज तिवारी भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष हो गए लेकिन उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी से बुरी तरह हार गई। 70 में 62 सीटें आम आदमी ने झटक लीं और घनघोर चुनाव प्रचार करने के बाद भी भाजपा 7 पर अटक गई। एक और भोजपुरी फिल्म स्टार दिनेश यादव उर्फ निरहुआ आजमगढ में चित्त हो गए लेकिन एक स्टार रवि किशन उ0प्र0 के गोरखपुर से जीत गए।

अपनी गरीबी, पिछडे़पन, भ्रष्टाचार, माफियागीरी और जातिवाद के लिए ख्याति-प्राप्त बिहार देश का पहला राज्य है जहाॅ कोरोना के प्रकोप के बाद अब नेता एक साथ दो मोर्चों – कोरोना व सत्ता की राजनीति पर लड़ाई के लिए निकल पड़े हैं। सत्तारूढ़ और विपक्षी कांग्रेस के नेता अब नवम्बर में होने वाले 243 सीटों वाली विधानसभा चुनाव ने लिए कमर कसने लगे हैं। वे कोरोना से तो लड़ने को मजबूर हैं ही, अब प्रवासी मजदूरों ने इस मोर्चे पर उनकी मुसीबतें और बढ़ा दीं।

भारी संख्या में ये प्रवासी संक्रमित निकल रहे हैं। शुरू में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन प्रवासियों को अपने यहाॅ लेने से मना कर दिया था और उन्हें बार्डर पर ही रोक दिया गया था पर बाद में वे मान गए। इनमें बहुत से बीमार निकले लेकिन राजनीतिक चश्मों वालों के लिए अब वे उम्मीद की किरन भी हैं। उनसे वोट मिलने की आशा हो सकती है।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा अपनी पार्टी के लोगों से कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने जिस तरह कोरोना से लड़ाई लड़ी है, वह हमारे चुनाव प्रचार में काम आना चाहिए। एक सर्वे से यह बात सामने आई है कि महामारी का सामना करने लिए नरेन्द्र मोदी द्वारा अपनाई गई नीति-रीति को 93 प्रतिशत लोगों ने उचित ठहराया है और अपनी पसंदगी जाहिर की है।

जनता दल यूनाइटिड के लीडर व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी को अपने इशारों पर नचाया है। वे इस बात पर लगातार अड़े रहे कि पिछले चुनाव के आधार पर सीटों का बंटवारा हो। 2015 में जनता दल यू ने 71 औेर भाजपा ने 53 सीटें जीतीं थीं। भाजपा आधी—आधी सीटों के बॅटवारे पर जोर देती रही है। हाॅ भाजपा इस बात पर अवश्य राजी हो गई है कि बिहार का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। लेकिन नीतीश कुमार इस बात पर अभी भी अड़े हैं कि बिहार के बाहर उनकी पार्टी का भाजपा से गठजोड़ नहीं होगा यानी वे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन- एनडीए में शामिल नहीं होंगे।

चुनाव में दिलचस्पी दो और भी बातों के लिए होगी। एक तो यह कि एक अरसे से कांग्रेस अपनी सरकार बना पाने से कोसों दूर है। पिछले चुनाव में वह अपने दम पर लड़ी भी नहीं थीं, उसका रालोद से गठजोड़ था और अब भी है। रालोद पहले की तरह अभी भी पूरी तरह लालू यादव व उनकी इमेज पर टिकी हुई है जो एक बार फिर यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भ्रष्टाचार अभी भी जनता के दिलोदिमाग के हिसाब से प्रमुख चुनावी मुद्दा नहीं है।

आखिर यह नारा तो अब भी दोहराया ही जाता हैः जब तक समोसे में है आलू, बिहार में रहेगा लालू। लालू रांची जेल में रहते हुए अभी भी राजनीति में सक्रिय तो हैं ही। तो गंगा जी के प्रांगण में राजनीति की लड़ाई होगी चार दलों में: जद यू, भाजपा, रालोद और कांग्रेस में। लेकिन किसी भी और मुद्दे की तुलना में दशा-दिशा तय करेगी कोरोना माई और उसके भुक्तभोगी प्रवासी मजदूर। और पता नहीं पियरी चढ़ाने लायक कौन बन पाएगा? पता नहीं कि क्या नए उभरते हुए शक्ति संतुलन के चलते इस बार जातिवाद पिछली सीट पर पहुॅच जाएगा?

और अंत में, सवालः किसी राजनीतिक नेता को संक्रमण क्यों नहीं हुआ?
उत्तरः- वे सालों से सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी का फार्मूला जो अपना रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)

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