राष्ट्रीय

अनजान लोगों का पिंडदान करता है यह शख्स

सनातन धर्म में मान्यता है कि पितृ ऋण से तभी मुक्ति मिलती है जब पुत्र मृृत पिता की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध करे। वैसे, पितृपक्ष में अपने पूर्वजों और पितरों का पिंडदान और तर्पण करने के लिए लाखों लोग बिहार के गया पहुंचते हैं। गया में एक ऐसा भी परिवार है, जो पिछले 16 सालों से गरीबों, हादसों के शिकार तथा ऐसे लोगों के लिए पिंडदान करता है, जिन्होंने जीवित रहते समाज को काफी कुछ दिया हो। 

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गया के रहने वाले चंदन कुमार सिंह ने गुरुवार को प्रसिद्घ विष्णुपद मंदिर के नजदीक देवघाट पर पूरे हिन्दू रीति-रिवाज और धार्मिक परम्पराओं के मुताबिक गुरुग्राम के रायन इंटरनैशनल स्कूल के छात्र प्रद्युमन, पत्रकार गौरी लंकेश और गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से मौत के शिकार हुए बच्चों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण किया। 

चंदन ने बताया कि उनके पिता सुरेश नारायण ने साल 2001 में गुजरात भूकंप का शिकार हुए लोगों का पिंडदान किया था। उसके बाद से इस परिवार के लिए यह कार्य परंपरा बन गई। चंदन बताते हैं, ‘मेरे पिता ने लगातार 13 वर्षों तक इस परंपरा का निर्वाह किया और उनके निधन के बाद मैं इस कार्य को निभा रहा हूं।’ उनका कहना है कि पूरी दुनिया अपनी है। अगर किसी का बेटा या परिजन होकर पिंडदान करने से किसी की आत्मा को शांति मिल जाती है, तो इससे बड़ा कार्य क्या हो सकता है। बकौल चंदन, गया की इस धरती पर कोई भी व्यक्ति तिल, गुड़ और कुश के साथ पिंडदान कर दे तो उसके पूर्वजों को मुक्ति मिल जाती है। 

चंदन ने कहा कि उनके पिता ने मृत्यु के समय ही कहा था कि वह रहे हैं या न रहें परंतु यह परंपरा चलनी चाहिए। गया के देवघाट पर चंदन ने धार्मिक कर्मकांडों और परम्पराओं के मुताबिक गुरुवार को सामूहिक तर्पण और पिंडदान किया। चंदन ने पुत्रवत और परिजन होकर जम्मू-कश्मीर के उड़ी में शहीद हुए सैनिकों के लिए देवघाट पर गया श्राद्घ किया। इसके साथ ही चंदन ने देश में पिछले एक साल में विभिन्न दुर्घटनाओं और हमलों में जवान गंवा चुके लोगों का पिंडदान किया।

 

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