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नए प्रावधानों के अनुसार सभी बिल्डरों को जुलाई आखिर तक पहले से चल रहे और नए आवासीय प्रोजेक्ट को रीयल एस्टेट अथॉरिटी में पंजीकरण कराना होगा। वहीं, हर प्रोजेक्ट का अथॉरिटी से सेक्शन प्लान और लेआउट प्लान अपनी वेबसाइट के साथ सभी कार्यालयों की साइट्स पर छह वर्ग फीट के बोर्ड पर लगाना होगा।
इसके बाद ही बिल्डर फ्लैट की बुकिंग शुरू कर सकेगा। केंद्रीय आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि इस प्रावधान से फ्लैट या प्लॉट की बुकिंग करने से पहले ही बायर्स को प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी मिल जाएगी। बाद में बिल्डर इसमें कोई हेराफेरी नहीं कर सकता।
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समझौते के वक्त ही कब्जा देने की तारीख भी बतानी होगी
एक्ट में प्रावधान है कि बिल्डर खरीददार से समझौता करते वक्त ही यह बता देगा कि फ्लैट कब तक उसे सौंप देगा। इससे बिल्डर व खरीददार के बीच किसी तरह की गलतफहमी की गुंजाइश नहीं बचेगी। पजेशन देने या लेने में देरी होने पर बिल्डर या खरीददार को स्टेट बैंक के रेट ऑफ इंटरेस्ट से दो फीसदी अधिक ब्याज देना होगा। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि अगर शर्तों का उल्लंघन किया गया तो बिल्डर को तीन साल तक की जेल भी हो सकती है।
मंत्रालय का मानना है कि रीयल एस्टेट सेक्टर में फिलहाल 76 हजार से ज्यादा कंपनियां काम कर रही है। 31 जुलाई तक इनको रीयल एस्टेट रेग्युलेटर के पास अपना पंजीकरण कराना होगा। बीते साल मार्च में राज्यसभा में बिल को मंजूरी मिलने पर इनकी संख्या 76,044 थी।
इसमें से दिल्ली में 17,431, पश्चिम बंगाल में 17,010, महाराष्ट्र में 11,160, उत्तर प्रदेश में 71,36, राजस्थान में 3,054, तमिलनाडु में 3,004, कर्नाटक में 2,261, तेलंगाना में 2,211, हरियाणा में 2,121, मध्य प्रदेश में 1,956, केरल में 1,270, पंजाब में 1,202 और ओडिशा में 1,006 कंपनियां हैं। वेंकैया नायडू ने बताया कि नौ साल के इंतजार के बाद रीयल एस्टेट एक्ट लागू हो गया है। आवासीय सेक्टर के लिए यह नए युग की शुरुआत है। कानून से यह क्षेत्र उत्तरदायी होने के साथ पारदर्शी होगा। वहीं, इसमें प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी।
एक्ट की खास बातें:
– तीन महीने के भीतर नए और पुराने का अथारिटी में पंजीकरण होगा।
– तयशुदा नियमों के अनुसार प्रोजेक्ट पर होगा काम, खरीददार व बिल्डर के बीच गलतफहमी नहीं होगी।
– नया प्रोजेक्ट शुरू करते वक्त खरीददारों से इकट्ठा की गई राशि का 70 फीसदी अलग बैंक अकाउंट में रखना होगा। वहीं, पुराने प्रोजेक्ट की बची राशि के 70 फीसदी का कोष बनेगा।
– पांच साल तक फ्लैट के रख-रखाव का जिम्मा डेवलपर के पास होगा।
– रेगुलरिटी अथॉरिटी या अपीलीय प्राधिकरण को आदेश का उल्लंघन करने पर डेवलपर को तीन साल और एजेंट या खरीददार को एक साल जेल की सजा हो सकती है।
– बिल्डर व खरीददार की ब्याज दर एबीआई के सीमांत लागत पर देय होगी। किसी भी हालत में देरी होने पर 2 फीसदी अतिरिक्त देना होगा।