हरियाणा के अंबाला, सिरसा और हिसार व पंजाब के मोहाली में भी कुछ हिस्सों में इसकी खेती की जा रही है। गेहूं की ये किस्में बैंगनी, काली और नीले रंग की हैं। एनएबीआई की वैज्ञानिक डी डॉक्टर मोनिका गर्ग ने ‘अमर उजाला’ को बताया कि ये खास तरह की किस्में हैं, जिन्हें लोगों के स्वास्थ्य के मद्देनजर तैयार किया गया है। भारत के अतिरिक्त इन किस्मों की खेती कनाडा, आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया, सिंगापुर और चीन में हो रही है। चंडीगढ़ में इंटरनेशनल एग्रोटेक फेयर के दौरान इन किस्मों को प्रदर्शित किया गया था।
इस तरह तैयार हुआ है कलरफुल गेहूं
इन कलरफुल गेहूं की किस्मों में एंथोकाइनिन तत्व शामिल किया गया है। ये तत्व एक प्रकार का फ्लैवोनॉयड होता है, जो एंटीआक्सीडेंट प्रभाव वाले यौगिक का एक वर्ग है। ये स्वाभाविक रूप से कई खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। यही वो तत्व है, जो पौधे को कुदरती रूप से विभिन्न रंग प्रदान करते हैं। गेहूं की इन किस्मों की ब्रीडिंग के दौरान ही इन तत्व का इस्तेमाल होता है, जिसके बाद ये गेहूं रंग-बिरंगी पैदा होती है। वैज्ञानिक डा. मोनिका गर्ग के लिए बीज तैयार करते हुए ब्रीडिंग के दौरान किसी भी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है।
पहाड़ों से लेकर मैदानों तक लहलहाएगी किस्म
गेहूं की इन किस्मों की बिजाई नवंबर माह में की जाती है और अप्रैल में इसकी कटाई की जाती है। पहाड़ों से लेकर मैदानी इलाकों तक इस किस्म को लगाया जा सकता है। ठंडे इलाकों में गेहूं का रंग ज्यादा गहरा और गरम इलाकों में हल्का रहता है। बैंगनी रंग वाली किस्म एनएबीआई-एमजी-10 प्रति एकड़ 17 से 19 क्विंटल पैदावार देती है।
काले रंग वाली किस्म एमजी-11 प्रति एकड़ 15 से 17 क्विंटल व नीले रंग वाली एमजी-12 प्रति एकड़ 15 क्विंटल तक पैदावार देती है। इन किस्मों की खेती के दौरान खाद व सिंचाई के तरीके सामान्य किस्म जैसे ही रहेंगे। मार्केट में इसकी कीमत प्रति क्विंटल 2230 रुपये से लेकर 2630 रुपये है। देश में अब धीरे-धीरे किसानों तक इसकी पहुंचे बढ़ाई जा रही है। इसके लिए एनएबीआई अभी तक 10 एमओयू साइन कर चुकी है।